scriptLok Sabha Election 2019: हार का डर! | Lok Sabha Election 2019: Fear of defeat | Patrika News
ओपिनियन

Lok Sabha Election 2019: हार का डर!

यूपी में तीन दशक बाद मंडल बनाम कमंडल-द्वितीय जैसे हालात बन रहे हैं। योगी, राममंदिर और सर्जिकल स्ट्राइक के भरोसे हैं तो विपक्ष को जातीय गठजोड़ से आस है।

जयपुरMar 25, 2019 / 04:13 pm

dilip chaturvedi

lok sabha election 2019

lok sabha election 2019

सत्ता का सुख ही ऐसा है कि हर राजनेता पाना चाहता है। और पाकर उसे छोडऩा भी नहीं चाहता। चुनाव सामने आते ही हार का डर बड़े-बड़े दिग्गजों की रातों की नींद उड़ा देता है। उन्हें अपने लिए सुरक्षित क्षेत्र ढूंढऩे को मजबूर कर देता है। तभी तो २०१४ में प्रचण्ड लहर के बावजूद नरेन्द्र मोदी बड़ौदा और बनारस से मैदान में उतरे थे। बड़ौदा में जीत निश्चित थी, लेकिन बनारस में गंगा की लहरों ने उन्हें भी आशंकित कर रखा था। अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी समेत बड़े दिग्गजों की स्थिति ऐसी ही नजर आती है। राहुल उत्तर प्रदेश के अमेठी से लगातार तीन बार सांसद रह चुके हैं। इस बार भी उम्मीदवार हैं। लेकिन उनके दक्षिण भारत की किसी सीट से भी चुनाव लडऩे की अटकलें चल रही हैं। खुद केरल कांग्रेस के अध्यक्ष एम. रामचंद्रन उन्हें राज्य से चुनाव लडऩे का न्योता दे चुके हैं। यह हार का ही डर है कि मायावती चुनाव लडऩे से इनकार कर चुकी हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने लालकृष्ण आडवाणी की सीट गांधीनगर को चुना है। वे पिछले छह चुनावों में उनके सारथी रह चुके हैं। गांधीनगर उन्हें अपने लिए सबसे सुरक्षित लगा। तभी तो भाजपा के पुरोधा को हाशिए पर डाल दिया गया।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी पिता मुलायम सिंह यादव की सीट आजमगढ़ से अपने को उम्मीदवार घोषित किया है। मुलायम मैनपुरी भेजे गए हैं। अखिलेश अपनी परंपरागत सीट कन्नौज पत्नी डिंपल यादव को सौंप चुके हैं। अब उन्हें ऐसी सीट की तलाश थी जो न सिर्फ सुरक्षित हो, बल्कि जहां से वे जातीय गणित के आधार पर आस-पास की दर्जन भर सीटों पर भी असर डाल सकें। आजमगढ़ सबसे उपयुक्त थी। हालांकि वह सपा का गढ़ कभी नहीं रही, लेकिन सपा-बसपा के गठबंधन के बाद यादव, मुसलमान और दलित वोटों के बल पर अखिलेश को कोई मुश्किल नहीं आने वाली। यहां ४ लाख यादव, ३ लाख मुस्लिम और २.७५ लाख दलित वोट हैं। इन्हीं जातियों का प्रभाव नजदीकी क्षेत्रों की दर्जनभर सीटों द्ग गाजीपुर, जौनपुर, सलेमपुर, घोसी, लालगंज, अंबेडकर नगर, संतकबीर नगर, देवरिया, गोरखपुर, कुशीनगर और बलिया पर भी है। अखिलेश और मायावती का आजमगढ़ के बहाने यहां भी जातिगत गणित बैठाने का प्रयास होगा।

कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में जो माहौल चल रहा है, उससे तीन दशक बाद मंडल बनाम कमंडल-द्वितीय जैसे हालात बन रहे हैं। योगी आदित्यनाथ राममंदिर और सर्जिकल स्ट्राइक के भरोसे हैं तो विपक्ष को जातीय गठजोड़ से आस है। कांग्रेस को प्रियंका गांधी के करिश्मे का भरोसा तो है, लेकिन वह भी विपक्ष के वोटों में भटकाव नहीं चाहती है। यही कारण है कि अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव से वह दूरी बनाए हुए है। कुल मिलाकर हर बड़ा नेता इस जोड़-तोड़ में है कि चुनाव में खुद की सीट के साथ-साथ सत्ता भी हासिल कर ले। पहले चरण का नामांकन हो चुका है। बाकी छह चरणों के नामांकन से पूर्व कितने नेता अपनी सीट बदलेंगे, कितने एक से ज्यादा स्थानों से भाग्य आजमाएंगे, देखना रोचक होगा। सत्ता के महायज्ञ में हर कोई आहूति तो देना चाहता है, लेकिन खुद पर आंच भी नहीं आने देना चाहता।

Home / Prime / Opinion / Lok Sabha Election 2019: हार का डर!

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो