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मोदी का इस हुनर में जवाब नहीं लेकिन अब उनकी मजबूरी है
कि प्रधानमंत्री रहते ज्यादा “जुमले” नहीं उछाल सकते

Apr 24, 2015 / 10:38 pm

शंकर शर्मा

Modi

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मजा आ गया। भविष्य में दें या न दें। लेकिन कांग्रेस के राहुल भैया ने छुट्टी अवतार के बाद लोकसभा में ऎसा जोरदार भाषण दिया कि इधर वाले और उधर वाले दोनों दंग रह गए। कसम डेमोके्रसी की। ऎसा तो हमने कभी सोचा ही न था। आप चाहे यकीन करें कि दो महीने तक राहुल ने ध्यान चिन्तन किया होगा लेकिन हमारी समझ से तो उन्होंने इस दौरान भाषण देने की जम कर रिहर्सल की है। पहले तो वे कभी बांहे चढ़ा लेते थे और कभी कागज फाड़ते थे।

इस बार तो उन्होंने सरकारी पक्ष का कलेजा और अपने पक्ष का मुंह फाड़ दिया। राहुल जब बोल रहे थे तो उनके पीछे ज्योतिराव सिन्घिया इत्यादि-इत्यादि उछल-उछल कर दाद दे रहे थे। ऎसा लग रहा था जैसे एक हास्य कवि सम्मेलन चल रहा हो। पहली बार हमने मोदी सरकार की सिट्टी-पिट्टी गुम देखी। हालांकि उन्होंने टोकाटोकी में कसर नहीं छोड़ी पर राहुल ने भी ऎसे तुरप के इक्के फेंके कि उन्होंने चुप होने में ही भलाई समझी। बात किसानों की हो रही थी लेकिन दृश्य से किसान गायब थे। कांग्रेस अपने भावी अध्यक्ष को नये अवतार में मुग्ध भाव से देख रही थी और भाजपा सोच में पड़ गई थी। भाजपा अभी तक सोचती थी कि सबसे बड़ा “जुमलेबाज” उन्हीं के पास है लेकिन अब वे चक्कर में हंै कि उधर विपक्ष में भी एक नया अवतार हो चुका है।

हम राजनीति के ज्ञानी ध्यानी तो हैं नहीं लेकिन इतना जानते हैं कि भारतीय राजनीति में जो जितने अच्छे जुमले उछाल सकता है वह उतना ही बड़ा नेता हो सकता है। अपने भारतरत्न अटल जी को ही लीजिए। कसम से क्या जोरदार भाषण देते थे और भारतीय जनता पार्टी में एक दो नहीं कोई दर्जनों नेता होंगे जो अब भी वाजपेयी की भौंडी नकल करते हैं। वैसे ही रूक-रूक के, चबा-चबा के घुमा फिरा के बोलना। राहुल अब सीधे-सीधे टक्कर में उतर रहे है। उनकी टक्कर भी दो स्तर पर है। पहली अपनी पार्टी के बूढ़े-ठालों के साथ और दूसरी सत्ताधारी भाजपा के तपे-तपाये खूंटों के साथ। हम यह दावे से कह सकते हैं कि राजनीति में वही चलता है जो जोरदार जुमले बोल सकता है।

मोदी का इस हुनर में जवाब नहीं लेकिन अब उनकी मजबूरी है कि प्रधानमंत्री रहते ज्यादा “जुमले” नहीं उछाल सकते। हालांकि अभी भी कई बार उनकी जबान फिसल जाती है। आपको पता है अपने प्रणव दा का सबसे बड़ा दर्द क्या था? हिन्दी भाषा नहीं जानने के कारण वे “जुमलेबाज” नहीं बन पाए और इसीलिए प्रधानमंत्री न बन सके। एक सुझाव राहुल गांधी को। भैया जितनी जल्दी हो सके कुछ मुहावरे व लोकोक्तियां और सीख लो।

या कादर खान गोविन्दा की दो-चार फिल्में देख लो। एक बार ढंग से जुमले बोलने लगे तो राजनीति में तुम्हारी पिक्चर हिट होने से मोदी, शाह जोड़ी भी नहीं रोक सकती क्योंकि जुमलेबाज होना हॉट सीट की सीढ़ी का पहला कदम माना जाता है। जय हो जुमलेबाजों की।
राही

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