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Patrika Opinion : घाटी के बहुसंख्यकों को उठानी होगी आवाज

घाटी में 90 के दशक में आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू ही किया था। उस समय भी चुन-चुनकर कश्मीरी पंडितों को मारा गया। उसके बाद वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन हुआ। तब से घाटी में आतंक का एक लंबा इतिहास लिखा जा चुका है।

नई दिल्लीOct 08, 2021 / 08:14 am

Patrika Desk

Patrika Opinion : घाटी के बहुसंख्यकों को उठानी होगी आवाज

Patrika Opinion : घाटी के बहुसंख्यकों को उठानी होगी आवाज

जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ दिनों में हत्याओं का नया सिलसिला शुरू हो गया। आतंकी जिस तरह से बेकसूर लोगों को निशाना बना रहे हैं उससे 90 के दशक का दौर स्मरण हो आता है। तब घाटी में आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू ही किया था। उस समय भी चुन-चुनकर कश्मीरी पंडितों को मारा गया। उसके बाद वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन हुआ। तब से घाटी में आतंक का एक लंबा इतिहास लिखा जा चुका है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद जम्मू-कश्मीर केंद्र की सर्वोच्च प्राथमिकता में रहा है। राज्य में अनुच्छेद 370 को शिथिल करने के साथ लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने और जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लागू करके आतंकियों का पूरी तरह सफाया करने का अभियान चलाया गया। उससे ऐसा जरूर लग रहा था कि आतंकियों की कमर टूट चुकी है। लेकिन, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद ऐसा लगता है कि पाकिस्तान पोषित आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है। पिछले मंगलवार को श्रीनगर के अतिसुरक्षित क्षेत्र इकबाल पार्क में चर्चित दवा विक्रेता माखन लाल बिंदरू की हत्या की गई, जिन्हें 90 के दशक की घटनाएं भी नहीं डिगा सकी थीं। उसी दिन लालबाजार इलाके में फुटपाथ पर भेलपुरी बेचने वाले को मार डाला गया तो बांदीपोरा जिले में एक आम नागरिक की हत्या कर दी गई। उससे पहले शनिवार को श्रीनगर में मोहम्मद माजिद अहमद गोजरी और मोहम्मद शफी डार की हत्या इसलिए कर दी गई कि उन पर सुरक्षा बलों के लिए मुखबिरी का शक था। इन हत्याओं के सदमे से घाटी अभी उबरी भी नहीं थी कि गुरुवार को एक स्कूल में घुसकर आतंकियों ने प्रिंसिपल और टीचर को गोली मार दी।

इन हमलों में खास बात यह देखी जा रही है कि कश्मीरी पंडितों, सिखों या अन्य गैर मुसलिमों पर लक्षित हमले किए जा रहे हैं। स्थानीय मुस्लिमों को सुरक्षा बलों की मदद करने के कारण टारगेट किया जा रहा है। मारे गए स्कूल टीचर दीपक चांद के परिजन का कथन – कश्मीर स्वर्ग नहीं नर्क है, हमें 30 सालों से निशाना बनाया जा रहा है – हालात की भयावहता बताता है। केंद्र की कोशिश जम्मू-कश्मीर को फिर से जन्नत बनाने की भले ही हो पर जमीनी हालात बता रहे हैं कि लक्ष्य अभी कोसों दूर है। घाटी में हुईं ताजा आतंकी वारदात सरकार की उस कोशिश को पलीता लगाने वाली हैं जिसके तहत कश्मीरी पंडितों को फिर से वहां बसाने के प्रयास हो रहे हैं। घाटी का मिजाज सांप्रदायिक सौहार्द वाला रहा है। इसलिए जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो वहां की बहुसंख्यक आबादी की ज्यादा जिम्मेदारी बनती है कि वह मुखर होकर इसका विरोध करे।

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