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सामाजिक सुरक्षा से वंचित न रहें हमारे पूजनीय

हमारी पारिवारिक संस्था आज शहरीकरण, कामकाजी लोगों के बार-बार स्थान बदलने, एकल परिवारों की संख्या बढऩे और आधुनिक जीवन शैली की भेंट चढ़ चुकी है।

Jan 22, 2018 / 09:35 am

सुनील शर्मा

indian old men

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– अर्चना डालमिया, टिप्पणीकार

भारतीय संस्कृति में माता-पिता को भगवान का दर्जा दिया गया है। इसके अनुसार वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करना संतान का कर्तव्य है। एक समय था जब बुजुर्गों को पूजनीय माना जाता था। उनके ज्ञान के कारण समाज में उन्हें सम्मानजनक स्थान प्राप्त था किंतु अब परिदृश्य बदल चुका है। कार्य की मांग व बदलती जीवनशैली के चलते संयुक्त परिवार बिखरकर एकल परिवारों का रूप ले चुके हैं। यह आज के भागते-दौड़ते जीवन की सच्चाई है कि हमारे घरों में हमारे बुजुर्ग ही अनदेखी का शिकार हो रहे हैं और बुजुर्गों के साथ दुव्र्यवहार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। ऐसी ही एक घटना का वायरल वीडियो लोगों को याद होगा।
ऐसे वीडियो हमारी अंतरआत्मा को अस्थाई रूप से तो झकझोरते हैं लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक किसी ने भी ये वीडियो देखकर ठोस बदलाव की ओर कदम नहीं बढ़ाया। अनुमान है कि 2050 तक दुनिया में बुजुर्गो की आबादी दो सौ करोड़ हो सकती है। हमारी पारिवारिक संस्था आज शहरीकरण, कामकाजी लोगों के बार-बार स्थान बदलने, एकल परिवारों की संख्या बढऩे और आधुनिक जीवन शैली की भेंट चढ़ चुकी है। परिवार के बड़े बुजुर्ग धीरे-धीरे दरकिनार हो रहे हैं और अपने जीवन का अंतिम समय वृद्धाश्रम में बिताने को मजबूर हैं और कई बार वहां भी इन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ता है। एजवैल फाउंडेशन की ओर से किए गए एक अध्ययन के अनुसार, बुजुर्गों के मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में लगातार वृद्धि देखी जा रही है।
इसका कारण है-बढ़ते एकल व छोटे परिवार, आपसी संवाद में कमी व सामाजिक सुरक्षा का अभाव। गौरतलब है कि करीब 86 प्रतिशत लोग अपने मानवाधिकारों के बारे में नहीं जानते और केवल 68.8 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो चिकित्सा व स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा पाते हैं। शहरी इलाकों की हालत और खराब है। इनमें करीब 23 प्रतिशत वृद्ध अमानवीय अवस्थाओं में रहते हुए पाए गए और करीब 13 फीसदी को अपनी उम्र के अनुसार आवश्यक पोषण नहीं मिल रहा था। ऐसे पक्षपातपूर्ण दुव्र्यवहार से उनकी परेशानियां साफ नजर आईं। कभी घर के मुखिया रहे या अपने कारोबार के प्रमुख रहे लोग वृद्धावस्था में बेरुखी, परिवार में अनादर झेल रहे हैं। उन्हें समुचित चिकित्सा व सुरक्षा नहीं मिल पा रही और इसी के चलते वे अवसादग्रस्त हैं।
वरिष्ठ नागरिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा की जरूरत का महत्व समझते हुए 2007 में अभिभावक व वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल अधिनियम बनाया गया। यह अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों के बारे में शिक्षित करता है। साथ ही सरकार व उनकी संतान के उनके प्रति कर्तव्यों की भी जानकारी देता है। इससे बुजुर्गों को अदालत का दरवाजा खटखटाने का विकल्प मिला। इसके बावजूद हालात में बहुत सुधार नहीं आया है। वृद्धावस्था में वरिष्ठ नागरिकों को सुरक्षित व प्रसन्नचित माहौल में रहने की ऐसी जगह मिलनी चाहिए जहां वे समाज में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ बेहतर जीवन जी सकें और रचनात्मक गतिविधियों में व्यस्त रहें।

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