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ओपिनियन

व्यापक संसाधनों से ही होगी पर्यावरण रक्षा

शाश्वत ऊर्जा या अक्षय ऊर्जा स्रोतों के हिस्से को कुल ऊर्जा खपत में बढ़ाना बहुत जरूरी है ताकि ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सके। पर यह चिंता की बात है कि इसके लिए पहले से स्वीकृत राशि में बहुत कटौती की गई।

Feb 23, 2017 / 03:29 pm

पर्यावरण की रक्षा संबंधी व्यापक व बढ़ती जिम्मेदारियों को देखते हुए बेहतर संसाधनों की जरूरत हमेशा बनी रहती है। खासतौर से जलवायु बदलाव जैसी गंभीर समस्याओं के दौर में तो ये जिम्मेदारियां और भी बढ़ गई हैं। 
इस संदर्भ में यदि हम केन्द्रीय सरकार के पर्यावरण, वन व जलवायु बदलाव मंत्रालय के लिए उपलब्ध बजट को देखें तो वर्ष 2014-15 में इस मंत्रालय का कुल वास्तविक खर्च 1599 करोड़ रुपए था। वर्ष 2015-16 के बजट में यह खर्च 1521 करोड़ रुपए पर सिमट गया। 
वर्ष 2016-17 में वास्तविक खर्च के आंकड़े तो अभी प्राप्त नहीं है, पर इस वर्ष के बजट में जो आवंटन हुआ, उसमें महत्त्वपूर्ण वृद्धि नजर आती है। क्योंकि वर्ष 2015-16 के 1521 करोड़ रुपए के वास्तविक खर्च की अपेक्षा इस वर्ष (2016-17) में पर्यावरण मंत्रालय के लिए 2250 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ। 
बाद में संशोधित बजट में इसे और बढ़ा कर 2328 करोड़ रुपए कर दिया गया। पर यदि हम इस वर्ष प्रस्तुत बजट यानी 2017-18 के बजट को देखें तो केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के बजट में मामूली सी वृद्धि हुई है। पिछले वर्ष के 2328 करोड़ रुपए के अनुमान की अपेक्षा इस वर्ष के बजट में मात्र 2675 करोड़ की ही व्यवस्था की गई है। 
महंगाई के असर को दूर करने के बाद तो यह वृद्धि और भी नाममात्र की ही नजर आती है। पर्यावरण की रक्षा व जलवायु बदलाव के विपरीत असर पर नियंत्रण के लिए उपलब्ध संसाधनों के समग्र आकलन के लिए हमें कुछ अन्य मंत्रालयों के बजट को भी जानना होगा। 
शाश्वत ऊर्जा या अक्षय ऊर्जा स्रोतों के हिस्से को कुल ऊर्जा खपत में बढ़ाना बहुत जरूरी है ताकि ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सके। पर यह चिंता की बात है कि इसके लिए पहले से स्वीकृत राशि में बहुत कटौती की गई। 
वर्ष 2016-17 वित्तीय वर्ष के बजट के मूल आवंटन के अनुसार ग्रिड से जुड़े अक्षय ऊर्जा के विकास के लिए 3519 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई थी जिसे बाद में संशोधित अनुमानों में कम कर 3091 करोड़ रुपए कर दिया गया। ग्रिड से हटकर विकेंद्रित अक्षय ऊर्जा विकास के लिए 983 करोड़ रुपए की व्यवस्था थी जिसे कम कर 808 करोड़ रुपए कर दिया गया। 
साफ पेयजल की उपलब्धि पर्यावरण की रक्षा व स्वास्थ्य की रक्षा इन दोनों संदर्भों में एक अहम लक्ष्य है। राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के लिए 6050 करोड़ की ही व्यवस्था है। कुल मिलाकर पर्यावरण रक्षा व इससे जुड़े विषयों पर बेहतर संसाधन उपलब्ध कराने की जरूरत अभी बनी हुई है।

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