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बंदरों का टेंडर

गुलाबी नगर में लाल मुंह के बंदरों ने आतंक मचा रखा है।बेचारी जनता
बंदरों के डर से हाय-हाय कर रही है पर सरकारी अफसरों के कान पर जूं नहीं
रेंग रही

Apr 26, 2016 / 11:31 pm

शंकर शर्मा

Opinion news

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अपने प्यारे देश की नौकरशाही की सबसे बड़ी खूबी है कि यह तब जागती है जबकि किसी की मौत न हो जाए। हमने एकाध नहीं कई मामलों में यह करिश्मा होते हुए देखा है। हम जिस चौराहे से गुजरते हैं वह राजधानी का सबसे खतरनाक चौराहा है। कहने को यहां लाल-पीली-हरी लाइट्स लगी हुई हैं लेकिन यहां कभी ट्रैफिक पुलिस का सिपाही खड़ा नहीं होता। और जैसी कि अपने देश के ‘सभ्य’ नागरिकों की आदत है वे वाहन को लालबत्ती पर तब तक नहीं रोकते जब तक कि उनके मन में सिपाहीजी का खौफ न हो।

इसलिए इस चौराहे से गुजरते वक्त हमेशा हमारी जान हथेली पर रखी रहती है और चौराहा पार करने के बाद हम ऐन चौराहे के किनारे बने मंदिर में रखी मूर्ति को मन ही मन प्रणाम करते हुए कहते हैं- हे बजरंग बली। जैसे आज जीते-जागते साबुत हाथ पैरों के यह चौराहा पार कराया कल भी ऐसी ही कृपा रखना और कपिश्रेष्ठ!

अब कपिश्रेष्ठ शब्द से हमें ख्याल आया कि आजकल गुलाबी नगर में लाल मुंह के बंदरों ने आतंक मचा रखा है।बेचारी जनता बंदरों के डर से हाय-हाय कर रही है पर सरकारी अफसरों के कान पर जूं नहीं रेंग रही। उनसे शिकायत की जाए तो वे कह रहे हैं कि अभी बंदरों का टेण्डर नहीं हुआ और इस बीच एक निर्दोष किशोर छत से गिर कर अपनी जान गंवा बैठा। अब बताइए कि जनता करे तो करे क्या? अगर अधिकारियों के पास जाकर शिकायत करती है तो ऐसा ही हुआ जैसे सांप काटने की शिकायत सांप से ही की जाए।

हमें लगता है कि इस अंधे राज में कोई सुनने वाला ही नहीं बचा। जो सरकार के मुखिया हैं उन्हें खतरनाक बंदरों की बजाय राजधानी में क्रिकेट मैच कराने की ज्यादा चिन्ता है जिससे कि सट्टाखोरों को मजे से सट्टेबाजी करने का सुअवसर मिल सके। बहरहाल बंदरों को ज्यादा चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। वे मजे से जनता को काटते रहे, डराते रहे, लभूरते रहे। फ्रीज खोल कर खाने की चीजें पार कर सकते हैं क्योकि अपने देश में टेण्डर की प्रक्रिया में कम से कम एक महीना तो लगता है। पहले टेण्डर नोटिस बनता है, फिर अखबार में छपता है, फिर टेण्डर आते हैं, फिर टेण्डर खुलते हैं, फिर ‘लोएस्टÓ को आदेश दिया जाता है।

फिर वह काम शुरू करता है। इस बीच कई काम छोड़ कर भाग भी जाते हैं जैसे कि राजधानी में फ्लाईओवर बनाने वाले आधा काम छोड़ कर भाग गए थे। जब तक बंदर पकड़ने की टेण्डर प्रक्रिया पूरी न हो तब तक राजधानी के उन क्षेत्रों में बसने वाले नागरिक, जहां बंदरों का आतंक है, अपना घर छोड़कर अपने रिश्तेदारों या सुरक्षित जगहों पर पलायन कर सकते हैं। टेण्डर हो जाने के बाद भी जरूरी नहीं कि बंदर पकड़ ही लिए जाएं। अब बंदरों पर किसका बस। बंदर टेण्डर से डरते थोड़ी हैं। राही

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