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बहुत कुछ रह गया अनुत्तरित( नीरजा चौधर/ डॉ. सतीश मिश्रा )

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने एक न्यूज चैनल को दो दिन
पूर्व साक्षात्कार दिया। देश का मीडिया उनसे बतौर प्रधानमंत्री बातचीत की
उम्मीद लगाए रहा पर वे ‘मन की बात’ के जरिए एक तरफा संवाद करते

Jun 28, 2016 / 11:39 pm

शंकर शर्मा

opinion news

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प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने एक न्यूज चैनल को दो दिन पूर्व साक्षात्कार दिया। देश का मीडिया उनसे बतौर प्रधानमंत्री बातचीत की उम्मीद लगाए रहा पर वे ‘मन की बात’ के जरिए एक तरफा संवाद करते रहे। अब उन्होंने पहली बार दो तरफा संवाद तो किया लेकिन देश के शेष मीडिया को छोड़ दिया। उन्होंने सुब्रमण्यम स्वामी को इशारों में नसीहत दी, घरेलू राजनीति, विदेश नीति, आर्थिक सोच, नौकरशाही, देश भर में एक साथ चुनाव के मुद्दों पर वे खुलकर बोले भी लेकिन बहुत से प्रश्न अब भी अनुत्तरित हैं। सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों पर इतनी हल्की प्रतिक्रिया की उम्मीद उनसे नहीं थी। क्या इसके पीछे कोई विशेष रणनीति थी? ऐसे कौनसे सवाल हैं जो अब भी अनुत्तरित हैं? ऐसे ही सवालों पर विशेषज्ञों के जवाब स्पॉटलाइट में…



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतने लंबे समय बाद एक चैनल को चुना अपनी बात कहने के लिए। निस्संदेह यह उनका अधिकार है कि वे किस चैनल से बात करके, अपनी बात लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। सो उन्होंने किया। चूंकि भारतीय मीडिया के सामने बोलने को लेकर उन्होंने शुरुआत कर दी है तो अब उम्मीद की जा सकती है कि वे जल्दी ही देश के अन्य समाचार पत्र-पत्रिकाओं और चैनलों के प्रतिनिधियों से भी बात करेंगे। बहुत सी बातें रह जाती हैं एक ही माध्यम से बात करने में। कुछ प्रतिप्रश्न होते हैं, उनके उत्तर छूट जाते हैं। बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अनेक किस्म के सवाल होते हैं जिनसे बच पाना कठिन होता है।

साक्षात्कार का समय
यह बात बहुत अधिक नहीं चौंकाती कि एक ही चैनल से उन्होंने क्यों बात की बल्कि इस साक्षात्कार का जो समय चुना गया वह जरूर चौंकाने वाला और रोचक है। ऐसा लगता है कि यह सब प्रधानमंत्री की रणनीति ही एक हिस्सा था। उन्होंने इस चैनल को डेढ़ घंटे का समय दिया और इस दौरान सभी प्रश्नों का बेहद सहज तरीके से मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। आमतौर पर प्रधानमंत्री से इतना समय नहीं मिला करता।

उल्लेखनीय यह भी है कि इस साक्षात्कार के लिए समय तब दिया गया जबकि राज्यसभा सदस्य और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी वित्तमंत्री अरुण जेटली और उनके मातहत काम करने वाले कार्यालयों पर बयानों से हमले पर हमले बोल रहे थे। क्या-क्या नहीं कहा उन्होंने। भाजपा में एक तरह से सन्नाटा छाया हुआ था और कोई भी स्वामी के बयानों पर टिप्पणी नहीं कर रहा था। सभी ने उनका निजी मत कहकर उनके बयानों से कन्नी काटी। हमें यह भी समझना चाहिए कि वित्त मंत्री के बारे में कुछ कहने का अर्थ है कि पूरी सरकार जिसके मुखिया खुद प्रधानमंत्री हैं, के बारे में कहना।

जेटली पर हमले तब अधिक हुए जब वे चीन गए हुए थे। उनके पहनावे तक पर बयान दिए गए। वे प्रधानमंत्री से मिलने वाले थे लेकिन इस मुलाकात से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने यह साक्षात्कार दिया। इस साक्षात्कार में उन्होंने स्वामी को इशारों में चुप रहने को जरूर कहा। उन्होंने ऐसे बयानों को निजी प्रचार के लिए किया गया स्टंट कहा। लेकिन, ऐसा लगा कि प्रधानमंत्री ने स्वामी की बातों पर प्रतिक्रिया तो दी लेकिन बेहद हल्की। अब अरुण जेटली से मुलाकात में वे औपचारिकता के लिए कह सकते हैं कि स्वामी को चुप करा दिया गया है। लेकिन, प्रधानमंत्री के इस व्यवहार ने अरुण जेटली के कद में जरूर कमी कर दी है।

पूरी तरह तैयार थे मोदी
हर प्रश्न का प्रधानमंत्री मोदी ने हंसते हुए उत्तर दिया और लगा कि वे पूरी तैयारी के साथ प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। उन्होंने बताया कि सरकार ने किस तरह से सारा फोकस गरीब और गरीबी पर रखा है। ऐसा लगता है कि वे कांग्रेस की पुरानी नीति पर ही चल रहे हैं। विदेश नीति को लेकर भी उन्होंने सहजता के साथ जवाब दिए। उन्होंने इशारों में ही कांग्रेस को भी नसीहत दे डाली। उन्होंने बहुत ही सही बात भी कही कि जब आप सत्ता में नहीं होते हैं तो बहुत सी बातें आपको पता नहीं होती हैं। लेकिन, अब आप सत्ता के बाद विपक्ष में होते हैं तो आपको बहुत सी बातें पता होती हैं। ऐसे में जिम्मेदारी के साथ व्यवहार करना बहुत ही जरूरी हो जाता है।

विदेश नीति पर जोर
उन्होंने विदेश नीति के बारे में भी स्पष्ट किया कि जब आप बहुमत में होते हैं तो आप अपनी बात को मजबूती से रख पाते हैं। दुनिया बात को उसी तरह से स्वीकार भी करती है। उन्होंने नौकरशाही के संदर्भ में भी कहा कि अब उनके साथ ताल से ताल मिलाकर चल रही है। जो साथ काम करने लायक नहीं थे, उनके स्थानांतरण भी किए गए हैं और कुछ को हटा दिया गया है। उन्होंने देश भर में एक साथ चुनाव कराए जाने के मुद्दे पर पूरी गंभीरता से विचार करने की बात कही और कहा कि ऐसा करने में काला धन बहुत इस्तेमाल होता है।

इस संदर्भ में सकारात्मक तरीके से सोचने की आवश्यकता है। हालांकि बहुत से ऐसे सामाजिक मुद्दे थे, जिन पर सवाल-जवाब किए जाने चाहिए थे पर वे अनुत्तरित रह गए। लेकिन, उम्मीद कर सकते हैं कि जब वे व्यापक भारतीय मीडिया से रूबरू होंगे, तो उनसे उन मुद्दों पर भी बात होगी।

मुद्दे- इनके भी जवाब जानना चाहती है जनता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चैनल को साक्षात्कार दिया और देश के सामने बहुत सी बातों पर अपना पक्ष रखा। लेकिन, एक ही चैनल से बातचीत में अकसर ऐसा होता है कि बहुत ही बातें अनकही रह जाती हैं। बहुत से प्रश्न जिनके जवाब जनता जानना चाहती है, छूट जाते हैं। इस साक्षात्कार में भी बहुत से प्रश्न छूट गए।

कैराना मामला
पीएम मोदी ने कहा कि उत्तर प्रदेश में विकास के मुद्दे पर बात होनी चाहिए पर पार्टी से सांसद, विधायक और पार्टी अध्यक्ष कैराना में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश में लगे हुए हैं। बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने कुछ दिन पहले यहां से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था जो सही नहीं निकला।

उत्तराखंड राष्ट्रपति शासन
भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर राज्य सरकारों को अस्थिर करने के आरोप लगे। विशेषतौर पर उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाकर सरकारें गिराने की कोशिश की गई। इन मामलों में सरकार की उसके फैसले को लेकर किरकिरी बहुत हुई।

डिग्री विवाद
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री को लेकर विवाद गहरा गया। उनके अलावा मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के खिलाफ आरोप लगा कि उन्होंने चुनाव आयोग को वर्ष 2004 और 2014 के आम चुनावों में अपनी डिग्री के बारे में अलग-अलग हलफनामे दिए थे।

चेतन चौहान और गजेंद्र चौहान की नियुक्ति
हाल ही में में राष्ट्रीय फैशन टेक्नोलोजी संस्थान (निफ्ट) में क्रिकेटर से राजनेता बने चेतन चौहान की नियुक्तिपर सवाल उठे। इसके अलावा पूर्व में पुणे स्थित फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के अध्यक्ष बने गजेंद्र चौहान के खिलाफ छात्रों ने लंबा आंदोलन चलाया था।

एस्सार लीक्स
हाल ही में उजागर इस टेपकांड ने एक बार फिर से राजनीति और कॉरपोरेट जगत की मिलीभगत के संकेत दिए हैं। इस टेपकांड में कई नेताओं, नौकरशाहों और बिचौलियों की बातचीत सामने आई है। पूववर्ती एनडीए सरकार के कार्यकाल के कई मंत्री इस टेपकांड की चपेट में हैं।

ललित मोदी स्कैंडल
क्रिकेट के नए संस्करण इंडियन प्रीमियर लीग में वित्तीय गड़बडिय़ों के आरोपी ललित मोदी को ब्रिटिश यात्रा दस्तावेज दिलाने में ‘मदद’ करने के आरोप में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का नाम सामने आया था। इस मामले में पार्टी की काफी आलोचना हुई।

व्यापम घोटाला
भाजपा शासित मध्य प्रदेश में उसके पिछले कार्यकाल में व्यापमं घोटाला सामने आया था। इस घोटाले से जुड़े करीब 50 लोगों की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है। शुरुआत में इसमें कई नेताओं के नाम उछले थे लेकिन हालिया चार्जशीट में किसी भी नेता का नाम इसमें शामिल नहीं है।


चीनी नेता का वीजा रद्द करना
इसी साल अप्रेल में चीन के असंतुष्ट नेता डोल्कुन ईसा का वीजा रद्द करने के बाद भारत ने चीन की एक अन्य असंतुष्ट नेता लु जिंगुआ और कार्यकर्ता आर.वांग का वीजा भी रद्द कर दिया। माना गया है कि भारत इन असंतुष्ट नेताओं को वीजा देकर चीन से नाराजगी मोल नहीं चाहता था।

बीफ पर प्रतिबंध
पिछले साल दिल्ली से सटे दादरी इलाके में भीड़ ने ईद के मौके पर गौ मांस (बीफ) रखने के शक में अखलाक नाम के व्यक्तिकी पीट-पीटकर हत्या कर दी और उसके बेटे को अधमरा कर दिया। इसके बाद भी गौ मांस को लेकर लगातार देश के कई हिस्सों से हिंसा की खबरें आती रहीं।

रोहित वेमुला आत्महत्या
हैदराबाद विवि. के स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में केंद्रीय मंत्री व भाजपा नेता बंडारू दत्तात्रेय व मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की भूमिका संदेहास्पद रही। आत्महत्या का कारण प्रशासनिक रवैये से तंग होना बताया गया। भाजपा पर दलित विरोधी होने का आरोप लगा।

भारत- नेपाल संबंध
नेपाल में संविधान को लेकर मधेशी समुदाय की चितांओं के बीच भारत – नेपाल संबंधों को झटका लगा। पिछले साल नेपाल ने भारत पर नाकाबंदी का आरोप लगाया था जिससे नेपाल में जरूरी सामान की आपूर्ति रुक गई थी। हाल के दिनों में नेपाल का झुकाव चीन की ओर बढ़ा है।


उन्होंने जताया कि वे काम करने में जुटे हैं
भारत के जनमानस में जो तमाम मुद्दे अभी मौजूद हैं, जिनके जवाब जनता चाहती है, उन सब से जुड़े सवाल और जवाब इस साक्षात्कार में नहीं थे। मोदी ने कहा कि उन्होंने महंगाई कम की है लेकिन जनता से पूछें तो वह महंगाई से लगातार जूझ रही है। इसी तरह हिंदुत्व के मुद्दे पर जगह-जगह धु्रवीकरण होता है। भाजपा के नेता भड़काने वाले बयान देते हैं। उस पर कोई चर्चा नहीं की। सुब्रमण्यम स्वामी के बारे में भी अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होंने जवाब दिया। उन्होंने सीधे नाम लेकर नहीं कहा कि स्वामी को या योगी आदित्यनाथ को या फिर अन्य बड़बोले नेताओं को बेवजह विवाद पैदा नहीं करना चाहिए। इस साक्षात्कार में ऐसा लगा कि सवालों के जवाब पहले बनाए जा चुके थे।

काउंटर सवाल होने चाहिए
आमतौर पर प्रधानमंत्री मीडिया से दूरी बनाए रखते हैं। सोशल मीडिया पर यह टिप्पणियां चल रही हैं कि यह साक्षात्कार प्रायोजित था। हालांकि मोदी ने मुद्दों को सामने रखने का प्रयास किया। उन्होंने मीडिया से बात करने की खानापूर्ति जरूर की है। वैसे तो वे खुद ही देश से मन की बात करते ही हैं। पर जो जवाब उन्होंने दिए उनके काउंटर सवाल साक्षात्कार से गायब थे। जो असली मुद्दे जनता के समक्ष अभी हैं, उन पर जवाब दिए जाने थे। मोदी ने विदेश नीति, एनएसजी, टैक्स आदि पर बात की, वह सीधे आम आदमी से जुड़ा मुद्दा नहीं है।

स्थानीय स्तर पर तो जनता आज भी भ्रष्टाचार और नौकरशाही की लेटलतीफी से जूझ रही है। केवल दिल्ली में हुए कुछ सुधारों से देश लाभांवित हो रहा है, ऐसा नहीं माना जा सकता है। पूर्व में रहे प्रधानमंत्री भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते थे और साक्षात्कार भी देते थे। वैसे ही मोदी को भी पूरे मीडिया से रू-ब-रू होते रहना चाहिए, उन्होंने चुनाव के बाद से ही एक दूरी बनाए रखी हैं। जिन मुद्दों को उन्होंने नहीं छुआ, उम्मीद है कि वे आने वाले वक्त में उनके उत्तर देंगे। वे ट्विटर पर पल-पल की जानकारी देते रहते हैं पर कई मुद्दों पर चुप्पी साधे लेते हैं। हालांकि इस साक्षात्कार में जो भी सवाल पूछे गए उनके स्पष्ट जवाब दिए। पानी की समस्या पर उनकी मुख्यमंत्रियों से बातचीत का जिक्र उन्होंने किया। खेती और रोजगार के लिए हो रहे नवाचार उन्होंने बताए। मोटे तौर पर उन्होने गवर्नेंस के मुद्दे पर जोर दिया। वे जनता को बताना चाह रहे हैं कि वे इस पद के मुताबिक काम कर रहे हैं।

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