हकीकत हालांकि यह है कि पंजाब जैसे राज्य और यह बात हिमाचल, हरियाणा, राजस्थान व संभवत: उत्तराखण्ड के लिए भी सही हो सकती है। सरहद पार के साथ भाषा, खानपान, संस्कृति, जीवनशैली साझा करते हैं और यहां तक कि एक दूसरे की कसमें खाते हैं। यह बात खासकर दोनों ओर के पंजाबियों पर लागू होती है। ये रिश्ते इतिहास और भूगोल से तय होते हैं और इन्हें नकारा नहीं जा सकता। कुछ लोगों को सियासी तर्ज पर यह बात नागवार गुजऱ सकती है लेकिन आपके चाहने से यह तथ्य मिट नहीं जाएगा। इसे पलट कर देखें तो भाषा, खानपान, संस्कृति और जीवनशैली ही है जो पंजाब को तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से अलगाती भी है। इसे भी नहीं नकारा जा सकता। जाहिर तौर से हम एक देश हैं और इस पर हमें गर्व भी है लेकिन हम अलहदा भी हैं। अनेकता में एकता इसी को तो कहते हैं। यही विविधता भारत की खूबी है। इसी से भारत समृद्ध है।
सिद्धू के बयान को राष्ट्र का अपमान मानना इस तथ्य की उपेक्षा करना है कि पाकिस्तान पहले भारत का ही अंग था और उसका पंजाब प्रांत मूल पंजाब का हिस्सा था। वास्तव में आज ऐसे तमाम लोग जो सरहद के इस ओर पंजाब में रह रहे हैं उनकी कई पीढिय़ां सरहद के उस पार वाले पंजाब में जिंदगी बिता चुकी हैं। उनकी पारिवारिक स्मृतियां दुरुस्त हैं और एक भावनात्मक जुड़ाव है जो अभी तक छीजा नहीं है। इन तथ्यों को आप नकार नहीं सकते। यही वह कारण है कि पाकिस्तान के साथ हमारी समस्या को उत्तर भारत और दक्षिण भारत में अलग तरीके से देखा-समझा जाता है। वास्तव में इसीलिए यही वजह है कि कई पंजाबियों के लिए पाकिस्तान का मसला अकसर विरोधी या टकराव वाली भावना पैदा कर देता है। हम जानते हैं कि यह समस्या वास्तविक है और वे गलत हैं लेकिन हम पहले की तरह भाईचारा भी कायम करना चाहते हैं।
क्या सिद्धू के आलोचकों को यह लगता है कि उनका कहा पाकिस्तान के पंजाबियों के लिहाज से भी सच हो सकता है। वे लोग दक्षिण के सिंधियों, पश्चिम के बलोच और यहां तक कि उत्तर के पठानों के मुकाबले खुद को पूरब की सरहद पर रहने वालों के करीब पाते होंगे। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की जटिलताओं और निहितार्थों को हमें स्वीकार करना होगा। इन पर झगडऩे का कोई मतलब नहीं है।