केन्द्र में मंत्रिमंडल का ताजा फेरबदल आमजन को जताने की कोशिश लगती है कि सरकार अपने शेष कार्यकाल में जनता से किए गए वादों पर खरा उतरने की पूरी ताकत लगा देगी। इसीलिए फेरबदल में परफोरमेंस पर जोर दिया गया है। मिशन-३५० को लक्ष्य करते हुए अगले चुनाव की तैयारी में जुटी भाजपा के लिए कैसा रहेगा यह फेरबदल?
प्रधानमंत्री ने संकेत देने की कोशिश की है कि मंत्रियों को परिणाम देने ही होंगे। यह बात जनमानस में घर करने लग गई थी कि सरकार के कई प्रोजेक्ट सिर्फ बातों तक ही सीमित हैं। गंगा पुनरुद्धार, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया व स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप गति नहीं पकड़ पा रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी चौंकाने वाले फैसलों के लिए जाने जाते हैं। इस बार भी मंत्रिमंडल विस्तार व फेरबदल हुआ तो उनके फैसले सियासी पंडितों के अनुमान के विपरीत निकले। हमेशा की तरह इस बार भी शामिल किए जाने वाले व हटाए जाने वाले मंत्रियों के बारे में कयास से आगे नहीं बढ़ पाए। पहले जब मंत्रियों से इस्तीफे लिए गए तब भी और इसके बाद जब फेरबदल व विस्तार हुआ तब भी तमाम राजनीतिक अटकलों के विपरीत नतीजे आए। जो सबसे चौंकाने वाला फैसला रहा वह था निर्मला सीतारमण को देश की रक्षा मंत्री का अहम जिम्मा सौंपना। निर्मला सीतारमण को देश की पहली महिला रक्षामंत्री होने का गौरव प्राप्त हुआ है।
इससे पहले इंदिरा गांधी भी रक्षा मंत्री रहीं लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री रहते हुए रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाला था। वरिष्ठ मंत्री वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बनने और अनिल माधव दवे के असामयिक निधन से सूचना एवं प्रसारण और वन व पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय की रिक्तियों को भरना था। अरुण जेटली भी वित्त एवं रक्षा जैसे दो महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे थे। ऐसे में मंत्रिमंडल विस्तार जरूरी समझा जा रहा था।
इस फेरबदल में जहां मंत्रियों के अब तक के कामकाज को आधार बनाते हुए कुछ मंत्रियों को पदावनत किया गया, वहीं कुछ को पदोन्नत भी किया गया। यानी, प्रधानमंत्री ने एक तरह से संकेत देने की कोशिश की है कि मंत्रियों को परिणाम देने ही होंगे। ऐसा इसलिए भी जरूरी हो गया था क्योंकि यह बात जनमानस में घर करने लग गई थी कि सरकार के कई महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सिर्फ बातों तक ही सीमित हैं। गंगा पुनरुद्धार, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया व स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री की मंशा के अनुरूप गति नहीं पकड़ पा रहे थे। अपने मंत्रालयों में कमजोर परफोरमेंस के कारण राजीव प्रताप रूडी व संजीव बालियान को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता देखना पड़ा। वहीं सुरेश प्रभु लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं की वजह से आलोचना के घेरे में आ गए थे। ऐसे में उनका मंत्रालय बदलने में किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। यह बात और है कि प्रभु पहले ही सार्वजनिक तौर पर अपने इस्तीफे की पेशकश कर चुके थे। कहा तो यह जा रहा है कि भाजपा की फायरब्रांड नेत्री उमा भारती खुद ही स्वास्थ्य कारणों से मंत्री पद छोडऩा चाहती थीं। लेकिन पर्दे के पीछे यह कहानी भी है कि संघ की चहेती होनी की वजह से मोदी-अमित शाह की जोड़ी उनको बाहर का रास्ता नहीं दिखा सकी।
खेल मंत्री का स्वतंत्र प्रभार देख रहे विजय गोयल को खराब स्वास्थ्य और दिल्ली की राजनीति में खेल मंत्रालय को घसीटने के कारण विभाग बदलकर संसदीय मामलों व सांख्यिकी जैसे मंत्रालय का राज्यमंत्री बनाया गया। मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने कई पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों को अहम जिम्मेदारियां सौंपी थी। उनका मानना है कि पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अधिक कुशलता व तत्परता से काम को अंजाम देते हैं। इसी गुजरात मॉडल के तहत उन्होंने इस विस्तार में पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों को जगह दी है। नौकरशाह रहे आर.के. सिंह, हरदीप पुरी और अल्फोंज कन्नथानम के अनुभवों का भी सरकार चलाने में फायदा मिलेगा, यह उम्मीद की जानी चाहिए।
एक तरह से इस फेरबदल में यह संकेत देने की कोशिश भी की गई है सिर्फ चुनाव जीत कर आने वाले ही नहीं काबिल व्यक्तियों की तलाश सदनों से बाहर भी की जा सकती है। जहां तक किसी महिला को रक्षा मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद संभालने का सवाल है सीतारमण ने वाणिज्य, उद्योग व वित्त राज्यमंत्री रहते हुए अपने कामकाज की छाप छोड़ी है। रक्षा क्षेत्र में भी सरकार एफडीआई लाना चाहती है। ऐसे में सीतारमण की स्वच्छ छवि, वित्त मामलों की समझ और निर्णय लेने की क्षमता पर भरोसा करते हुए मोदी ने उनको यह दायित्व सौंपा है। रक्षा मंत्री जैसे अहम पद पर महिला को लाकर भाजपा का एक लक्ष्य महिला वोटरों को रिझाना हो सकता है।
यह भी देखना होगा कि वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बनने के बाद भाजपा के पास दक्षिण में कोई बड़ा चेहरा नहीं है। सीतारमण को आगे कर दक्षिण में आंशिक ही सही, इसे वैंकेया की जगह लेने की भी कवायद भी समझा जा रहा है। हां, एनडीए के सहयोगी दलों में से किसी को इस विस्तार में शामिल नहीं करना जरूर चौंकाने वाला रहा। वर्ष २०१९ में लोकसभा के चुनाव होने हैं। इससे पहले मोदी के गृह राज्य गुजरात समेत कई राज्यों में भाजपा को विधानसभा चुनावों का भी सामना करना है। पंजाब को छोडक़र भले ही भाजपा का विजय रथ देशभर में आगे बढ़ा है लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि दो साल बाद होने वाले चुनावों में भाजपा को कहीं न कहीं एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर का सामना भी करना पड़ सकता है।
इस कारण उत्तरी भारत में यदि कोई नुकसान होता है तो भाजपा इसकी भरपाई दक्षिण से करना चाहेगी। इसीलिए वह दक्षिण में जनाधार खड़ा करना चाहती है। मिशन-३५० के तहत वर्ष २०१९ में भाजपा का लक्ष्य अकेले दम पर लोकसभा की ३५० सीटें हासिल करना है। ऐसे में यह फेरबदल एक तरह से आगामी चुनावों पर निशाना साधने जैसा ही माना जाना चाहिए। अब और फेरबदल होगा इसकी उम्मीद कम ही है।