ये सही है कि फिल्म और राजनीति के क्षेत्र में बाहर से दिखने वाली चमक में महिलाओं के लिए सम्मानपूर्वक जगह बनाना बेहद कठिन काम है। उनके बोलने और कपड़े पहनने के तरीकों पर भी सवाल उठते हैं। विवाद भी खड़े होते हैं। तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचने वाली सांसद नुसरत जहां के साड़ी और मंगलसूत्र पहनकर शपथ लेने पर भी टिप्पणियां सामने आईं। उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया गया। एक सांसद के साड़ी पहनने पर सवाल उठ सकते हैं, तो आम महिलाओं का क्या? नुसरत के साड़ी पहनने अथवा जायरा के अभिनय से किसी को आपत्ति क्यों हो? नुसरत और जायरा पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं और अपना अच्छा-बुरा समझती हैं। उनके फैसले पर सवाल उठाने वालों को तवज्जो ही नहीं दी जानी चाहिए।
नुसरत और जायरा ही नहीं, किसी भी धर्म को मानने वाली किसी भी महिला को काम करने या ना करने अथवा अपनी पसंद के मुताबिक वेशभूषा चुनने और पहनने की पूरी आजादी है। इस आजादी पर पहरा लगाने वालों के खिलाफ समाज को एकजुट होना चाहिए। ये धर्म का मामला नहीं है। सिर्फ और सिर्फ महिलाओं की आजादी और समाज में उनके हकों की लड़ाई का मुद्दा है। जायरा ने ‘दंगल’ फिल्म में जो अभिनय किया, उसकी सराहना कौन नहीं करेगा? छोटी-सी उम्र में राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होने का गौरव किसे मिलता है? उनतीस साल की नुसरत ने भी प. बंगाल की बशीरहाट लोकसभा सीट पर साढ़े तीन लाख वोटों की जीत हासिल करके बड़ी उपलब्धि हासिल की है। ऐसे में जरूरत इन्हें प्रोत्साहित करने की है, इनके फैसलों के साथ खड़े होने की है। जायरा का फैसला स्वैच्छिक है तो स्वागत, लेकिन इसके पीछे कोई ‘दबाव’ रहा हो तो वो सच भी सामने आना चाहिए।