केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जिस तरह से चार दिन तक डेरा डाल कर विभिन्न संगठनों और जातीय समूहों से मुलाकात कर स्थिति को समझने का काम किया, उससे उम्मीद कर सकते हैं कि कोई कारगर रास्ता निकल ही जाएगा। हालांकि यह इस पर निर्भर करेगा कि राज्य के विभिन्न अंतर्विरोधी समूहों से किए गए वादों पर कितनी तेजी से अमल हो पाता है? केंद्रीय गृहमंत्री की घोषणाओं से उम्मीद की जा सकती है कि राज्य में शांति बहाली का मार्ग प्रशस्त होगा। मणिपुर में उग्रवाद देश के सबसे पुराने अलगाववादी आंदोलनों में शामिल है। 1950 के दशक में नगा अलगाववादियों ने नगालिम राज्य की मांग के साथ उग्रवादी गतिविधियां शुरू की थीं, जिनमें मणिपुर के एक हिस्से को शामिल करने की बात कही जा रही थी। उसके विरोध में मैतेई और कुकी समुदायों ने भी जातीय आधार पर लड़ाकू संगठन बनाकर नगा उग्रवादियों का विरोध करना शुरू किया था। चिंता की बात यह है कि जातीय आधार पर दुश्मनी और दोस्ती तय होने से इन उग्रवादियों को स्थानीय पुलिस का डर नहीं है। उग्रवादी समूहों को चीन से मदद मिलती रही है। यहां के उग्रवादियों के पास ऐसे-ऐसे हथियार रहे हैं जो आमतौर पर सेनाओं के पास होते हैं। इनका मुकाबला स्थानीय पुलिस के बूते से बाहर है। राज्य में हुई हिंसा व यहां के जातीय संघर्ष को देश के अन्य राज्यों की तरह देखना भूल होगी।
केंद्र सरकार मणिपुर उपद्रव का हल सिर्फ सशस्त्र बलों के भरोसे नहीं कर सकती। मुख्यमंत्री का यह दावा भले ही सच हो कि करीब 40 उग्रवादियों को मार गिराया गया है, लेकिन यह राज्य में भडक़ी आग को शांत करने का स्थायी उपाय नहीं माना जा सकता। निश्चित रूप से राजनीतिक-सामाजिक प्रयास करने होंगे और इसके लिए एक-दूसरे के विरोधी समुदायों का भरोसा जीतना होगा, जो आसान नहीं है।