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ओपिनियन

भारत को आपदा प्रबंधन स्तर में जल्द करना होगा सुधार

कम लागत वाली प्रौद्योगिकी में निवेश से भी बेहतर नतीजे संभव।सरकारों को जोखिम पैदा होने के बाद उनसे निपटने के लिए नहीं, बल्कि उनकी रोकथाम के लिए निवेश को मजबूत करने की जरूरत।

नई दिल्लीJun 03, 2021 / 08:55 am

विकास गुप्ता

भारत को आपदा प्रबंधन स्तर में जल्द करना होगा सुधार

भारत को आपदा प्रबंधन स्तर में जल्द करना होगा सुधार

डॉ. विनोद थॉमस (वल्र्ड बैंक के पूर्व सीनियर वाइस प्रेजीडेंट और प्रोफेसर, एनयूएस सिंगापुर)
चित्रांजलि तिवारी (एलमनस, ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी, सिंगापुर)

आए दिन बढ़ते स्वास्थ्य एवं जलवायु संकटों ने भारत की आपदा से निपटने की तैयारी के लिए कड़ी चुनौती पेश की है। कोविड-19 महामारी जैसा स्वास्थ्य संकट हो या मुंबई की बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदा, दोनों से ही यही तथ्य उजागर होता है कि इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश पर्याप्त नहीं है। दृष्टिकोण में बदलाव बहुत जरूरी है – आपदा आने पर निपटने की कोशिशों के बजाय जरूरत है आपदा के लिए तैयार रहने पर निवेश करने की।

मृत्यु दर, जांच दर और टीकाकरण दर के आधार पर ब्लूमबर्ग ने सिंगापुर को आपदा प्रबंधन के मामले में अव्वल दर्जा दिया है। सिंगापुर सरकार डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और अभियांत्रिकी क्षमताओं में निवेश करती रही है। वहां कांटेक्ट ट्रेसिंग के लिए काम आने वाले डिजिटल टूल जैसे ‘सेफएंट्री’ और ‘ट्रेसटुगेदर’ सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय स्थापित करने में सहायक सिद्ध हुए हैं। भारत सरकार को भी ऐसी ही कम लागत वाली प्रौद्योगिकी में निवेश करना चाहिए। जापान में आए ग्रेट ईस्ट भूकम्प और 2011 की सुनामी के बाद नीति निर्धारक, राष्ट्रीय सरकार और स्थानीय सरकारों में बेहतर तालमेल पर जोर दे रहे हैं। भारत में भी इसके लिए तकनीकी क्षमताओं की अंतरराज्यीय पूलिंग, आपूर्ति व खामियों के प्रबंधन के लिए स्टाफ क्षमता पर फोकस करने की जरूरत है।

भारत में कोविड-19 के प्रबंधन का ऑडिट अस्पतालों को बेहतर बनाने, चिकित्सकीय अनुसंधान और संकट से निपटने की योजनाओं को बेहतर बनाने के सबक जरूर देगा। राज्यों को एक ‘स्ट्रैस टेस्ट’ करना चाहिए कि वे बार-बार आपदाएं आती हैं तो उनसे कैसे पार पाएंगे।केरल स्वास्थ्य और प्राकृतिक आपदाओं से मुकाबला करने में अन्य राज्यों से बेहतर रहा है। केरल में कोविड मृत्यु दर 0.3% दर्ज की गई है। यह सिंगापुर के बराबर है और विश्व में न्यूनतम है। संक्रमण का जल्दी पता लगना, मरीज को आइसोलेट करने में तत्परता और कांटेक्ट ट्रेसिंग के बल पर केरल में ऐसा कर पाना संभव हुआ। तमिलनाडु, ओडिशा जैसे राज्यों ने भी प्रभावी आपदा प्रबंधन का प्रदर्शन किया है। ओडिशा में 1999 में 260 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से आए तेज चक्रवाती तूफान ने 10,000 लोगों की जान ले ली (गैर आधिकारिक आंकड़े-50,000)। इसके बाद 2013 (फैलिन) और 2019 (फानी) में मृतकों की संख्या क्रमश: 44 और 89 रही।

कोविड-19 और अन्य आपदाओं का मुकाबला करने में लोगों का रवैया काफी अहम है। जैसे कि गोरखपुर में बार-बार आने वाली बाढ़ का मुकाबला करने के लिए लोग प्राकृतिक उपाय अपना रहे हैं। किसान एक ही तरह की खेती छोड़ अलग-अलग फसलों का चक्र अपना रहे हैं ताकि मृदा स्वास्थ्य और निकासी व्यवस्था बेहतर हो सके। मौसम भविष्यवाणी संबंधी एडवाइजरी के तौर पर किसानों को मोबाइल पर संदेश प्राप्त होते हैं, जिनसे उन्हें सिंचाई और फसल कटाई का समय तय करने में मदद मिलती है।

एचएसबीसी ने आपदा के प्रति संवेदनशील 67 देशों की सूची में भारत को पहला स्थान दिया है, इसलिए भारत को आपदा से निपटने के साथ ही उसकी पूर्व तैयारी को भी प्राथमिकता देनी होगी। महामारी के दौरान राज्यों में न केवल आपसी विश्वास की कमी देखी गई, स्वास्थ्य और सुशासन को लेकर फर्क भी सामने आया। केरल में प्रति व्यक्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च उत्तर प्रदेश और बिहार के मुकाबले दो गुना है। जाहिर है सरकारों को जोखिम पैदा होने के बाद उनसे निपटने के लिए नहीं, बल्कि उनकी रोकथाम के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश बढ़ाना और उसे सार्थक करना होगा।

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