उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम का परीक्षण कर अमरीका एवं उसके सहयोगी देशों को सकते में डाल दिया है। उत्तर कोरिया अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की ज्यादा परवाह नहीं करता है। दरअसल, वह ऐसे परीक्षणों के जरिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी कुछ शर्तें मनवाना चाहता है। वह चाहता है कि दुनिया उसे एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के रूप में स्वीकारें, उसे क्षेत्रीय ताकत के रूप में देखा जाए, 6 देशों के समूह के साथ उसकी बातचीत की प्रक्रिया फिर शुरू की जाए और उस पर लगे प्रतिबंध हटाने सहित सभी जायज मांगे मानी जाएं। उत्तर कोरिया एक विफल राज्य है और वह अस्थिरता फैला रहा है। यह अस्थिरता उसके आस-पास के क्षेत्र के लिए खतरनाक है।
उत्तर कोरिया के मामले में भारत ने जो रुख अपनाया है, वह काफी हद तक सही है। भारत का मानना है कि इस समस्या का समाधान संयुक्त राष्ट्र के तहत बातचीत से होना चाहिए। भारत इस मामले के सैन्य समाधान के पक्ष में नहीं है। इस क्षेत्र में भारत के सहयोगी देश हैं और युद्ध की स्थिति में भारत के हित प्रभावित हो सकते हैं। उत्तर कोरिया के निशाने पर जापान और दक्षिण कोरिया हैं जो कि भारत के मित्र देश हैं। इन दोनों देशों से भारत में एक साल में लगभग 50 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश होने वाला है। यदि युद्ध होता है तो यह निवेश रुक सकता है, इसलिए भारत बातचीत से ही समाधान पर जोर दे रहा है।
कोरिया संकट के समाधान में अमरीका के साथ-साथ चीन और रूस की भूमिका भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इन दोनों देशों की सीमा उत्तर कोरिया से लगती है। चीन पर दबाव बन रहा है कि वह इस मामले को सुलझाए क्योंकि उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक साझेदार चीन ही है और चीन उसका संयुक्त राष्ट्र में साथ भी देता रहा है। चीन कोरिया में युद्ध की स्थिति नहीं चाहता है क्योंकि ऐसी स्थिति में उत्तर कोरियाई लोग शरणार्थी के रूप में उससे ही शरण मांगेंगे।
युद्ध के बाद उत्तर और दक्षिण कोरिया के एकीकरण जैसी संभावना बन सकती है जो चीन को कतई स्वीकार्य नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति में कोरिया प्रायद्वीप एक मजबूत देश होगा। दक्षिण कोरिया तकनीकी रूप से उन्नत है तो उत्तर कोरिया के पास रक्षा संबंधी उन्नत तकनीक है। चीन ऐसी स्थिति से बचना चाहेगा। रूस का ध्यान अभी आईएसआईएस के आतंक से निपटने में लगा हुआ है पर वह भी कोरिया में युद्ध जैसी स्थिति से बचना चाहेगा। इस मामले में अमरीकी रुख सबसे अहम है क्योंकि उत्तर कोरिया से सीधी चुनौती उसे ही मिल रही है लेकिन परमाणु हथियारों के उपयोग का डर उसे भी युद्ध से रोक रहा है।