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क्या जानलेवा भी साबित हो सकता है दूध ?

पशु एफ्लाटॉक्सिन बी-1 और बी-2 दूषित चारा खा लेते हैं, तो उनमें एफ्लैटॉक्सिन एम-1 और एम-2 बनता है। यह दूध में भी आ जाता है ।पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे की लगातार जांच होनी चाहिए ।

Jun 30, 2021 / 11:21 am

विकास गुप्ता

क्या जानलेवा भी साबित हो सकता है दूध ?

क्या जानलेवा भी साबित हो सकता है दूध ?

मेनका गांधी, (सांसद और पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय)

भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) ने देश भर में दूध पर एक विस्तृत सर्वे किया, जिसके परिणाम करीब दो साल पहले जारी किए गए थे। इसके अनुसार दूध में भारी मात्रा में एफ्लाटॉक्सिन और खतरनाक कैंसरकारी तत्व पाए गए। तमिलनाडु, दिल्ली व केरल में दूध में एफ्लाटॉक्सिन की अत्यधिक उच्च मात्रा पाई गई। एफ्लाटॉक्सिन फंगस जनित 20 विषाक्त पदार्थ हैं। इनमें प्रमुख हैं-ए. फ्लेवस, ए. पैरासिटिकस और ए. नॉमियस। जिन फसलों पर एफ्लाटॉक्सिन का प्रकोप होता है, उनमें अधिकतर एफ्लाटॉक्सिन बी-1 पाया जाता है। जब गाय, भैंस बकरी या दूसरे पशु एफ्लाटॉक्सिन बी-1 और बी-2 दूषित चारा खा लेते हैं, तो उनके लिवर में एफ्लाटॉक्सिन एम-1 और एम-2 बनता है। यह उनके दूध में भी आ जाता है। यह दूध हम पीते हैं, जो खतरनाक साबित होता है।

एफ्लाटॉक्सिन अत्यधिक विषाक्त पदार्थ है, जिसका असर लम्बे समय तक रहता है। एफ्लाटॉक्सिन बी-1 और एम-1 लिवर को नुकसान पहुंचाने, सिरोसिस और कैंसर का कारण हो सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान एजेंसी (आइएआरसी) ने इसे कैंसरकारी माना है। एफ्लाटॉक्सिन पैदा करने वाली फंगस गर्म स्थानों में फसलों को प्रभावित करती है। आमतौर पर यह मूंगफली, मक्का और कपास पर पाई जाती है, लेकिन यह गेहूं, कसावा, तिलहन, फल और फलियों पर भी पाई जाती है।

एस्परगिलस फ्लेवस और एस्परगिलस पैरासिटीकस नामक फंगस मिट्टी में विकसित होती है। इससे वनस्पति, सूखी घास और अनाज की फसल का क्षरण होता है। फंगस को पनपने के लिए कम से कम 25 डिग्री तापमान होना चाहिए, लेकिन फंगस 10 से 12 डिग्री में भी पनपने लगती है। अकाल पडऩे पर फंगस लगने की आशंका और बढ़ जाती है। फसल कटाई के बाद उसके भंडारण के दौरान भी फंगस पनप सकती है, जहां फसल सूखने में समय लग गया हो और नमी का वातावरण हो। फसलों के ढेर में चूहों और कीड़ों से भी संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। खेतों से शुरू हुआ एफ्लाटॉक्सिन फंगस खाद्य भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण तक पूरी खाद्य शृंखला में पहुंच जाता है। पशु-पक्षियों के खान-पान के जरिए ये अंडों और दूध में पहुंचता है। दूध खाद्य शृंखला में एफ्लाटॉक्सिन पहुंचाने का मुख्य स्रोत है। इसमें एम-1 और बी-1 दोनों प्रकार पाए जाते हैं। दूध में घुल जाने के बाद एफ्लाटॉक्सिन उसे उबालने और पाश्चुरीकृत करने से भी नहीं हटता।

फरवरी 2018 में प्रकाशित डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस फंगस से कैंसर का खतरा है। एक किलोग्राम खाने में अगर मात्र एक मिलीग्राम भी एफ्लाटॉक्सिन हो तो उससे जी मिचलाना, उल्टी, पेट दर्द और ऐंठन, लिवर खराब होने, पीलिया, थकान आदि की समस्या होने लगती है। इससे रोगी की मृत्यु तक हो सकती है। एक से तीन सप्ताह की अवधि में एफ्लाटॉक्सिन बी-1 की 20 से 120 माइक्रो ग्राम प्रति किलोग्राम डोज का सेवन प्रतिदिन करने से यह अत्यधिक विषाक्त और घातक साबित होता है। इससे संक्रमित व्यक्ति का डीएनए भी खराब हो सकता है, जिसका असर अगली पीढिय़ों पर भी नजर आता है।

इसलिए पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे की निरंतर जांच होनी चाहिए। दूध की जांच भी प्रतिदिन होनी चाहिए। किसी किसान द्वारा लाए गए दूध के खराब पाए जाने पर उसकी आपूर्ति पर रोक लगा देनी चाहिए। किसानों को इस फंगस के बारे में जागरूक करना जरूरी है। डेयरी मालिकों को भी दूध में पाए जाने वाले एफ्लाटॉक्सिन फंगस के बारे में जानकारी नहीं है। चूंकि दूध शिशुओं का प्रमुख आहार है। इसलिए दूध देने वाले पशुओं को दिए जाने वाले चारे के बारे में खास सतर्कता जरूरी है।

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