छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आरोपी पति को आइपीसी की धारा 376 के आरोप से मुक्त करते हुए वैवाहिक बलात्कार के आरोप को अवैध ठहराया, क्योंकि यह धारा 375 के ‘अपवाद 2’ के तहत अंतर्निहित है और पत्नी की उम्र अठारह वर्ष से कम नहीं थी, क्योंकि वैवाहिक बलात्कार आज की स्थिति में दण्डनीय अपराध नहीं है। इसलिए दोनों उच्च न्यायालय के अपने दृष्टिकोण में सही थे, लेकिन केरल उच्च न्यायालय के निर्णय को अपने दृष्टिकोण में प्रगतिशील और आधुनिक होने के लिए अधिक सराहा गया।
न्यायाधीश जेएस वर्मा (सेवानिवृत्त) समिति की रिपोर्ट (जनवरी 2013) में कहा गया है कि ब्रिटेन ने भी पुरानी धारणा कि ‘एक पत्नी अपने पति की अधीनस्थ संपत्ति से ज्यादा कुछ नहीं है,’ त्याग दी है। यूरोपीय मानवाधिकार आयोग ने माना है कि ‘एक बलात्कारी पीडि़ता के साथ अपने रिश्ते की परवाह किए बिना बलात्कारी बना रहता है।’ वैवाहिक बलात्कार अब दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा सहित कई देशों में दण्डनीय अपराध है। समिति ने उचित विचार-विमर्श के बाद सिफारिश की कि वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को हटा दिया जाए, लेकिन सरकार ने इसे स्वीकार नहीं किया।
एक वर्ग को लगता है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से पतियों के खिलाफ झूठे आरोप दायर हो सकते हैं। साथ ही पुलिस के लिए ऐसे मामलों को संदेह से परे साबित करना बहुत मुश्किल होगा। किसी भी अनुभवजन्य डेटा के अभाव में पहली आशंका निराधार है। इसके अलावा झूठे मामलों से निपटने के लिए कानूनी प्रावधान हैं। यदि यह कानून अप्रभावी पाया जाता है, तो कानूनी उपायों को संशोधित किया जा सकता है। इसी तरह, एक विकृत व्यवहार को अपराध के रूप में अधिसूचित करने के लिए सबूत की कठिनाई एक मानदंड नहीं हो सकता है। अधिकतर अन्य यौन अपराधों की तरह, अभियोजन पक्ष प्रासंगिक तथ्यों और परिस्थितियों के साथ मामले को प्रमाणित कर सकता है। यह निर्विवाद है कि आधुनिक समय में विवाह को बराबरी की साझेदारी माना जाता है। यह अखंडता और गरिमा के साथ दो व्यक्तियों का एक संघ है। किसी महिला की शारीरिक अखंडता का उल्लंघन उसकी स्वायत्तता का स्पष्ट उल्लंघन है। कानून का कोई भी प्रावधान, जो उचित, न्यायसंगत और निष्पक्ष नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 21 की भावना के खिलाफ है, भेदभावपूर्ण और मनमाना है। ऐसा प्रावधान असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए।