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ओपिनियन

फिर मानसून के भरोसे

ऐसे समय में जबकि देश के कई हिस्सों से जल संकट की खबरें आ रहीं है, मानसून में देरी के चलते बनने वाली तस्वीर काफी भयावह साबित हो सकती है।

जयपुरMay 16, 2019 / 02:35 pm

dilip chaturvedi

monsoon 2019

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भारतीय मौसम विभाग और निजी क्षेत्र की कंपनी स्काइमेट वेदर सर्विसेज दोनों ने ही इस साल देश में मानसून देरी से आने की भविष्यवाणी की है। स्काइमेट ने कल ही कहा था कि इस बार मानसून चार दिन देरी से 4 जून को केरल तट पर पहुंच सकता है। जबकि बुधवार को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने 6 जून तक मानसून के केरल तट पर पहुंचने का अनुमान लगाया है। स्काइमेट का आकलन तो यही कहता है कि अलनीनो के असर के कारण ही इस बार मानसून देरी से केरल तट पर दस्तक दे सकता है। इसके साथ ही इस बार भी सामान्य से कम बारिश का अनुमान लगाया गया है। पिछले दो सीजन से कम बारिश का दौर झेल रहे देश के लिए यह अच्छी खबर नहीं।

स्काइमेट के मुताबिक इस साल बंगाल, बिहार व झारखंड में कम बारिश होगी। हालांकि राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब में अच्छी बारिश का अनुमान लगाया जा रहा है। मानसून के लिहाज से साल 2018 भी खास अच्छा नहीं रहा। लगातार तीसरी बार सामान्य मानसून क्या किसानों के लिए संकट पैदा करने वाला नहीं होगा, यह बड़ा सवाल है? क्योंकि स्काइमेट के अनुमान के मुताबिक मध्य भारत में तो मानसून सामान्य से भी पचास फीसदी तक कम रह सकता है।

साफ है कि मानसून देरी से आने के कारण बरसात का शुरुआती दौर भी धीमा ही होने वाला है। इस देरी का बड़ा कारण अल-नीनो को माना जा रहा है क्योंकि इसके प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है। इससे हवाओं के रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है। पिछले सालों में मौसम चक्र को प्रभावित करने के लिए अलनीनो जिम्मेदार रहा है। मौसम में बदलाव के कारण कई स्थानों पर सूखा पड़ता है, तो कई जगहों पर बाढ़ आती है।

हमेशा मानसून का मोहताज रहने वाली देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर इस बार पहले ही चुनावों का काफी भार पड़ा है। लोकसभा के ये चुनाव अब तक के सबसे खर्चीले चुनाव होंगे। दूसरी ओर विकास दर भी 7.2 फीसदी से घटकर 7 फीसदी तक रहने की आशंका बनी हुई है। ऐसे में कम बरसात से यदि पैदावार पर असर पड़ता है तो सीधे-सीधे मार आम आदमी पर पड़ेगी क्योंकि बेहतर खेती औद्योगिक विकास से भी जुड़ी है। चाहे भाजपा हो या कांग्रेस या फिर दूसरे दल, सबने खुद को किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने के लिए इन चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कर्ज माफी की घोषणाओं से लेकर कृषि सम्मान निधि का ऐलान तक हुआ है।

लेकिन ऐसे समय में जब देश के कई हिस्सों से जल संकट की खबरें आ रहीं है, मानसून में देरी के चलते बनने वाली तस्वीर काफी भयावह साबित हो सकती है। भारी चुनाव खर्च की वजह से आने वाली सरकार सिंचाई संसाधनों की बेहतरी के लिए अतिरिक्त धन जुटा पाएगी, इसमें भी संदेह ही है। दरअसल जलसंकट से जुड़े कारणों की पड़ताल करेें तो हमारे साथ हुक्मरान भी कम जिम्मेदार नहीं। न हमने जल संरक्षण के प्रयास किए और न ही सरकारों ने। वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के दिशा-निर्देश फाइलों की धूल खाते दिख रहे हैं। नदियों को जोडऩे की योजनाएं भी कागजों में दबी हैं। मानसून में देरी के खतरों से निपटने की बड़ी चुनौती केन्द्र की आने वाली सरकार व राज्य सरकारों के सामने होगी। जरूरत है कि अनावृष्टि वाले इलाकों में पानी की कमी के संकट से निपटने की स्थायी कार्ययोजना बनाई जाए।

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