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दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत

जनता व जमाकर्ताओं के हित सुरक्षित करने के लिए आरबीआइ दखल दे सकता है। बैंकों को आंतरिक नियंत्रण और निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा, ताकि लोन को बैड लोन में तब्दील होने से बचाया जा सके।

Jun 24, 2022 / 06:28 pm

Patrika Desk

दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत

दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में तेजी लाने की जरूरत


राधिका पाण्डेय
सीनियर फेलो, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी

कॉर्पोरेट फ्रॉड से जुड़ा लोन डिफॉल्ट का ताजा मामला सामने आया है। इसके साथ ही लोन देने से पहले बैंकों द्वारा अपनाई जाने वाली ड्यू डिलिजेंस (आवश्यक) प्रक्रिया के समुचित संचालन की बैंक की क्षमता को लेकर नई चिंताएं उठने लगी हैं। इस प्रकरण को बैंकों के लिए चेतावनी की घंटी समझना चाहिए, ताकि वे अपनी ड्यू डिलिजेंस प्रक्रिया को सुदृढ़ बना सकें। साथ ही यह मामला इस बात की ओर भी संकेत करता है कि बैंकों को मौजूदा दिवालियापन समाधान तंत्र के तहत समाधान प्रक्रिया में और तेजी लाने की जरूरत है। बैंकों की गैर निष्पादित परिसम्पत्तियों (एनपीए) में तेजी से गिरावट देखी गई है। बैंकिंग क्षेत्र में आए सुधार का पता इसी बात से चलता है कि मार्च 2022 तक एनपीए 6 प्रतिशत रह गया है। बैंकों को सुदृढ़ ड्यू डिलिजेंस नीति अपनाने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि एनपीए और बैड लोन पर निरन्तर निगरानी रखी जा सके। वित्तीय तंत्र की स्थिरता बनाए रखने के लिए यह महत्त्वपूर्ण है। कुछ दिन पहले सामने आया लोन डिफॉल्ट का मामला तीन प्रमुख बैंकों आइडीबीआइ बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक से जुड़ा है। इन तीनों बैंकों ने ग्रेट इंडियन नौटंकी कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड(जीआइएनसी) को लोन दिए। लोन के कॉर्पोरेटर गारंटर थे ग्रेट इंडियन तमाशा कम्पनी प्राइवेट लिमिटेड (जीआइटीसीपीएल), विजक्रॉफ्ट इंटरनेशनल एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड और एस.जी इंवेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड।
दिलचस्प तथ्य यह है कि जीआइएनसी का पहला लोन डिफॉल्ट 2014 में हुआ था, लेकिन गारंटर कम्पनी विजक्रॉफ्ट के खिलाफ दिवालियेपन की कार्यवाही 2021 में ही शुरू की जा सकी। मई 2021 में आइडीबीआइ बैंक ने 60 करोड़ रुपए के डिफॉल्ट मामले में दिवालियापन की कार्यवाही शुरू करने के लिए नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल(एनसीएलटी)का दरवाजा खटखटाया। विजक्रॉफ्ट ने जीआइएनसी द्वारा आइडीबीआई बैंक को भुगतान की जाने वाली सारी राशि की गारंटी ली थी। जब जीआइएनसी आइडीबीआई को लोन राशि का पुनर्भुगतान करने में विफल रहा, तो आइडीबीआई बैंक ने 8 दिसम्बर 2014 को करीब 39 करोड़ रुपए के लिए कॉर्पोरेट गारंटी मांगी। 2017 में बैंक ने विजक्रॉफ्ट को एक पत्र लिखकर बताया कि बैंक उस पर दिवालिया एवं दिवालियापन संहिता 2016 के तहत दिवालियापन निस्तारण कार्यवाही करेगा। जवाब में, विजक्रॉफ्ट ने बैंक से आग्रह किया कि वह उसके खिलाफ ऐसी कोई कार्यवाही शुरू न करे और उन्हें आवश्यक समय दे, क्योंकि ऋण लेने वालों ने हरियाणा सरकार से मदद मांगी है। जब दिवालियापन की कार्यवाही शुरू हुई आइडीबीआई बैंक की अगुवाई में ऋणदाताओं ने मांग की कि बकाया वसूली के लिए प्रतिभूतिकरण एवं वित्तीय सम्पत्तियों के पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित अधिनियम (सरफेसी अधिनियम) 2002 के प्रावधान लागू किए जाएं। ऋणदाताओं ने बकाया राशि का कुछ अंश वसूलने के लिए कर्जदार की बैंक के पास मॉरगेज रखी गई संपत्ति का निपटान करने का फैसला किया।
एक ओर जहां कानूनी प्रारूप ऋणदाताओं को बकाया वसूली का विकल्प देता है, वहीं वसूली की प्रक्रिया में बहुत अधिक समय लगता है। बकाया वसूली प्रक्रिया के दौरान बैंकों को होने वाले संभावित नुकसान को रोकने के लिए बैंकों को बेहतर निगरानी के लिए वैकल्पिक डेटा चाहिए होता है। जैसे कर्जदार के लाभकारी मालिक, बैंक स्थानांतरण और अन्य लेन-देन। लोन डिफॉल्ट के इस मामले में कर्जदार का खाता 2014 में ही एनपीए घोषित कर दिया गया था, लेकिन नियामक कार्यवाही गत वर्ष ही शुरू की जा सकी। बकाया वसूली में देरी और खामियों को दूर करने की जरूरत है।
इन उदाहरणों से जाहिर है कि बैंकों पर निगरानी और सख्त करने की जरूरत है। सम्पत्ति गुणवत्ता समीक्षा(एक्यूआर) सहित कई तरह की पहल की गई हैं, लेकिन और प्रयास करने की जरूरत है। आरबीआई को ऐसी कड़ी व्यवस्था लागू करने की जरूरत है, जो कमजोर जोखिम संस्कृति एवं नियंत्रण व सुशासन में विफलता जैसे मसले हल करे। नियामक के तौर पर आरबीआइ बैंकों का निगरानी प्रमुख है। इस संबंध में बैंकिंग विनियमन अधिनियम 1949 के तहत आरबीआइ को पर्याप्त विवेकाधीन शक्तियां मिली हुई हैं। जनता व जमाकर्ताओं के हित सुरक्षित करने के लिए आरबीआइ दखल दे सकता है। बैंकों को आंतरिक नियंत्रण और निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा, ताकि लोन को बैड लोन में तब्दील होने से बचाया जा सके।

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