तात्पर्य यह कि भावनाओं की चहलकदमी जब संवेदनशीलता के आंगन में चेतना के पद-चिह्न छोड़ जाती है, तब कविता के रूप में चिंतन का संसार रच जाती है। इस दृष्टि से देखें तो हिन्दी कविता सामाजिक सरोकारों की
सिलाई मशीन पर सिला हुआ, शब्दों का परिधान है जिसमें अनुभवों के धागों और संप्रेषण के क्रोशिए से संदेश के कशीदे काढ़े जाते हैं। अभिप्राय यह है कि वर्तमान में हिन्दी कविता (छंद मुक्त) की रचना के लिए पांच बातें जैसे-सरोकारों की समझ, संवेदनशीलता, शब्दों का सही संयोजन, संप्रेषण, संदेशशीलता का ध्यान रखना चाहिए।
कविता केवल कल्पना की उड़ान ही उड़ान रहेगी तो वह संदेश नहीं दे पाएगी। कविता शब्दों की जुगाली नहीं होती। क्लिष्ट शब्द कविता की संप्रेषणीयता समाप्त कर देते हैं। भाषायी धरातल पर हिन्दी कविता पांडित्य का प्रदर्शन नहीं अपितु सरलता का समर्थन होना चाहिए। अर्थपूर्ण किंतु सरल शब्द कविता को संप्रेषण से युक्त करके सार्थक संदेश देने में सफल होते हैं।
बात हिन्दी गीत की करें तो गीत छंदानुशासन की छत्रछाया में अक्षरों का अनुष्ठान है।
वर्तमान हिन्दी गीत मात्राओं पर आधारित छंदानुशासन के आसन पर विराजमान है। मात्राओं को गिनने की भी पद्धति है। मात्रिक अनुशासन पर ही गीत की लय, तान, संतुलन निर्भर करता है। गीत किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है, लेकिन उसके लिए मात्रिक अनुशासन जरूरी है।