हम भारतीय कब तक यूं ही लड़ते-झगड़ते रहेंगे? कब तक अपनी ताकत को फिजूल की बहस में जाया करते रहेंगे? कोई भी समझदार और देशप्रेमी हमसे यह सवाल कर सकता है कि, क्या हमारे पास देशहित में करने को कोई काम नहीं है जो हम सुबह से शाम तक असहिष्णुता जैसी ऐसी बहस में उलझे हुए हैं जिसका कोई अच्छा परिणाम देश के लिए आने वाला नहीं है।
अगर कोई गणना कर सकता हो तो शायद नतीजे से हमारी आंखें फटी रह जाएगी कि इस एक विषय पर कितने दिन से, कितने भारतीय, कितनी अवधि इस पर खर्च कर चुके और उसका परिणाम क्या निकला या निकलेगा? ताजा वाकया फिल्म अभिनेता आमिर खान के हवाले देश के सामने आए उसकी पत्नी किरण राव के बयान का है।
इस आशंका में क्या गलत था? किरण ने जो कहा उसके पीछे तो एक ‘मांÓ बोल रही थी लेकिन ऐसे माहौल में हर भारतीय क्या सोच रहा था? सवा सौ करोड़ के इस देश में उन गिने-चुने लोगों की बात छोड़ दीजिए जिन्हें तमाम तरह की सुरक्षा मिली हुई हैं, हर आदमी इन दिनों डरा हुआ है। कब क्या होगा, यही सोचता रहता है।
और उसे डर क्यों नहीं लगना चाहिए? यहां सवाल किसी एक धर्म का नहीं है। यहां सवाल उस मानसिकता का है, जो दूसरे को डरा कर रखना चाहती है। फिर चाहे वह हिन्दू को डराने की हो या मुस्लिम को। सिख को डराने की हो अथवा ईसाई को। वह मानसिकता यह नहीं देखती कि, इससे डर हर भारतीय रहा है।
यह डर हिन्दू अथवा मुस्लिम नहीं, इस देश की गंगा-जमुनी संस्कृति को चोट पहुंचा रहा है और भारत की तरक्की को रोक रहा है। अब आमिर खान ने अपने भारतीय होने पर गर्व जाहिर कर दिया, कह दिया कि, वो और उसके पत्नी-बच्चे देश छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाले, तब योगी आदित्यनाथ क्या कहेंगे? तब साध्वी प्राची क्या कहेंगी? आज जरूरत इस बात की है कि हमारे राजनेता चाहे वे किसी जाति, धर्म, प्रदेश और पार्टी के हों, अपने आपको सुधारें।
संत-महंत के चोले में घूमने वाले (चाहे वे किसी भी धर्म के हों) और उस चोले को पहन कर राजनीति करने वाले अपने आपको सुधारें। अपने अन्दर झांके। किसी को भी देश प्रेमी और देशद्रोही का प्रमाणपत्र जारी करने के पहले यह सोचें कि वे स्वयं कितने देशप्रेमी और देशद्रोही हैं? यदि उनकी कहीं किसी बात से इस देश की शांति भंग होती है अथवा उसकी आशंका भी खड़ी होती है, तब सबसे बड़े देशद्रोही वे स्वयं हैं।
भले कोई उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं कराए, कोई कोर्ट उनके खिलाफ स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान न ले लेकिन उनकी आत्मा की अदालत उनका प्रसंज्ञान लेगी, इस महान देश का हर नागरिक उसका प्रसंज्ञान लेगा। इस तरह की बहस में उलझने वाले हर व्यक्ति को यह विचारना चाहिए कि हमारे दुश्मन यूं ही कम नहीं हैं। देश में भी और विदेशों में भी। ऐसे में आज सबसे बड़ी जरूरत उनसे लड़ने की है, ना कि देश में ही नयी दुश्मनी खड़ी करने की।
यहां सवाल किसी एक धर्म का नहीं है। यहां सवाल उस मानसिकता का है, जो दूसरे को डरा कर रखना चाहती है। फिर चाहे वह हिन्दू को डराने की हो या मुस्लिम को। सिख को डराने की हो अथवा ईसाई को।