उसने धीरे से कहा। उसने सिर उठाकर दुर्योधन की ओर देखा: उसका विचार था कि उसकी स्वीकृति पाकर दुर्योधन उठकर जाने की तैयारी करेगा; किंतु दुर्योधन तनिक भी जल्दी में नहीं लगता था। आप मेरी बात से सहमत होंगे मातुल! वह बोला, सारथि तो उसी को बनाना चाहिए, जो रथी से श्रेष्ठ योद्धा हो।
इसलिए मैंने आपका वरण किया है। वैसे कर्ण को भी मैं साधारण सूतपुत्र नहीं मानता हूं। मेरी दृढ़ मान्यता है कि वह किसी उत्तम क्षत्रिय की ही संतान है। किन्हीं कारणों से उसकी माता ने उसे सूतवंश में भिजवा दिया है। नहीं तो उसे भगवान परशुराम ने धनुर्वेद सिखाया होता? शल्य ने कर्ण का सारथि बनने की स्वीकृति तो दे दी थी; किंतु तत्काल ही उसके मन में उसकी प्रतिक्रिया भी आरंभ हो गई थी।
क्या उसने कर्ण का सारथि बनकर उचित किया? उसका एक मन था जो उसे इस निश्चय के लिए अनवरत धिक्कार रहा था। उसका तिरस्कार कर रहा था। और दूसरी ओर उसके मन का कोई कोना, इस चतुराई के लिए उसे बधाई दे रहा था। कितनी चतुराई से उसने कौरवों का अगला सेनापति पद हथिया लिया था।
क्या रखा है कौरवों के सेनापति पद में? उसका पहला मन तिरस्कारपूर्वक बोला, अब भीष्म और द्रोण जैसे लोग कौरवों के प्रधान सेनापति नहीं होते। अब कर्ण उनका प्रधान सेनापति है। कर्ण के बाद सेनापति होकर किस गौरव का अनुभव करेंगे शल्य? दुर्योधन की बात से शल्य की खीज बढ़ गई।
तुम्हें यह तो स्मरण है राजन्! कि कर्ण को भगवान परशुराम ने धनुर्वेद का ज्ञान दिया, किंतु यह भूल गए हो कि उसके झूठ और पाखंड से रुष्ट होकर उन्होंने उसे शाप भी दिया है। शाप का अर्थ समझते हो?
नरेंद्र कोहली के प्रसिद्ध उपन्यास से