डब्ल्यूपीआइ में 64.23 प्रतिशत हिस्सेदारी वाले निर्माण घटक की मुद्रास्फीति में अप्रेल माह में 2.42 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। मूलभूत धातुओं, खाद्य उत्पादों, खनिज तेलों, टैक्सटाइल, रसायन एवं रासायनिक उत्पादों, रबड़ व प्लास्टिक उत्पादों, कागज व कागज से बने उत्पादों की कीमतों में गिरावट ही अप्रेल में महंगाई कम होने का कारण रहा। मुद्रास्फीति में कटौती के इन सभी संकेतों के बाद संभव है कि दरों में कटौती को लेकर उम्मीद समय से पहले ही की जाने लगी हो। अनुमान लगाए जा रहे हैं कि आरबीआइ इस साल के अंतिम दिनों में दरों में कटौती कर सकता है। आरबीआइ के लिए फिलहाल अधिक उचित होगा कि वह दरों को ज्यों का त्यों रखे और महंगाई संबंधी कुछ संभावित जोखिमों पर नजर रखे।
एक, उपभोक्ता मामलों के विभाग से प्राप्त मूल्य आंकड़ों के अनुसार दूध के मूल्यों में मई में उछाल देखा गया। विभिन्न राज्यों में पशुओं में लम्पी रोग के कारण आने वाले महीनों में कीमतें अधिक रहने का जोखिम बना हुआ है। दो, अप्रेल में ओपेक प्लस के सदस्य देशों ने तेल उत्पादन में औचक कटौती की घोषणा की। यह निर्णय इसी माह से लागू हुआ है। ओपेक प्लस के नौ सदस्यों द्वारा तेल उत्पादन में कुल कटौती 1.66 मिलियन बैरल है। मई माह में उत्पादन में कटौती का तेल की कीमतों पर असर दिखना शुरू हो गया है। पिछले दिनों सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री के बयान के बाद तेल की कीमतें और बढ़ गईं। वक्तव्य के बाद आशंका जताई गई कि ओपेक प्लस समूह 4 जून को प्रस्तावित बैठक में तेल उत्पादन में और कटौती की घोषणा कर सकता है। मंत्री ने उन लोगों को सावचेत किया जो तेल की कीमतें कम होने की शर्त लगा रहे थे। पिछले सप्ताह तेल भंडारों में आई गिरावट के कारण तेल आपूर्ति को लेकर भी चिंताएं उठने लगी हैं। 29 मई से अमरीका में शुरू हो रहे पर्यटन सीजन के चलते भी तेल आपूर्ति और कम होने व तेल कीमतें बढऩे के आसार हैं। तीन, महंगाई पर अल नीनो प्रभाव अब भी अनिश्चित है। अल नीनो के कारण मानसून कमजोर पड़ सकता है। इससे बाजार में आने वाले कृषि उत्पाद कम होने व ज्यादा मूल्यों में बिकने की आशंका है।
आरबीआइ गवर्नर ने अपने हालिया उद्बोधन में बताया है कि मुद्रास्फीति के खिलाफ जंग अभी खत्म नहीं हुई है क्योंकि बैंक को अभी अल नीनो प्रभाव पर भी नजर रखनी है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) का खाद्य मूल्य सूचकांक वैश्विक खाद्य व्यापार वस्तुओं के मूल्य निर्धारण का पैमाना है। इसमें 12 महीनों की गिरावट के बाद अप्रेल में पुन: उछाल देखा गया। खाद्य मूल्य सूचकांक में आई तेजी का कारण रहा – चीनी, मांस और चावल की कीमतों में तेजी। इन मूल्यों पर निगरानी रखने की जरूरत है ताकि घरेलू मूल्यों पर इनके प्रभाव का आकलन किया जा सके।
एक ओर जहां मुद्रास्फीति परिदृश्य में ऊपरी स्तर पर जोखिम अत्यधिक हैं, वहीं आर्थिक विकास गति पकड़ता दिख रहा है। परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स(पीएमआइ) अप्रेल माह में चार महीने के उच्चतम स्तर पर था। सेवा क्षेत्र का पीएमआइ भी तेज गति से बढ़ रहा है। निवेश सूचकांकों में भी बहाली के अच्छे संकेत दिखाई दे रहे हैं। निजी क्षेत्र द्वारा क्षमता का उपयोग भी बढ़ रहा है। फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में वृद्धि और सरकार द्वारा बजटीय खर्च बढ़ाने से किसानों की आय बढऩे और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उछाल की संभावना है। पर गर्मी के मौसम में जलाशयों में पानी का स्तर कम होने की आशंका के चलते ग्रामीण विकास की संभावनाओं पर संकट के बादल छा सकते हैं। आर्थिक गतिविधियों की बहाली और मुद्रास्फीति पथ पर उभरते ऊपरी जोखिमों की पृष्ठभूमि में आरबीआइ को नीतिगत दरों में कटौती के लिए जल्दबाजी से बचना चाहिए और मुद्रास्फीति नियंत्रण के अधिक स्थायी संकेतों की प्रतीक्षा करनी चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की द्वितीय शीर्ष अधिकारी गीता गोपीनाथ ने भी मुद्रास्फीति पर नजर रखने की पैरवी की है। उभरती अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति के आघात के प्रति संवेदनशील होती हैं, क्योंकि ये मुद्रा अवमूल्यन और आयात मूल्यों में वृद्धि का कारण बन सकता है।