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अग्निपथ योजना में नीतिगत सुधार की आवश्यकता

पिछले दो वर्ष में सेनाओं के तीनों अंगों की भर्ती प्रक्रिया को महामारी तथा अग्निपथ योजना की संभावित घोषणा के कारण रोक दिया गया था, पर अनेक अभ्यर्थी इस से पहले ही भर्ती प्रक्रिया पूरी कर चुके थे और प्रशिक्षण पर जाने के लिए सूचना पत्र की प्रतीक्षा में थे। अग्निपथ के आते ही उनकी भर्ती की प्रक्रिया रद्द कर दी गई। पूरे देश में व्यापक और हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं।

Jun 23, 2022 / 08:20 pm

Patrika Desk

अग्निपथ योजना में नीतिगत सुधार की आवश्यकता

अग्निपथ योजना में नीतिगत सुधार की आवश्यकता

कर्नल अमरदीप सिंह
सेना में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं, सामरिक विषयों पर लेखन

सशस्त्र बलों में सैनिकों को शामिल करने के लिए सरकार की बहुप्रतीक्षित नीति अग्निपथ की घोषणा की जा चुकी है। इस वर्ष, कुल 46500 अग्निवीरों को रक्षा बलों में शामिल किया जाएगा। 40000 अग्निवीर सेना में, 3500 वायुसेना और 3000 नौसेना में शामिल होंगे। अग्निवीरों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ाई जाएगी। अभी यह योजना केवल पुरुष उम्मीदवारों के लिए है। भविष्य में इसे महिला सैनिकों के लिए भी लागू किया जाएगा। दावा किया जा रहा है कि अग्निपथ के माध्यम से, सशस्त्र सेनाओं की औसत आयु में बड़ी कमी आएगी। साथ ही भविष्य के युद्ध के लिए तकनीकी रूप से सशक्त सैनिक सेनाओं में शामिल हो सकेंगे। इस योजना के उद्देश्य हैं – देश भर में अनुशासित युवा आधार बनाना, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना, रक्षा बलों के लगातार बढ़ते वेतन और पेंशन बिल में बड़ी कटौती और सेनाओं को सभी वर्ग तक लाना।
योजना के नुसार अग्निपथ में 4 साल की प्रारंभिक अवधि के लिए सैनिकों की भर्ती होगी। इस अवधि के अंत में उनमें से 75 प्रतिशत अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त हो जाएंगे। चयनित 25 प्रतिशत को ही नियमित सैनिकों के रूप में रखा जाएगा। भर्ती प्रक्रिया की योजना की भी घोषणा कर दी गई है। योजना के अनुसार अग्निवीरों कि पहली टोली जनवरी 2023 तक प्रशिक्षण केंद्रों में पहुंचेगी। योजना के विषय में विस्तृत निर्देश समय-समय पर जारी किए जाएंगे।
उप-थलसेनाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल बीएस राजू द्वारा दिया गया बयान विचार-विमर्श के योग्य हंै। जनरल राजू ने कहा है कि अग्निपथ एक सोची समझी नीति है और इसमें संशोधित करने के लिए पर्याप्त लचीलापन बरकरार रखा गया है। परिवर्तन धीरे धीरे होगा और सेनाओं के विभिन्न अंगों को इस परिवर्तन प्रक्रिया को सुचारु रूप से लागू करने के लिए समय दिया जाएगा। जैसे एक इन्फैन्ट्री बटालियन में 4 वर्ष में केवल 100 अग्निवीर ही शामिल होंगे। ऐसी स्थिति कभी नहीं होगी जहां पूरी यूनिट में केवल अनुभवहीन सैनिक हों। दूसरा प्रमुख मुद्दा रेजिमेंट के आपसी तालमेल का है। स्पेशल फोर्स बटालियनों समेत कई यूनिटों में सैनिकों की भर्ती प्रदेश या जाति के आधार पर नहीं होती। राष्ट्रीय राइफल्स का गठन भी इसी सिद्धांत पर है, जिसने अब तक बढिय़ा काम किया है।
हर साल अग्निवीरों के रूप में सेना को युवा शक्ति मिलेगी। साथ ही देश को सेवानिवृत्त अग्निवीरों के रूप में एक अनुशासित युवा मिलेंगे, जो देश की सुरक्षा और प्रगति में लाभदायक सिद्ध होगा। रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बुनियादी बातें कही गई हैं। कुछ मुद्दे जिन्हें प्रारम्भिक घोषणा में स्पष्ट नहीं किया गया है, उनपर मंथन करके सुधारने की आवश्यकता है। सेवानिवृत्त 75 प्रतिशत अग्निवीरों का भविष्य एक संवेदनशील मुद्दा है।
पिछले दो वर्ष में सेनाओं के तीनों अंगों की भर्ती प्रक्रिया को महामारी तथा अग्निपथ योजना की संभावित घोषणा के कारण रोक दिया गया था, पर अनेक अभ्यर्थी इस से पहले ही भर्ती प्रक्रिया पूरी कर चुके थे और प्रशिक्षण पर जाने के लिए सूचना पत्र की प्रतीक्षा में थे। अग्निपथ के आते ही उनकी भर्ती की प्रक्रिया रद्द कर दी गई। पूरे देश में व्यापक और हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। सरकार ने आयु सीमा में दो साल की एकमुश्त छूट देने पर सहमति दे दी है, पर यह काफी नहीं है। चयनित अभ्यर्थियों को दोबारा मेडिकल परीक्षण के बाद प्रशिक्षण केंद्रों में भेजा जाना चाहिए।
भाग्यशाली 25 प्रतिशत अग्निवीर चार वर्ष की अवधि के बाद सेना में वापस लिए जाएंगे। इनकी चार वर्ष की सेवा को पदोन्नति और पेंशन के लिए गणना में न लिया जाना न्यायसंगत नहीं है। सिर्फ पेंशन को बचाना ही ध्येय है, तो एकीकृत सेना मुख्यालय में लाखों असैनिक हैं, जो पूरे साठ वर्ष की सेवा करने के बाद अपने पद की सर्वाधिक पेंशन के साथ सेवानिवृत्त होते हैं। इनकी संख्या पर रोक लगाना और इन्हें भी अग्निवीर जैसी योजना के अंतर्गत लाए जाने की आवश्यकता है। सेवानिवृत्त ७५ प्रतिशत अग्निवीरों के पुनर्वास को राज्य सरकारों और निजी संस्थाओं के भरोसे पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इसके लिए स्पष्ट नीति बनानी होगी, जिसका सभी संस्थाओं को पालन करना अनिवार्य होना चाहिए।

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