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आपका हक: आखिर कैसे केस को प्रभावित कर देता है मीडिया ट्रायल

टीवी चैनलों पर डिबेट चल रही है कि क्या दीपिका, सारा अली खान आदि को ड्रग्स के तथाकथित आरोपों में गिरफ्तार किया जाना चाहिए? जांच एजेंसियों पर भी मीडिया आरोप लगाने में भी नहीं चूकता।

नई दिल्लीSep 30, 2020 / 02:38 pm

shailendra tiwari

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मीडिया अगर अपनी वास्तविक जिम्मेदारी को निभाने पर आ जाए, तो देश का कमजोर वर्ग न्याय प्रणाली एवं कानून व्यवस्था से वंचित नहीं रह सकता। विडंबना यह है कि इन दिनों आपराधिक प्रकरणों में जिस प्रकार से मीडिया ट्रायल किया जाता है, उसे लेकर सवाल उठ रहे हैं। मीडिया ट्रायल क्या स्वीकृत एवं अपेक्षित मापदंडों के अनुकूल है? जैसे मीडिया ने सुशांत सिंह की मौत के मामले को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है। इसके पीछे टीआरपी की भयावह दौड़ ही दिखाई दे रही है।
मीडिया ट्रायल देश के न्यायिक तंत्र पर कुठाराघात करता है। अभियुक्त को एक स्वतंत्र, पारदर्शी एवं निष्पक्ष जांच का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है, लेकिन इससे उसका हनन होता है। टीवी चैनलों पर डिबेट चल रही है कि क्या दीपिका, सारा अली खान आदि को ड्रग्स के तथाकथित आरोपों में गिरफ्तार किया जाना चाहिए? जांच एजेंसियों पर भी मीडिया आरोप लगाने में भी नहीं चूकता। कहा जा रहा है कि इन सभी अभिनेत्रियों को इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जा रहा है, क्योंकि वे संभ्रांत तबके की हैं। मीडिया की यह प्रवृत्ति चिंताजनक है।

मीडिया ट्रायल की वजह से साक्ष्य ना होते हुए भी जहां एक तरफ व्यक्ति पूरे समाज में अपनी साख खो देता है, वहीं जांच एजेंसियों पर उसको गिरफ्तार करने का एक मानसिक दबाव भी बनता है। आनन-फानन में वह गिरफ्तार किया जाता है, जिसके पश्चात निचली अदालत में भी उसको राहत मिलना मुश्किल हो जाता है। पांच से सात साल के पश्चात जब अभियुक्त साक्ष्य के अभाव में बरी होता है, तो उसका मान-सम्मान, प्रतिष्ठा सभी कुछ समाप्त हो चुका होता है।

उदाहरणार्थ वर्ष 2014 में जब 2-जी स्कैम की जांच सीबीआइ कर रही थी, तब एयरटेल कंपनी के मालिक एवं सीईओ सुनील मित्तल को अभियुक्त मात्र इस आधार पर बना लिया गया की मीडिया के हाथ में कहीं से कुछ फोटो आ गई थी, जिसमें सुनील मित्तल अभियुक्त मंत्री के रिश्तेदार की शादी में सम्मिलित दिखे थे। जिस प्रकार से इस तथ्य को बार-बार टीवी चैनलों पर प्रदर्शित किया गया, उससे जांच एजेंसियों ने दबाव में आकर अंतत: सुनील मित्तल को अभियुक्त बना लिया।
आखिरकार अदालत ने 2-जी स्कैम के सभी अभियुक्त साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिए। यह 2-जी स्कैम एक बड़ा उदाहरण है कि किस प्रकार चौथा स्तंभ अगर असंतुलित हो जाए, तो बाकी स्तंभों की कार्यप्रणाली पर भी विपरीत प्रभाव डाल देता है। 2-जी स्कैम यह सिद्ध करता है कि मीडिया ट्रायल के जरिए जिस व्यक्ति को दोषी घोषित कर दिया गया हो, वह आवश्यक नहीं कि कानूनी रूप से भी दोषी हो।

इसलिए यह अतिआवश्यक है कि मीडिया ‘न्यूज एवं ‘नॉइज’ के मध्य एक लक्ष्मण रेखा खींचे, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब देश का चौथा स्तंभ बाकी तीनों स्तंभों के लिए भस्मासुर बन जाएगा।

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