भारतीयों के विदेश में बसने की मुख्य वजह भले ही रोजगार या पारिवारिक हो, प्रतिभा और योग्यता के दम पर उन्होंने वहां भी अपने देश का नाम रोशन किया है। बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुख्य कार्यकारी अधिकारी से लेकर कई देशों की वित्तीय और आर्थिक संस्थाओं में भारतीय प्रतिभाओं का दबदबा है। कुछ देशों की राजनीति में भी प्रवासी भारतीयों का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। पिछले नवम्बर में भारतीय मूल की प्रियंका राधाकृष्णन को बतौर मंत्री न्यूजीलैंड सरकार में शामिल किया गया। अब भारतीय मूल की कमला हैरिस 20 जनवरी को अमरीका का उपराष्ट्रपति पद संभालने वाली हैं। भारतीय मूल के चार सांसदों रोहित खन्ना, एमी बेरा, राजा कृष्णमूर्ति और प्रमिला जयपाल के अलावा तरुण छाबड़ा, सुमोना गुहा, वनिता गुप्ता, शांति कलथिल समेत 30 से ज्यादा लोग अमरीका के अगले राष्ट्र्रपति जो बाइडन के प्रशासन में विभिन्न जिम्मेदारियां संभालेंगे।
विदेशों में बसे भारतीय अपने देश के सांस्कृतिक और रणनीतिक दूत हैं। उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए भारत सरकार हर साल 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस सम्मेलन का आयोजन करती है। प्रवासी भारतीयों के लिए कई योजनाएं भी बनाई गई हैं। अंतरराष्ट्रीय पटल पर उनका नई ताकत के साथ उभरना भारत की बढ़ती मजबूती का भी परिचायक है। यह प्रवासी भारतीयों की गतिशीलता ही है कि हमारी प्राचीन परम्परा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (सम्पूर्ण पृथ्वी एक परिवार है) की भावना सारी दुनिया में साकार हो रही है। संक्रमण काल से गुजरती दुनिया में आज इस भावना को ज्यादा से ज्यादा पुख्ता करने की जरूरत है। यह संकुचित विचारों को त्यागने का समय है। सीमाओं के झगड़ों और साम्राज्यवादी सोच से ऊपर उठकर सभी देश मिल-जुलकर मानव सभ्यता के विकास की दिशा में कदम बढ़ाएं, तो भविष्य की दुनिया की तस्वीर और बेहतर हो सकती है