scriptकर्म और धर्म की दुविधा | Nusrat-Zaira : Dilemma of karma and religion | Patrika News
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कर्म और धर्म की दुविधा

नुसरत और जायरा पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं और अपना अच्छा-बुरा समझती हैं। उनके फैसले पर सवाल उठाने वालों को तवज्जो ही नहीं दी जानी चाहिए…

जयपुरJul 02, 2019 / 04:53 pm

dilip chaturvedi

nusrat jahan and zaira wasim

nusrat jahan and zaira wasim

‘दं गल गर्ल’ जायरा वसीम का अभिनय की दुनिया को अलविदा कहने का फैसला उनका निजी है, लिहाजा उसका सम्मान किया जाना चाहिए। किसे क्या करना है और क्या नहीं, इसका फैसला कोई दूसरा नहीं कर सकता। जायरा को अगर लगता है कि अभिनय की दुनिया में आकर वे अपने ईमान से दूर हो गई हैं, तो ये भी उनका निजी अनुभव हो सकता है। लेकिन उनका ये कहना कि उनके अभिनय के बीच उनका धर्म और विश्वास आड़े आ रहा था, शायद ही किसी के गले उतरे। अभिनय जगत से जुड़ा हर कलाकार किसी न किसी धर्म को मानने वाला होता है। अभिनय ही क्यों, किसी भी कर्म से जुड़ा व्यक्ति धार्मिक अथवा धर्मनिरपेक्ष हो सकता है। जायरा जैसी कितनी अभिनेत्रियां आईं और अपनी कला के माध्यम से उन्होंने बुलंदियों को छुआ भी। जायरा अभी बालिग हुई हैं। उनका ये फैसला सोच-समझकर उठाया गया कदम है अथवा किसी ‘दबाव’ में लिया गया फैसला?

ये सही है कि फिल्म और राजनीति के क्षेत्र में बाहर से दिखने वाली चमक में महिलाओं के लिए सम्मानपूर्वक जगह बनाना बेहद कठिन काम है। उनके बोलने और कपड़े पहनने के तरीकों पर भी सवाल उठते हैं। विवाद भी खड़े होते हैं। तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा पहुंचने वाली सांसद नुसरत जहां के साड़ी और मंगलसूत्र पहनकर शपथ लेने पर भी टिप्पणियां सामने आईं। उनके खिलाफ फतवा भी जारी किया गया। एक सांसद के साड़ी पहनने पर सवाल उठ सकते हैं, तो आम महिलाओं का क्या? नुसरत के साड़ी पहनने अथवा जायरा के अभिनय से किसी को आपत्ति क्यों हो? नुसरत और जायरा पढ़ी-लिखी महिलाएं हैं और अपना अच्छा-बुरा समझती हैं। उनके फैसले पर सवाल उठाने वालों को तवज्जो ही नहीं दी जानी चाहिए।

नुसरत और जायरा ही नहीं, किसी भी धर्म को मानने वाली किसी भी महिला को काम करने या ना करने अथवा अपनी पसंद के मुताबिक वेशभूषा चुनने और पहनने की पूरी आजादी है। इस आजादी पर पहरा लगाने वालों के खिलाफ समाज को एकजुट होना चाहिए। ये धर्म का मामला नहीं है। सिर्फ और सिर्फ महिलाओं की आजादी और समाज में उनके हकों की लड़ाई का मुद्दा है। जायरा ने ‘दंगल’ फिल्म में जो अभिनय किया, उसकी सराहना कौन नहीं करेगा? छोटी-सी उम्र में राष्ट्रपति के हाथों सम्मानित होने का गौरव किसे मिलता है? उनतीस साल की नुसरत ने भी प. बंगाल की बशीरहाट लोकसभा सीट पर साढ़े तीन लाख वोटों की जीत हासिल करके बड़ी उपलब्धि हासिल की है। ऐसे में जरूरत इन्हें प्रोत्साहित करने की है, इनके फैसलों के साथ खड़े होने की है। जायरा का फैसला स्वैच्छिक है तो स्वागत, लेकिन इसके पीछे कोई ‘दबाव’ रहा हो तो वो सच भी सामने आना चाहिए।

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