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विवादों से बचे सेना!

हमारी सेना ने युद्धकाल में कौशल दिखाया है तो शांतिकाल में तलवारों की तरह अपनी आवाज भी म्यान में रखी है, मतलब बंद रखी है।

Dec 08, 2017 / 04:49 pm

सुनील शर्मा

indian army
भारतीय थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत ने कहा है कि, सेना को राजनीति से दूर रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सैन्य बलों का राजनीतिकरण होता जा रहा है। सेनाध्यक्ष के बयान के पहले हिस्से पर शायद ही कोई भारतीय असहमत हो। उनके बयान के दूसरे हिस्से पर हर भारतीय का चिंतित होना स्वभाविक है। सेनाध्यक्ष ने अपनी टिप्पणी में ना तो उन कारणों का खुलासा किया है जिनसे उन्हें यह मत बनाना पड़ा। ना ही उन्होंने उस व्यक्ति या व्यक्तियों का नाम लिया जिन्होंने ऐसी कोशिशें की। एक तरह से इनका खुलासा नहीं होना ही ठीक है।
यदि वे ऐसा करते तो मीडिया की सुर्खियों में तो आ जाते लेकिन भारतीय सेना की छवि को बहुत ही नुकसान होता। हमारी सेना की परम्पराएं गौरवशाली रही हैं। उसने युद्धकाल में कौशल दिखाया है तो शांतिकाल में तलवारों की तरह अपनी आवाज भी म्यान में रखी है, मतलब बंद रखी है। पिछले ७० वर्षों में वीके सिंह, शंकर राय चौधरी, जेजे सिंह अथवा बीसी खण्डूरी या जसवंत सिंह जैसे बहुत कम उदाहरण मिलेंगे जहां सेवानिवृत्ति के बाद सैन्य अफसरों ने राजनीति की राह पकड़ी हो। कुछ अवसरों को छोड़ कर सेनाध्यक्ष की नियुक्ति में भी वरिष्ठता का सम्मान किया गया।
पहले मौके पर एस के सिन्हा की वरिष्ठता को लांघ कर ए एस वैद्य को व दूसरे मौके पर प्रवीण बख्शी और पी एम हारिज की वरिष्ठता को दरकिनार कर रावत को सेना की कमान सौंपी गई। अच्छी सेना और सैनिक भगवान को बाद में और अपने जनरल को पहले मानते हैं। भारतीय सेना में युद्धकाल से लेकर शांतिकाल तक सेना या सेनाध्यक्ष की ओर से कोई आवाज सुनाई नहीं पड़ती। वर्ष १९७१ में पाकिस्तानी सेना के ९५ हजार फौजियों का आत्मसमर्पण करा बंगलादेश के निर्माण का इतिहास रचने वाली भारतीय सेना के जनरल एस एच एफ मानेकशॉ तभी बोलते थे जब सैनिकों के बीच होते थे।
उनका भाषण कभी मीडिया की सुर्खी नहीं बना। सरकारों से लेकर सेनाध्यक्षों तक को उन्हीं परम्पराओं का अनुसरण करना चाहिये।राजनीति राजनेताओं को ही करने देनी चाहिए। सेना को विवादों से बचाने के लिए उसी सावधानी की जरुरत है। सर्जिकल स्ट्राइक या आतंकी को जीप से बांधकर मानव कवच बनाने जैसी घटनाओं का प्रचार किसी भी सूरत में हितकारी नहीं है।

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