पृथकतावादियों और पत्थरबाजों की तमाम उकसावे भरी कार्रवाईयों के बावजूद वे लगातार हालात सामान्य करने को तत्पर दिखे। इस दौरान अनेक जवान शहीद हुए और बड़ी संख्या में घायल भी हुए। घाटी में बढ़ती हिंसक वारदातों और सीमा पार से पाक गोलीबारी के कारण केन्द्र सरकार पर दबाव बढऩे लगा था कि वह जम्मू-कश्मीर में संघर्ष विराम का आदेश वापस ले। हालांकि राज्य में सत्ता में भाजपा की भागीदार पीडीपी की नेता और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती संघर्ष विराम की अवधि दो माह बढ़ाने की मांग कर रही थीं।
पिछले महीनों में कश्मीर घाटी में जैसे हालात बन रहे थे, उनमें अमन पसंद नागरिकों के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही थीं। केन्द्र में सत्तारूढ़ व कश्मीर की सत्ता में भागीदार भारतीय जनता पार्टी को भी जम्मू सहित देश के अन्य भागों में कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ रहा था। ईद से दो दिन पूर्व वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की हत्या और ईद के दिन सुरक्षा दलों पर घाटी में पत्थरबाजों के हमले के बाद संघर्ष विराम जारी रखने का कोई औचित्य नहीं रह गया था। खैर, सरकार ने अब संघर्ष विराम खत्म करने का फैसला किया है तो उसकी आतंकियों से सख्ती से निपटने की बारी है।
अब केन्द्र वहां हुर्रियत, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी सहित तमाम राजनीतिक पार्टियों व सामाजिक संगठनों को साफ जता दे कि सुरक्षा दल किसी भी राष्ट्रविरोधी गतिविधि से सख्ती से निपटेंगे। हालांकि बहकावे में आए नौजवान यदि मुख्यधारा में लौटना चाहेंगे तो उन्हें पूरा मौका दिया जाएगा। जो भी लोग घाटी में अमन-चैन बहाली के रास्ते में अवरोध पैदा करेंगे, उनको बख्शा नहीं जाएगा चाहे वे किसी भी दल से हों। इसी महीने राज्य में पवित्र अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होने वाली है। इसमें पूरे देश से लाखों श्रद्धालु पहुंचेंगे। गत वर्ष अनंतनाग में यात्रियों पर हमला हो चुका है। इस बार यात्रा शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो, इसके भी पुख्ता इंतजाम करने होंगे। पूरे राज्य की आर्थिक स्थिति पर्यटन, वैष्णो देवी तथा अमरनाथ यात्रा पर निर्भर है। घाटी में अमन होगा तभी पर्यटक भी आएंगे। खुशहाली भी लौटेगी। उम्मीद यही की जानी चाहिए।