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जीनोम सीक्वेंसिंग और सर्विलांस से ही रोका जा सकता है अगला खतरा

साक्षात्कार: डॉ. अमिता गुप्ता, (उप निदेशक, जॉन्स हॉपकिंस सेंटर फॉर क्लीनिकल ग्लोबल हेल्थ एजुकेशन)…
नए खतरे से सतर्क रहने को जीनोम सीक्वेंसिंग तुरंत बढ़ाए भारत।सीक्वेंसिंग, एपिडीमियोलॉजिकल व क्लीनिकल आंकड़ों की स्टडी जरूरी।भारत में मिल रहा बी.1.167 हो सकता है बड़ी चिंता ।

नई दिल्लीMay 17, 2021 / 08:36 am

विकास गुप्ता

जीनोम सीक्वेंसिंग और सर्विलांस से ही रोका जा सकता है अगला खतरा

जीनोम सीक्वेंसिंग और सर्विलांस से ही रोका जा सकता है अगला खतरा

अंतरराष्ट्रीय लोक स्वास्थ्य और संक्रामक रोगों की विशेषज्ञ डॉ. गुप्ता वर्ष 2003 से ही जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय की ओर से व्यापक स्तर पर चल रहे भारत से संबंधित काम का नेतृत्व कर रही हैं। इनका मानना है कि भारत में पाया गया कोविड-19 का नया म्यूटेशन बी.1.167 बड़ी चिंता की वजह हो सकता है। यह इलाज और टीकों के असर को भी प्रभावित कर सकता है। मुकेश केजरीवाल की डॉ. अमिता गुप्ता से बातचीत के चुनिंदा अंश:

हर वैश्विक चुनौती से निपटने में भारत से साझेदारी अहम-
हम चिकित्सा और अकादमिक के साथ ही लोक स्वास्थ्य संस्थान भी हैं। कोविड काल में हमारे चिकित्सा, लोक स्वास्थ्य और इंजीनयरिंग विशेषज्ञ साथ आए और समाधान तलाशने में जुटे। हमारी कोशिश होती है कि हम तथ्यों और उच्च गुणवत्तापूर्ण साक्ष्यों के आधार पर इस नई चुनौती के संबंध में सही नीतियों और निदान को आकार देने में मदद कर सकें। भारत संग हमारा संबंध 1930 से लगातार चला आ रहा है। मौजूदा महामारी और भविष्य की किसी भी ऐसी बड़ी चुनौती से जूझने की दिशा में भारत से साझेदारी बहुत अहम होगी।

क्यों नहीं भांप पाए दूसरी लहर?
लगातार सक्रिय सर्वेलंस करना चाहिए था। तुरंत सख्त कदम उठाने चाहिए थे।

क्या अब जल्दी ही भारत इस स्थिति से बाहर निकल सकेगा?
हमें यकीन रखना चाहिए कि हम जल्दी ही इस स्थिति से बाहर निकलेंगे। लेकिन कई कदम अभी उठाए जाने हैं। संक्रमण जब विभिन्न हिस्सों में इतने बड़े स्तर पर हो रहा हो तो कुछ चीजों का अभी ध्यान रखते रहना जरूरी होगा। महामारी आए 14-15 महीने हो चुके। हर व्यक्ति उपायों से थक गया है, लेकिन ये सबसे जरूरी हैं। साथ ही जो टारगेटेड लॉकडाउन हो रहे हैं, इन्हें कुछ और समय के लिए जारी रखने की जरूरत है। यह (दूसरी लहर) इतनी अचानक इसलिए आ गई क्योंकि यहां सावधानी अपनानी बंद हो गई।

भारत में तेजी से मामले बढऩे का प्रमुख कारण क्या स्ट्रेन बी.1.167 है?
ऐसा कहने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं। इसकी काफी संभावना है। इस संबंध में ज्यादा आंकड़े नहीं होने की एक वजह भारत में इसकी बहुत कम सीक्वेंसिंग होना है। साथ ही अभी पर्याप्त अध्ययन बाकी है। यह भी समझना होगा कि यूके में मिला 117 वेरिएंट चार माह में ही सबसे ज्यादा संक्रामक हो गया है।

कहा जा रहा है कि यह वैश्विक चुनौती बन सकता है…
बिल्कुल! हम जानते हैं कि बी.1.167 कई और देशों में भी पाया जा रहा है। इनमें अमरीका, यूके और कई देश शामिल हैं। इसे गंभीरता से लेना है और निरंतर नजर रखनी है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि इसमें एक खास म्यूटेशन इलाज के असर को और संभवत: टीके के असर को भी प्रभावित कर सकता है।

म्यूटेशन आदि को आंकने और भांपने के लिहाज से जीनोम सीक्वेंसिंग पर काम कितना संतोषजनक है?
पिछले महीने तक भारत में एक प्रतिशत से भी कम वायरस की सीक्वेंसिंग की जा रही थी। अब काफी ध्यान गया है, लेकिन और बढ़ाने की जरूरत है। 5 प्रतिशत वायरस की सीक्वेंसिंग कर उसका आकलन होना चाहिए। इससे पूरे देश की तस्वीर हासिल हो सकेगी। कौन से स्वरूप मौजूद है, किस का प्रसार हो रहा है? मरीज संख्या, दवा, इलाज और टीकों से किसका क्या संबंध है?

यानी अब जीनोम सीक्वेंसिंग से ही अहम जानकारी हासिल हो सकती है?
बिल्कुल! सीक्वेंसिंग कीजिए और विभिन्न पैमानों से उसके संबंध का आकलन कीजिए। क्लीनिकल और एपिडीमियलॉजिकल (महामारी विज्ञान संबंधी) सूचना भी चाहिए ताकि म्यूटेशन का नतीजा क्या हो रहा है, यह भी पता चल सके।

कोविड-19 की सभी दवाएं-टीके तत्काल पेटेंट मुक्त नहीं करने चाहिए?
पेटेंट महत्त्वपूर्ण विषय है। लेकिन यही काफी नहीं। इसे हटा भी देते हैं तो भी उत्पादन के लिए ढांचागत सुविधाएं तैयार करने में कुछ माह का समय तो लगेगा ही।

पर्याप्त टीकाकरण कर तीसरी लहर को काफी हद तक रोका जा सकेगा?
जितना ज्यादा आप टीकाकरण कर लेते हैं संक्रमण फैलने से बच पाते हैं। इजरायल, यूएई और सेशल्स उदाहरण हैं। भारत में 1.4 अरब लोग हैं, समय लगेगा। जो अब तक न तो संक्रमित हुए और न ही टीका लगा, उन सभी को रिस्क है।

टीकाकरण में प्राथमिकता का आधार क्या हो?
इसके लिए मिश्रित तरीका अपनाना होगा। टीके से दो लक्ष्य हासिल होते हैं-एक तो व्यक्तिगत स्तर पर बीमारी और गंभीर असर से बचाना। दूसरा है संक्रमण फैलने से रोकना। सप्लाई बढऩे पर टीका पूरी वयस्क आबादी को लगाना चाहिए।

कोई उपाय नहीं था कि हम दूसरी बड़ी लहर का अंदाजा लगा पाते?
सबक और संदेश यह है कि हमें लापरवाह नहीं होना है। दुर्भाग्य से जनवरी-फरवरी में संक्रमण कम होते ही लोग निकल पड़े। सब ने सोच लिया कि यह भारत से खत्म हो गया है। अमरीका, यूके और ब्राजील में साबित हो चुका है कि जब तक टीकों की सुरक्षा नहीं, खतरा हो सकता है। विभिन्न इलाकों में बिना लक्षण वाले लोगों में किया जाने वाला कम्यूनिटी सर्वेलंस बताता है कि खतरा कहां-कितना आने वाला है।

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