सर्वोच्च न्यायालय ने ये माना कि संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अपवादों के दायरे में ही अभिव्यक्ति की आजादी का प्रयोग करना चाहिए, ताकि ये किसी वर्ग या समुदाय की भावनाओं को आहत न करे। किसी भी अभिव्यक्ति की संवैधानिकता का पैमाना भी यही है कि आपकी अभिव्यक्ति से समाज में घृणा न फैले। मतलब यदि आपके बोलने की आजादी के प्रयोग से नफरत नहीं फैल रही है, तो आप अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का भरपूर प्रयोग करें।
प्रवासी भलाई संगठन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक राज्य को ऐसे व्यक्तियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए, जो घृणा या नफरत फैलाने वाले भाषण दें या फिर कुछ ऐसा लिखें। सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी कहा कि जो कानून ऐसे अपराध के लिए बने हैं उनका कड़ाई से पालन ही हो जाए तो काफी होगा।
विधि आयोग को भी मामला भेजा गया और ये पूछा गया कि क्या ‘हेट स्पीच’ को परिभाषित करना उचित होगा। साथ ही साथ निर्वाचन आयोग को भी कड़े कदम उठाने चाहिए, ताकि ऐसी बयानबाजी करने वाले लोगों के हौसले पस्त हो सकें। इसीलिए वर्ष 2017 में विधि आयोग ने अपनी 267वीं रिपोर्ट सौंपी जिसने आइपीसी और सीआरपीसी में कई संशोधन बताए, ताकि ऐसी नफरत और घृणा फैलाने वाली बयानबाजी पर नियंत्रण किया जा सके!
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे यू-ट्यूब, फेसबुक और वॉट्सऐप इन सबको भी पूरी छूट देना उचित नहीं होगा। इनकी भी जिम्मेदारियां तय करनी जरूरी हैं। दिल्ली विधानसभा की एक कमेटी ने हेट स्पीच फैलाने के ही मामले में सोशल नेटवर्किंग साइट ‘फेसबुक’ के अधिकारियों को तलब किया है और अंतिम अवसर दिया है। समय आ गया है कि ऐसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स को चेता दिया जाए कि उन्हें भारतीय कानूनों और नियमों के अधीन ही भारत में काम करना पड़ेगा।
हेट स्पीच से संबंधित अपराधों में जांच एजेंसियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। जांच एजेंसियों को निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से जांच पूर्ण करनी चाहिए। हाल ही में कई प्रदेशों में दंगे भड़काने के लिए नेताओं की गिरफ्तारियां हुईं। विपक्ष के नेताओं के भाषणों को हेट स्पीच के दायरे में माना गया, परन्तु जो नेता सत्ता पक्ष के थे, उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस तरह का पक्षपात हेट स्पीच का खात्मा नहीं कर पाएगा।