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पीकू बेटी थी। बेटा भी तो हो सकती थी। लेकिन बेटा होते ही एक
नहीं कई समस्याएं खड़ी हो जातीं।

Jun 03, 2015 / 11:29 pm

मुकेश शर्मा

Daughter

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पीकू बेटी थी। बेटा भी तो हो सकती थी। लेकिन बेटा होते ही एक नहीं कई समस्याएं खड़ी हो जातीं। पहली बात तो आज की दुनिया में “बेटों” को इतनी फुरसत कहां है जो वे बाप की कब्ज का ख्याल रख सकें।


वे तो खुद ही इस मर्ज के मरीज हैं। आम तौर पर बेटी चाहे किसी मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती हो, चाहे पंद्रह लाख का पैकेज पा रही हो लेकिन मां-बाप उससे यही उम्मीद करते हैं कि वह “ठीक” वक्त पर घर आ जाए।


बेटा चाहे बेरोजगार घूम रहा है उससे नहीं पूछा जाता कि रात बारह-एक बजे तक तू किसके साथ “हांड़ता” फिरता है। लेकिन अब वक्त बदल रहा है। “पीकू” तीस साल की हो चुकी है उसे अपने बूढ़े बाप की खूब फिकर है। बाप भी ऎसा स्वार्थी है जो बेटी का ब्याह करना ही नहीं चाहता और वह शादी योग्य जवान लड़कों से जो पीकू में रूचि लेते हैं, साफ तौर पर कहता है कि उसकी बेटी “वैसीा” नहीं रही और अपनी जरूरतें पूरी कर लेती है।


ये बदलता भारतीय समाज है। लेकिन वाह री पीकू। अपने बाप से लड़ती है, झगड़ती है और गुस्सा होती है लेकिन उसके अच्छे स्वास्थ्य के बावजूद इतनी चिन्तित रहती है कि अपनी “डेट” पर कथित प्रेमी के सामने ही अपने पिता की आदतों के बारे में खुल कर बात करती है।


अब आप ही सोचिए कि खाना खाने के ठीक पहले कोई “पॉटी” के बारे में चर्चा करे तो क्या आप ठीक से खा सकते हैं? लेकिन पीकू के लिए सब सामान्य है। पीकू को पसन्द करने वाला टैक्सी कम्पनी का मालिक पूछता भी है कि क्या तुम्हारे घर में “कब्ज” के अलावा कुछ और बातें होती हैं या नहीं? पीकू कहती है- नहीं होती। यही फर्क है बेटे और बेटी में।


क्षमा करें। हमारी बात सुन कर “सपूत” नाराज न हों। क्योंकि हमारे समाज में आज भी मरने के बाद कपालक्रिया करने का अधिकार बेटे के पास ही सुरक्षित है। कई घरों में तो हमने बेटों के यह हाल देखे हैं- “जियत बाप से दंगम दंगा, मरत बाप पहुंचाए गंगा”।


ऎसा भी नहीं कि पीकू का बाप बड़ा ही खुदगर्ज है। वह पीकू को पूरी स्वतंत्रता देता है। वह पढ़ी-लिखी औरतों के “फ्रस्ट्रेशन” से भी वाकिफ है। वो दिल से चाहता है कि “पीकू” का ब्याह हो लेकिन बेटी उसे छोड़ कर भी न जाए।


क्या हमारा समाज यह प्रस्ताव पास नहीं कर सकता कि जो बेटी शादी के बाद अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहे वह अपने पति के साथ पीहर में रहने को स्वतंत्र हो सकती है लेकिन यहां जंवाई राजा की कुंठा सामने आती है क्योंकि हमारे यहां घर जंवाई की तुलना बेचारे “पालतू” से की गई है और आधुनिक लड़कों की मूर्खता देखिए किसी कुंठित व्यक्ति की बनाई सदियों पुरानी कहावत को ही परम सत्य मान बैठे हैं।


बहरहाल हर कोई मां-बाप चाहते हैं कि उनके पीकू जैसी बेटी हो। पीकू की अतृप्त चाह ने ही तो पीकू को सौ करोड़ी बना दिया जिसके लिए अच्छे-अच्छे “हीरो” तरसते रहते हैं। वाह रे पीकू वाह। – राही

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