इन दिनों स्कूल प्रबंधन ने अपने विद्यार्थियों के लिए ऑनलाइन शिक्षा पद्धति को अपनाया। भारतीय शिक्षा प्रणाली में यह एक नया प्रयोग था। कोरोना ने जब भारत में दस्तक दी तब तक स्कूलों में वार्षिक परीक्षाएं खत्म हो गई थी और ये बच्चों समेत पूरे समाज के लिए राहत की बात थी। परंतु जब कोरोना का संकट गहराता गया और यह प्रतीत होने लगा कि यह अभी नहीं जाने वाला है तब बच्चों की शिक्षा को सक्रिय करने की योजना बनने लगी। ऑनलाइन शिक्षण द्वारा बच्चों को पुनः स्कूल व शिक्षकों से जोड़ा गया। पिछले दो-तीन महीने से यह चल रहा है और अब इसके परिणाम भी कुछ कुछ दिखने शुरु हो गए हैं। इस विषय पर बात करने के लिए हमारे पास दो-तीन महीने का अनुभव है।
शैक्षिक गतिविधियां रूक जाने से बच्चों के दैनन्दिन जीवन शैली प्रभावित हो रही थी। देर से सोना, देर तक सोना, कुछ भी समय से नहीं करना आदि जैसी प्रवृतियां बढ़ती जा रही थी। जाहिर सी बात है घर के अभिभावक भी बच्चों के इन व्यवहारों से खुश नहीं थे। कोरोना के खौफ के साथ-साथ बच्चे की बदलती प्रवृति भी उन्हें चिंतित कर रही थी। स्कूलों ने जब घर में बैठे बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से जोड़ा तब सबसे ज्यादा संतोष घर के इन्हीं अभिभावकों को हुआ। स्कूल प्रबंधन ने एक रुटीन के तहत बच्चों को घर में ही पढ़ाने की शरुआत की। स्कूल के ही यूनिफार्म में बच्चे 5-6 घंटे स्मार्ट फोन या लैपटॉप के सामने बैठ पढाई करने लगे। अलग अलग विषयों के अलग अलग सत्र भी होने लगे। आरंभ में यह एक नवीन प्रयोग के तौर पर किया जा रहा था परंतु बच्चे व उनके परिवार के साथ साथ स्कूल के द्वारा भी इसे हाथों हाथ लिया गया और इसे सफल प्रयोग माना गया।
पाठ्यक्रम के अनुसार सीखने- सिखलाने की कवायद फिर से होने लगी। शिक्षक पाठ्यक्रम के अनुसार कभी विडीयो बनाकर तो कभी जूम एप पर विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करने लगे। हमें यह मानने में किसी भी प्रकार से गुरेज नहीं है कि हालात सामान्य होने तक ऑनलाइन शिक्षण पद्धति एक मजबूत विकल्प के तौर पर सामने आई है। तकनीकी रूप से कुछ व्यवधान के बावजूद बच्चों के शिक्षण को सतत क्रियाशील रखने के लिए ऑनलाइन शिक्षण पद्धति ने कोरोना संकट के निराशा भरे माहौल में एक आशा की किरण है,एक राहत भरी खबर है। परंतु अब जब ऑनलाइन शिक्षण पद्धति का प्रयोग करते हुए दो-तीन महीने का अनुभव हो चुका है ,हमें इसके कुछ स्याह पक्ष भी देखने को मिल रहे हैं या भविष्य में देखने को मिल सकते हैं।
शिक्षण की इस नवीन पद्धति में सबसे बड़ा खतरा बच्चों के स्क्रीन टाइम बढ़ना है। अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियोट्रिक्स ने बच्चो के स्क्रीन टाइम पर एक शोध रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसके अनुसार 2 से 5 साल के बच्चे एक घंटे से ज्यादा स्क्रीन का उपयोग न करें। छः साल या उससे ज्यादा बड़े बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित रखें तथा बच्चों को खेलने या अन्य एक्टि विटि के लिए पर्याप्त समय दे। स्मार्ट फोन के साथ बच्चों का लगाव तो सर्वविदित है। दिन का एक बड़ा समय वे स्मार्ट फोन पर खर्च करते हैं। फोन के साथ साथ टी.वी पर भी उनकी नजरे होती ही हैं। कुल मिलाकर यह देखा जा सकता है कि कोरोना संकट में ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त करने के पूर्व भी बच्चों का स्क्रीन टाइम कुछ कम नहीं था। अतः यह देखा जा सकता है कि शिक्षण की इस नवीन पद्धति से बच्चों की आंखों पर दुष्प्रभाव तो अवश्य ही पड़ेगा। इससे बच्चों को कुछ शारीरिक व मानसिक परेशानियां हो सकती है।
सर दर्द, आंखों में दर्द, नींद का ठीक से नहीं आना, चिड़चिडापन, एकाग्रता में कमी, उदासीनता, जैसी परेशानियां बच्चों में हो सकती है। ऐसा भी देखा जा रहा है कि शिक्षण संस्थान अपने पाठ्यक्रम को पूरा करवाने के दबाव में ऑनलाइन शिक्षण की अवधि को बढ़ा भी दे रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षण की अवधि को बढ़ाना बच्चों की शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है। बाल मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा ही वर्तमान समय में शिक्षण का एकमात्र विकल्प है ,इसलिए फिलहाल यह आवश्यक है। बच्चों के स्क्रीन टाइम को संतुलित रखने के लिए उन्हें गैर-जरुरी स्क्रीन संबंधी कार्यों से अलग रखा जाना चाहिए। उन्हें कुछ रचनात्मक कार्यों में संलग्न कराने पर विचार करना चाहिए या परिवार के सदस्यों को बच्चों के साथ समय बीताने चाहिए। स्कूलों को हर एक क्लास के बाद 15-20 मिनट का अवकाश देना चाहिए।
इससे दिमाग व आंखों पर निरंतर पड़ने वाला दबाव काफी हद तक कम हो जाएगा। अभिभावकों को चाहिए कि अगर संभव हो तो बच्चों को बड़े स्क्रीन वाले गैजेट उपलब्ध कराएं। बच्चों को मोबाइल की जगह टैबलेट या लैपटॉप उपयोग करने को कहें। मोबाइल, टैबलेट या लैपटॉप को इस तरह रखे कि बच्चे को ज्यादा झुकना ना पड़े, वो सीधे बैठ कर पढ़ाई कर सके, क्योंकि गलत स्थिति में 4-5 घंटे की पढ़ाई काफी नुकसानदायक हो सकती है। डॉक्टरों के अनुसार अगर ऑनलाइन शिक्षा में सावधानी का ख्याल नहीं रखा गया तो बच्चों को सर्वाइकल जैसी अप्रत्याशित बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। अतः बच्चों के स्क्रीन टाइम बढ़ने से उत्पन्न खतरे को गंभीरता से लेते हुए , थोड़ी समझदारी से कम किया जा सकता है।
भारत सरकार ने भी इस मसले पर हस्तक्षेप किया है और कई दिशा-निर्देश भी जारी किए है। हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने ऑनलाइन माध्यम से डिजिटल शिक्षा पर ‘प्रज्ञाता’ (पीआरएजीवाईएटीए) दिशा-निर्देश जारी किए। प्रज्ञाता दिशा-निर्देशों में ऑनलाइन और डिजिटल शिक्षा के आठ चरण, जिनमें योजना, समीक्षा, व्यवस्था, मार्गदर्शन, याक (बात), असाइन, ट्रैक और सराहना शामिल हैं। ये आठ चरण उदाहरणों के साथ चरणबद्ध तरीके से डिजिटल शिक्षा की योजना और कार्यान्वयन का मार्गदर्शन करते हैं । इसका मुख्य ध्येय बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम को ध्यान में रखकर गुणवत्ता युक्त शिक्षा को प्रदान करना है। इस दिशा-निर्देश में स्कूली छात्रों के लिए ऑनलाइन क्लास (Screen Time) की अधिकतम सीमा प्रति दिन तीन घंटे निर्धारित की गई है। इसमें नर्सरी स्तर की कक्षाओं के लिए बच्चों के माता-पिता को उचित मार्गदर्शन दिया जाएगा जिससे को वो खुद ही छोटे बच्चों को उनके स्तर की शिक्षा दे सके। इस तरह की ऑनलाइन क्लास की अवधि मात्र 30 मिनट का होगी।
इस निर्देश के अनुसार पहली कक्षा से 8वीं तक के लिए प्रत्येक दिन 45-45 मिनट तक के दो ऑनलाइन सेशन और कक्षा 9 से 12 वीं के लिए 4 सेशन होंगे। कई माध्यमिक बोर्डों ने पाठ्यक्रम को काफी हद तक कम भी कर दिया है ताकि बच्चों को पाठ्यक्रम के कारण पड़ने वाले दबाव से बचाया जा सके। अतः यह देखा जा सकता है कि जैसे-जैसे ऑनलाइन शिक्षा की गतिविधि आगे बढ़ती जाएगी, इसकी चुनौतियां भी सामने आती जाएंगी और फिर हम सभी इन चुनौतियों के समाधान भी ढ़ूंढ़ते जाएंगे।
ऑनलाइन शिक्षण में कई स्कूल यह निर्देश देते हैं कि बच्चे के साथ माता या पिता भी बैठेंगे। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि बच्चे इस तरह की शिक्षण में अनुशासन को ज्यादा महत्व नहीं देते है और दूर बैठे शिक्षक के पास इस पर ज्यादा कुछ करने का विकल्प होता नहीं है, अतः वो बच्चे के अभिभावक को भी साथ ही बैठने का निर्देश देते है। परंतु इससे अभिभावकों के सामने भी कुछ परेशानियां खड़ी होती है। कल तक बच्चे और स्कूल के बीच अभिभावकों का दखल नहीं होता था परंतु अब इसके लिए अभिभावकों को समय निकालना पड़ रहा है। हमें यह याद रखना चाहिए कि लॉकडाउन के दिनों में अभिभावकों के लिए यह कार्य सरल था परंतु अब जबकि पूरा देश खुल चुका है और अभिभावकों के लिए कई तरह की व्यावसायिक चुनौतियां बढ़े हुए रूपों में दस्तक दे रही होंगी, एक नए कार्य के लिए समय निकालना निश्चित ही मुश्किल होगा। लेकिन यहां यह तथ्य भी रखना आवश्यक है कि बच्चे के साथ अभिभावकों के बैठने से अभिभावकों को अपने बच्चे के पढ़ने के तरीके, शिक्षक व अन्य सहपाठियों के साथ संवाद करने का तरीका, शिक्षक के पढ़ाने का तरीका, इत्यादि को करीब से जानने का मौका भी मिलता है।
भारत एक सासंकृतिक देश है। यहां के समाज में सांस्कृतिक मूल्यों को आज भी सराहा जाता है, अपनाया जाता है। संयुक्त परिवार की धारणा एक ऐसी ही सांस्कृतिक मूल्यों की बानगी है। भारत में आज भी कई परिवार एक ही छत के नीचे रहते हैं। वैसे शहरों में अब संयुक्त परिवार से विलग हो एकल परिवार का प्रचलन बढ़ा है। संयुक्त परिवार से एकल परिवार के तरफ विचलन का सबसे बड़ा कारण, संयुक्त परिवार में निजता का नहीं होना है। ऑनलाइन शिक्षा की गतिविधियों में इस दृष्टि से भी विचार किया जा सकता है। ऑनलाइन शिक्षा में बच्चे को निजता की आवश्यकता पड़ती है जो संयुक्त परिवार में मिलना बहुत मुश्किल का काम है। शोर-गूल, परिवार के अन्य सदस्यो का हस्तक्षेप या अन्य प्रकार की असुविधा अंततः बच्चे की एगाग्रता को बुरी तरह प्रभावित करती है। शहरो में रहने वाले ज्यादातर एकल परिवार की भी आर्थिक हालात ऐसे नही होते है कि वो बच्चे की ऑनलाइन शिक्षा के लिए एक अलग से कमरा रख सके। अतः घर पर निजता और शांति के साथ पढ़ाई करने की राह में भी कई तरह की चुनौतियां है। हमें इन पर विचार करना होगा।
अन्य अमीर देशों की तुलना में भारत में आय का वितरण मान्य है। ऑनलाइन शिक्षा की गतिविधियों में आर्थिक पक्ष व तकनीक प्राप्त की सुविधा की अनदेखी नहीं की जा सकती है। एक तो एक ही शहर में अलग अलग किस्म के स्कूल हैं जो न सिर्फ शैक्षणिक गतिविधियों की दृष्टि से भिन्न है बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी इनमें पर्याप्त भेद है। गौरतलब है कि जहां तक पाठ्यक्रम की बात है वो सभी स्कूलों में लगभग एक समान ही होते हैं। दूसरा, एक ही स्कूल में एक साथ पढ़ने वाले सभी विद्यार्थियों की आर्थिक दशा एक जैसी नही होती है। तीसरा, दूर-दराज के इलाकों,कस्बों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की आर्थिक हालात एवं बेहतर तकनीक को प्राप्त करने की सुविधा शहरों की तुलना में काफी कम होती है। इन भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में उन विद्यार्थियों को शिक्षा प्राप्त करना आसान हो जाएगा जो अच्छे, महंगे गैजेट्स का उपयोग कर सकते हैं और जो अच्छे या बड़े शहरों से आते हैं जहां नेटवर्क की सुविधा बेहतर होती है। इस तरह से यह सहज ही देखा जा सकता है कि शिक्षा प्राप्त करने के मूलभूत समान अवसर से एक बड़ा समूह वंचित रह जाएगा। इन स्थितियों में शैक्षणिक दृष्टि से असमानता बढ़ती जाएगी जो विद्या अर्जित करने वाले एक बड़े समूह में असंतोष का कारण भी बन सकता है।
ऑनलाइन शिक्षा का भविष्य हमारे बच्चों के भविष्य से जुड़ा है। जिन परिस्थियों में इसे शुरु कर प्रयोग में लाने की शुरुआत की गई, वो कोरोना महामारी के भय और सशंकित भविष्य से ग्रस्त था। आरंभ में ऐसा लगा कि थोड़े ही दिनों की बात है और हालात जल्द ही सामान्य होंगे और तब तक के लिए घरों में कैद बच्चो के लिए ऑनलाइन शिक्षा को प्रयोग के तौर पर अपनाया जा सकता है। परंतु आज जब यह कटु सत्य विदित है कि कोरोना लंबे वक्त तक हमारे साथ रहने वाला है, ऑनलाइन शिक्षा को लेकर एक गंभीर विमर्श की जरुरत है। एक जैसी शिक्षा की सर्व-सुलभता , बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य की चिंता, निजता व शांति के साथ पढ़ाई जैसी चुनोतियों को समझ व इनका समाधान कर के ही ऑनलाइन शिक्षा का सर्वोत्तम लाभ उठाया जा सकता है।