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वैवाहिक बलात्कार के मामले में कानूनी बदलाव जरूरी

कानून: आधुनिक समय में विवाह को बराबरी की साझेदारी मानते हैं ।- आधुनिक सामाजिक न्यायशास्त्र में, विवाह में पति-पत्नी को समान भागीदार के रूप में माना जाता है। साथ ही पत्नी पर शरीर के संबंध में या व्यक्तिगत स्थिति के संदर्भ में पति किसी भी श्रेष्ठ अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

नई दिल्लीOct 06, 2021 / 01:53 pm

Patrika Desk

marital rape

आर.के. विज, (वरिष्ठ आइपीएस, अधिकारी)

वैवाहिक बलात्कार के मुद्दे पर हाल ही में दो उच्च न्यायालयों (केरल एवं छत्तीसगढ़) के फैसलों ने देश का ध्यान पुन: आकर्षित किया है। हालांकि दोनों में से किसी ने भी वैवाहिक बलात्कार की संवैधानिकता पर निर्णय नहीं दिया, लेकिन उनके संदर्भ ने एक बार फिर इस बात पर बहस छेड़ दी कि क्या आइपीसी की धारा 375 का ‘अपवाद 2’ संवैधानिक है या नहीं। यह अपवाद प्रावधान करता था कि ‘पंद्रह वर्ष से अधिक आयु की पत्नी से यौन संबंध या यौन कृत्य, बलात्कार नहीं है।’ वर्ष 2017 में ‘इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य’ प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने इसी अपवाद के प्रावधान में ‘पंद्रह वर्ष’ को ‘अठारह वर्ष’ पढ़े जाने का निर्णय दिया था। केरल उच्च न्यायालय ने माना कि पत्नी की इच्छा के खिलाफ पति की यौन विकृतियों का कृत्य मानसिक क्रूरता है। इसलिए तलाक का दावा करने का एक मजबूत आधार है। कोर्ट ने कहा कि आधुनिक सामाजिक न्यायशास्त्र में, विवाह में पति-पत्नी को समान भागीदार के रूप में माना जाता है। साथ ही पत्नी पर शरीर के संबंध में या व्यक्तिगत स्थिति के संदर्भ में पति किसी भी श्रेष्ठ अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरोपी पति को आइपीसी की धारा 376 के आरोप से मुक्त करते हुए वैवाहिक बलात्कार के आरोप को अवैध ठहराया, क्योंकि यह धारा 375 के ‘अपवाद 2’ के तहत अंतर्निहित है और पत्नी की उम्र अठारह वर्ष से कम नहीं थी, क्योंकि वैवाहिक बलात्कार आज की स्थिति में दण्डनीय अपराध नहीं है। इसलिए दोनों उच्च न्यायालय के अपने दृष्टिकोण में सही थे, लेकिन केरल उच्च न्यायालय के निर्णय को अपने दृष्टिकोण में प्रगतिशील और आधुनिक होने के लिए अधिक सराहा गया।

न्यायाधीश जेएस वर्मा (सेवानिवृत्त) समिति की रिपोर्ट (जनवरी 2013) में कहा गया है कि ब्रिटेन ने भी पुरानी धारणा कि ‘एक पत्नी अपने पति की अधीनस्थ संपत्ति से ज्यादा कुछ नहीं है,’ त्याग दी है। यूरोपीय मानवाधिकार आयोग ने माना है कि ‘एक बलात्कारी पीडि़ता के साथ अपने रिश्ते की परवाह किए बिना बलात्कारी बना रहता है।’ वैवाहिक बलात्कार अब दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित कई देशों में दण्डनीय अपराध है। समिति ने उचित विचार-विमर्श के बाद सिफारिश की कि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटा दिया जाए, लेकिन सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।

एक वर्ग को लगता है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से पतियों के खिलाफ झूठे आरोप दायर हो सकते हैं। साथ ही पुलिस के लिए ऐसे मामलों को संदेह से परे साबित करना बहुत मुश्किल होगा। किसी भी अनुभवजन्य डेटा के अभाव में पहली आशंका निराधार है। इसके अलावा झूठे मामलों से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान हैं। यदि यह कानून अप्रभावी पाया जाता है, तो कानूनी उपायों को संशोधित किया जा सकता है। इसी तरह, एक विकृत व्यवहार को अपराध के रूप में अधिसूचित करने के लिए सबूत की कठिनाई एक मानदंड नहीं हो सकता है। अधिकतर अन्य यौन अपराधों की तरह, अभियोजन पक्ष प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों के साथ मामले को प्रमाणित कर सकता है। यह निर्विवाद है कि आधुनिक समय में विवाह को बराबरी की साझेदारी माना जाता है। यह अखंडता और गरिमा के साथ दो व्यक्तियों का एक संघ है। किसी महिला की शारीरिक अखंडता का उल्लंघन उसकी स्वायत्तता का स्पष्ट उल्लंघन है। कानून का कोई भी प्रावधान, जो उचित, न्यायसंगत और निष्पक्ष नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 21 की भावना के खिलाफ है, भेदभावपूर्ण और मनमाना है। ऐसा प्रावधान असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।

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