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लक्ष्य पाने के लिए बाधाओं पर भी रहे निगाह

भारत की आंतरिक प्रेरणा ही उसे सफल होने के लिए प्रेरित करती है, जो अगले २५ वर्षों में जीडीपी को तेज गति से बढ़ा सकती है। नीति निर्माताओं को संतुष्ट नहीं होते हुए संभावित खतरों पर भी नजर रखनी चाहिए।

Mar 15, 2023 / 09:15 pm

Patrika Desk

लक्ष्य पाने के लिए बाधाओं पर भी रहे निगाह

लक्ष्य पाने के लिए बाधाओं पर भी रहे निगाह

प्रोसेनजीत दत्ता
‘बिजनेस वल्र्ड’ व ‘बिजनेस टुडे’ के संपादक रह चुके हैं

भारत के पास ऐसी कुछ लाभदायक स्थितियां हैं, जिनके बल पर वह आगामी २५ वर्षों में तेजी से आगे बढ़ सकता है। लेकिन, नीति-नियंताओं को संतुष्ट भी नहीं रहना चाहिए। बात करते हैं ‘अमृत काल’ की, जिसे साधारण शब्दों में ‘अद्वितीय शुभकाल’ भी कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने इस शब्द का उपयोग शेष बचे २५ वर्षों के लिए किया है, जब स्वतंत्र भारत 100 साल का हो जाएगा। भारत सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत 2047 तक विकसित देश का दर्जा हासिल कर ले। विकसित भारत के लिए मजबूत नींव हो।
सवाल यह है कि हम अगले २५ वर्षों में कैसे विकसित होंगे? स्वतंत्र देश के रूप में 100वें वर्ष में हमारी जीडीपी क्या होगी और विश्व में हमारी स्थिति क्या होगी? कई लोगों ने मजबूत तर्क के समर्थन बिना ही पूर्वानुमान लगाया कि यह 40 ट्रिलियन या 50 ट्रिलियन डॉलर होगी। समान रूप से, कई स्थितियों के मद्देनजर अर्थशास्त्रियों, सलाहकारों या विश्लेषकों ने भी कई अनुमान लगाए गए हैं। इनमें से एक ईवाइ इंडिया का भी पूर्वानुमान है।
ईवाइ इंडिया की रिपोर्ट इंडिया ञ्च100 में वित्तीय वर्ष 2048 की जीडीपी के लिए तीन वैकल्पिक अनुमानों का एकसाथ उपयोग किया- 23.9 ट्रिलियन, 25.1 ट्रिलियन और 25.8 ट्रिलियन डॉलर। यह अनुमान लगाया गया कि भारत की 2023 और 2030 के बीच जीडीपी की औसत ग्रोथ 6.4 के बीच रहेगी। 2031 और 2040 के बीच औसत वृद्धि धीरे-धीरे नीचे आएगी और 2041 और 2048 के बीच धीमी होगी। पूर्वानुमान लगाने के लिए ईवाइ इंडिया ने समय के इस अंतराल में अलग-अलग मामूली बचत दरों और नाममात्र के निवेश योग्य सरप्लस की कल्पना की। पर, वित्तीय वर्ष 2048 में जीडीपी अनुमानों के लिए ज्यादा महत्त्वपूर्ण तो उन हालातों पर ध्यान देने की जरूरत थी, जिन पर विकास दरों को हासिल करने के लिए सरकारों को ध्यान देना आवश्यक है। इनमें एमएसएमई के लिए क्रेडिट गैप को भरना, प्रौद्योगिकी को तेज गति से अपनाना, निर्माण क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाना, ढांचागत निर्माण और जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा को केंद्र में रखना शामिल है। बचत को ज्यादा प्रोत्साहित करना भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
भारत में विकास के लिए अनुकूल परिस्थिति है। यहां के जनसांख्यिकी आंकड़े दुनिया के किसी भी देश से बेहतर हैं। लगभग 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश का लगभग 67 फीसदी कामकाजी आयु वर्ग का है। 2030 तक भारत की कामकाजी जनसंख्या एक अरब पार करने का अनुमान है। यह उस समय घटित हो रहा है, जब चीन की आबादी कम हो रही है। ज्यादा महत्त्वपूर्ण तो यह कि चीन का श्रमबल बूढ़ा हो रहा है। जापान भी घटती कामकाजी आबादी और बढ़ती जनसंख्या की दोहरी मार झेल रहा है। भारत की मैक्रो-इकोनॉमिक स्थिरता और मजबूत लोकतंत्र से देश को कई फायदे हुए हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि 75 वर्ष से ज्यादा समय में भारत ने मजबूत नींव का निर्माण किया है, जो भविष्य के विकास को आधारशिला है। भारत पहले से ही दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी और संभवत: सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है।
इन आंतरिक लाभों के साथ, वर्तमान सरकार और भविष्य की सरकारों को यह महसूस करने की जरूरत है कि ज्ञात और अज्ञात खतरे भी बहुत हैं, जो विकास में रुकावट डाल सकते हैं। 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी और कोविड महामारी ने कई देशों की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भी बड़ा व्यवधान डाला है और युद्ध खत्म होने के बाद भी इसका असर रहेगा। अभी यह अस्पष्ट है कि सिलिकॉन वैली बैंक के दिवालिया होने का भारत या उसके स्टार्टअप पर कितना असर होगा। ग्लोबल वार्मिंग का भी खतरा है और इससे होने वाला नुकसान कृषि उत्पादकता और जीवन के लिए दुखदायी है। इस वैश्विक समस्या से निपटने के लिए दुनिया के सभी देशों को एकसाथ आने की जरूरत है। इतिहास बताता है कि कुछ भी आसान नहीं रहा है। भारत की आंतरिक प्रेरणा ही उसे सफल होने के लिए प्रेरित करती है, जो अगले २५ वर्षों में जीडीपी को तेज गति से बढ़ा सकती है। नीति निर्माताओं को संतुष्ट नहीं होते हुए संभावित खतरों पर भी नजर रखनी चाहिए।

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