शल्य ने कहा, मैं तो इतना ही जानता हूं कि गुरु का यह पश्चात्ताप शिष्य के चरित्र के दूषित होने का प्रमाणपत्र है। प्रमाणपत्रों को कौन देखता है आज। दुर्योधन कुछ कुटिल भाव से बोला, गुरु द्रोण ने भी तो कर्ण को शिक्षा नहीं दी। अर्जुन से भी अधिक अश्वत्थामा को सिखाया; किंतु आज कर्ण और अर्जुन दोनों ही उससे श्रेष्ठ योद्धा हैं। अश्वत्थामा युद्ध करे तो दोनों से ही पिट जाएगा।
गुरु के प्रमाणपत्र अथवा भाव का क्या करना है किसी को। परशुराम से कर्ण को जय नाम का धनुष प्राप्त हुआ था। वैसा श्रेष्ठ धनुष कितने लोगों के पास है। अग्नि बरसाता है वह धनुष। यदि शाप है, तो रहे किसी के भी मन में। हाथ में तो धनुष ही रहेगा। देखें अर्जुन क्या कर लेता है अपने गांडीव से, जो कर्ण अपने जय से नहीं कर सकता। यह धनुष तो कर्ण के पास पहले भी था।
क्या कर लिया कर्ण ने ? शल्य के जबड़े भिंचते चले गए। ठीक है, युद्ध में अनेक बार कोई योद्धा अपना बल कौशल पूरी तरह दिखा नहीं पाता; किंतु कल ऐसा नहीं होगा मातुल! अपने गुरु परशुराम के दिए हुए रथ और धनुष के बल पर आप देखेंगे कि कर्ण ने अर्जुन और कृष्ण- दोनों को ही जय कर लिया है। कर्ण संसार का सर्वश्रेष्ठ योद्धा प्रमाणित होगा और उसके घोड़ों को हांकने का गौरव मिलेगा आपको। दुर्योधन उठ खड़ा हुआ, अच्छा! चलता हूं। कल के लिए बहुत कुछ तैयार भी करना है।
शल्य स्तब्ध-सा खड़ा रह गया। कितना बड़ा पुरस्कार दे गया है दुर्योधन उसे। कर्ण के घोड़ों को हांकने का गौरव। कैसा गौरव है यह? वीरों के विश्वविख्यात वंश के किरीटधारी राजा का गौरव- दुर्योधन की चाटुकारिता के प्रभाव से सेनापति का पद पाने वाले के रथ के घोड़ों को हांकने का गौरव?
नरेंद्र कोहली के प्रसिद्ध उपन्यास से