scriptमानवाधिकारों की रक्षा को तत्पर रहे सच्चर | In memory of Rajinder Sachar | Patrika News
ओपिनियन

मानवाधिकारों की रक्षा को तत्पर रहे सच्चर

देश के वर्तमान हालात को लेकर राजिंदर सच्चर को दो चिंताएं सताती रहती थीं।

Apr 22, 2018 / 01:46 pm

सुनील शर्मा

rajinder sacchar

rajinder sacchar

– संजय पारिख, मानवाधिकार अधिवक्ता

मानवाधिकारों की रक्षा के लिए जागरूक और संघर्षरत रहे दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर आज हमारे बीच नहीं हैं। वह आजीवन समाज के कमजोर और दबे-कुचले वर्ग की आवाज बने रहे। आम लोगों के बीच वह सच्चर समिति की सिफारिशों को लेकर ख्यात हुए, लेकिन मूल रूप से वह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता, एक न्यायविद थे।
मुझे पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) जैसे मंच पर 30 साल राजिंदर सच्चर जैसी शख्सियत के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वह हमेशा खुद को पीयूसीएल का कार्यकर्ता कहा करते थे। आतंकवाद निरोधक कानून २००२ (पोटा) हो, जनप्रतिनिधि अधिनियम में राज्य सभा की सदस्यता को लेकर डोमिसाइल की जरूरत को खत्म करने संबंधी संशोधन का मामला हो या राजनीतिक सुधार के लिए आपराधिक पृष्ठभूमि और संपत्ति के खुलासे का मामला, उन्होंने कभी हार नहीं मानी और कभी निराश नहीं हुए। ९४ की उम्र में भी वह पूरी तरह सजग थे। कुछ समय से खानपान में कमी के चलते शारीरिक रूप से जरूर कमजोर हो गए थे, लेकिन चेहरे पर उदासी का दूर-दूर तक नामोनिशान न था।
देश के वर्तमान हालात को लेकर मुख्य रूप से उन्हें दो चिंताएं सताती रहती थीं। उनकी पहली चिंता थी न्यायपालिका के प्रति सम्मान और विश्वास में निरंतर आ रही कमी को लेकर। दूसरी चिंता समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अलगाव और विघटन को लेकर थी। वह कहते थे कि देश की संस्कृति के साथ खिलवाड़ हो रहा है, अल्पसंख्यकों और समाज के दूसरे वर्गों के खिलाफ जिस तरह हिंसक घटनाएं हो रही हैं, यह सब ऐसे ही होता रहा तो क्या होगा इस देश का, इस तरह राष्ट्र की उन्नति संभव नहीं है।
सामाजिक जीवन में परिवर्तन को लेकर अक्सर लोग हार मान लेते हैं, निराश हो जाते हैं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बल्कि उनका जज्बा काबिले-तारीफ था और नौजवानों को प्रेरित करता था। याददाश्त भी उनकी इतनी पैनी थी, कि युवा भी अक्सर मात खा जाते थे। सच्चर समिति की रिपोर्ट लागू न होने को लेकर अक्सर लोग उनसे सवाल करते थे। ऐसे में हमेशा उनका जवाब यही होता था, ‘मैंने सच सबके सामने रख दिया है, मेरा काम रिपोर्ट देना था, उसका लागू होना या न होना अब जनता और सरकार के हाथ में है।’

Home / Prime / Opinion / मानवाधिकारों की रक्षा को तत्पर रहे सच्चर

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो