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जीएसटीः प्रावधान पोर्टल पर लाने में सामंजस्य का अभाव

राज्यों को क्षतिपूर्ति के लिए नई व्यवस्था जरूरी

Jul 05, 2022 / 09:26 pm

Patrika Desk

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

राहुल लाल
आर्थिक मामलों के जानकार

‘एक राष्ट्र, एक बाजार, एक कर’ जीएसटी की शुरुआत के पीछे एक बड़ा उद्देश्य था। 1 जुलाई 2017 को देश में जीएसटी लागू होते ही करोड़ों करदाता एक ‘एकीकृत अप्रत्यक्ष कर प्रणाली’ में आ गए। जीएसटी ने विभिन्न स्थानीय राज्य कानूनों जैसे वैट, प्रवेश कर, विलासिता कर आदि को समाहित कर लिया। जीएसटी के घोषित लक्ष्यों में राजस्व में वृद्धि, करों का सरलीकरण, इनपुट क्रेडिट की निर्बाध गति और कर के आधार को बढ़ाना मुख्य था। इनमें से कर आधार बढ़ाना व राजस्व में वृद्धि के लक्ष्यों में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस वर्ष मई माह में जीएसटी से सरकार को करीब 1.41 लाख करोड़ रुपए प्राप्त हुए, वहीं जून में भी जीएसटी संग्रह 56% बढ़कर 1.45 लाख करोड़ रुपए हो गया। जून लगातार चौथा महीना है, जब जीएसटी से प्राप्तियां 1.4 लाख करोड़ रुपए से ऊपर है। इन आंकड़ों में उच्च महंगाई दर का भी योगदान है। जहां एक ओर जीएसटी संग्रह नई ऊंचाइयां छू रहा है, वहीं जीएसटी फाइल करने वालों की संख्या में गिरावट देखने को मिली है। वित्त वर्ष 2022 में जीएसटीआर-3बी के तहत दाखिल रिटर्नों में सालाना आधार पर 13.8 फीसदी गिरावट आई है। वित्त वर्ष 2019-20 में 93 लाख की तुलना में वर्ष 2022 में औसतन 79 लाख रिटर्न ही मासिक तौर पर फाइल किए गए हैं।
जीएसटी की एक बड़ी उपलब्धि कैस्केडिंग प्रभाव या ‘टैक्स पर टैक्स’ को हटाना भी रहा। जीएसटी राज्यों के चेक पोस्टों को काफी हद तक खत्म करके लागत में कमी करने में भी सफल रहा। पांच वर्षों में राज्यों ने अपने विभिन्न चेक पोस्टों को हटा लिया है, इससे माल की आवाजाही आसान हुई है और डिलीवरी समय भी कम हुआ है। इसके परिणामस्वरूप अब स्टॉक ज्यादा रखने की जरूरत नहीं होती। इस कारण व्यावसायिक घरानों के लिए कार्यशील पूंजी की आवश्यकता पहले से घटी है।
पांच वर्ष पहले व्यापारियों को परमिट, टैक्स क्लीयरेंस सर्टिफिकेट, सी फॉर्म आदि प्राप्त करने के लिए दैनिक आधार पर कर विभाग का दौरा करना पड़ता था। लेकिन जीएसटी आने के बाद स्थिति बदल गई है। ई-चालान, ई-वे बिल, पंजीकरण एवं संशोधन के लिए आवेदन करना, नोटिस का उत्तर आदि अब सरलतम ढंग से ऑनलाइन किया जा रहा है। कानून में बार-बार बदलाव ने करदाताओं को ट्रेकलेस बना दिया है। जीएसटी पोर्टल पिछले 5 वर्षों से करदाताओं के लिए एक पहेली और चिंता का विषय रहा है। कानून के प्रावधानों और जीएसटी पोर्टल पर पेश की जाने वाली कार्यक्षमता के बीच सामंजस्य की कमी है। कानून में बदलाव के बाद पोर्टल को अपडेट करने में महीनों लग जाते हैं। इसलिए एक मजबूत और उच्च गुणवत्ता युक्त पोर्टल समय की जरूरत है।
क्षतिपूर्ति व्यवस्था को आगे जारी रखने के लिए एक नई व्यवस्था की तलाश करनी होगी, जिसके माध्यम से राज्यों की क्षतिपूर्ति हो सके, क्योंकि क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह का इस्तेमाल उस कर्ज को चुकाने के लिए किया जाएगा, जो गत दो वर्षों में राज्यों को भुगतान के लिए दिया गया। अगर सरकार अतिरिक्त उपकार लगाती है,तो कर ढांचा और जटिल हो सकता है। ऐसे में क्षतिपूर्ति व्यवस्था आगे बढ़ाने के लिए गहन मंथन की जरूरत है, क्योंकि कई राज्य सरकारों ने कहा है कि वह क्षतिपूर्ति नहीं मिलने पर सेस लगाने के लिए बाध्य होंगे। इससे जीएसटी में ‘एक टैक्स, एक राष्ट्र’ की अवधारणा बाधित होगी।
पिछले पांच वर्षों में सरकार जीएसटी के सरलीकरण के लिए प्रतिबद्ध दिख रही है। जीएसटी से सरकार के राजस्व में जब रेकॉर्ड वृद्धि हो रही है, तो सरकार को अब जीएसटी सरलीकरण और इनपुट क्रेडिट के निर्बाध होने के भी सकारात्मक प्रयास प्रारंभ कर देने चाहिए। राज्यों के हितों को ध्यान में रखते हुए डीजल-पेट्रोल को भी जीएसटी के दायरे में रखने का प्रयत्न होना चाहिए। अगर राज्यों को क्षतिपूर्ति नहीं बढ़ाई गई, तो दरों को तार्किक बनाने संबंधी अनुशंसाएं और अहम हो जाएंगी। कम स्लैब के साथ राजस्व प्रतिपूर्ति दर हासिल करने से केंद्र व राज्य दोनों का राजस्व बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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