समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी पिता मुलायम सिंह यादव की सीट आजमगढ़ से अपने को उम्मीदवार घोषित किया है। मुलायम मैनपुरी भेजे गए हैं। अखिलेश अपनी परंपरागत सीट कन्नौज पत्नी डिंपल यादव को सौंप चुके हैं। अब उन्हें ऐसी सीट की तलाश थी जो न सिर्फ सुरक्षित हो, बल्कि जहां से वे जातीय गणित के आधार पर आस-पास की दर्जन भर सीटों पर भी असर डाल सकें। आजमगढ़ सबसे उपयुक्त थी। हालांकि वह सपा का गढ़ कभी नहीं रही, लेकिन सपा-बसपा के गठबंधन के बाद यादव, मुसलमान और दलित वोटों के बल पर अखिलेश को कोई मुश्किल नहीं आने वाली। यहां ४ लाख यादव, ३ लाख मुस्लिम और २.७५ लाख दलित वोट हैं। इन्हीं जातियों का प्रभाव नजदीकी क्षेत्रों की दर्जनभर सीटों द्ग गाजीपुर, जौनपुर, सलेमपुर, घोसी, लालगंज, अंबेडकर नगर, संतकबीर नगर, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर और बलिया पर भी है। अखिलेश और मायावती का आजमगढ़ के बहाने यहां भी जातिगत गणित बैठाने का प्रयास होगा।
कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में जो माहौल चल रहा है, उससे तीन दशक बाद मंडल बनाम कमंडल-द्वितीय जैसे हालात बन रहे हैं। योगी आदित्यनाथ राममंदिर और सर्जिकल स्ट्राइक के भरोसे हैं तो विपक्ष को जातीय गठजोड़ से आस है। कांग्रेस को प्रियंका गांधी के करिश्मे का भरोसा तो है, लेकिन वह भी विपक्ष के वोटों में भटकाव नहीं चाहती है। यही कारण है कि अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव से वह दूरी बनाए हुए है। कुल मिलाकर हर बड़ा नेता इस जोड़-तोड़ में है कि चुनाव में खुद की सीट के साथ-साथ सत्ता भी हासिल कर ले। पहले चरण का नामांकन हो चुका है। बाकी छह चरणों के नामांकन से पूर्व कितने नेता अपनी सीट बदलेंगे, कितने एक से ज्यादा स्थानों से भाग्य आजमाएंगे, देखना रोचक होगा। सत्ता के महायज्ञ में हर कोई आहूति तो देना चाहता है, लेकिन खुद पर आंच भी नहीं आने देना चाहता।