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जमा पूंजी : समझदारी से तय करें बीमा नॉमिनी

बीमा करवाते समय सोचें कि कितने लोग आप पर निर्भर हैं, आपके बाद उनका क्या होगा

नई दिल्लीJun 16, 2021 / 10:06 pm

विकास गुप्ता

जमा पूंजी : समझदारी से तय करें बीमा नॉमिनी

जमा पूंजी : समझदारी से तय करें बीमा नॉमिनी

असीम त्रिवेदी

विमल की अल्पायु में मृत्यु हो गई। उसके माता-पिता और बहन उस पर आश्रित थे। पत्नी स्वयं नौकरी करती है। विमल ने अपने बीमा में पत्नी को नॉमिनी बनाया था। बीमा कम्पनी ने सारा पैसा पत्नी के अकाउंट में हस्तांतरित कर दिया। विमल की पत्नी अब मायके में है, माता-पिता यहां आर्थिक मजबूरी में हैं। यही होता है जब आप भावनाओं में आकर ऐसे महत्त्वपूर्ण निर्णय लेते हैं।

इस समय इंश्योरेंस कम्पनियां क्लेम के निपटारे में लगी हैं, व्यक्ति की मृत्यु के बाद जिसे पैसा मिलेगा, वह बाकी कानूनी हकदारों को उसे बांटेगा या नहीं, इस पर हर परिवार संशय में है। भारतीय इंश्योरेंस अधिनियम की धारा 39 इस वक्त सबसे ज्यादा भूमिका निभा रही है। किसी मृतक की बाकी सभी सम्पत्तियों के बंटवारे में हिंदू उत्तराधिकार नियम के अनुसार सभी योग्य उत्तराधिकारियों को सम्पत्ति का हिस्सा मिलता है, परंतु जीवन बीमा के मामले में अगर व्यक्ति ने अपनी पत्नी या माता-पिता या बच्चों में किसी को नॉमिनी बनाया है तो वह नॉमिनी (बेनेफिशल नॉमिनी) होगा, और बीमा का पूरा पैसा उसे ही मिलेगा। यानी पत्नी का नाम दिया तो पत्नी, पिता का नाम दिया तो पिता पूरे पैसे पाने का हकदार होगा। ये नियम इसीलिए लाया गया था कि बीमा कम्पनी को ये मानने का अधिकार है कि बीमित व्यक्ति इसे अपनी वसीयत की तरह ही घोषित कर रहा है।

इसलिए आप जब भी बीमा करवाएं, सोच-समझ कर भावनाओं से परे जाकर समझदारीपूर्ण तरीके से नॉमिनी तय करें। ये सोचिए कि कितने लोग आप पर निर्भर हैं, आपके बाद उनका क्या होगा, उनकी निर्भरता के क्रम में आप नॉमिनी बनाइए। आपको ये सुविधा भी है कि आप एक से अधिक नॉमिनी बना सकते हैं, अगर चाहें तो उनमे बंटवारा कैसे हो यह भी निर्धारित कर सकते हैं। भविष्य में नॉमिनी बदल भी सकते हैं।

ध्यान रखिए कि अगर आपने पति, पत्नी, माता, पिता, पुत्र, पुत्री के अलावा किसी को नॉमिनी बनाया तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार बंटवारा होगा। उपरोक्त मामले में विमल ने अगर समझदारी से बंटवारा किया होता तो माता-पिता और बहन को ये दिन न देखने पड़ते। अब अगर विमल के पिता चाहते है कि उन्हें भी कुछ मिले तो लम्बी कानूनी लड़ाई लडऩी पड़ेगी।

(लेखक सीए, ऑडिटिंग एंड अकाउंटिंग स्टैंडर्ड, कंपनी मामलों के जानकार हैं)

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