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ओपिनियन

अतिक्रमण हो ही क्यों?

अदालत ने फटकार लगाई या विधानसभा में मामला गूंज गया तो सबको दिखने
लगता है अतिक्रमण। रातों-रात बस्तियां उजाड़ दी जाती हैं और शुरू हो उठती
है राजनीतिक रस्साकशी

Dec 15, 2015 / 09:50 pm

शंकर शर्मा

Shakur Basti

Shakur Basti

अदालतें आदेश दे-देकर थक गईं लेकिन सरकारें हैं कि नादिरशाही रवैया छोड़ने को तैयार ही नहीं। मानो जनता ने उनको चुना ही मनमानी करने के लिए हो। ताजा उदाहरण दिल्ली की शकूर बस्ती का है, जहां रेलवे प्रशासन ने बुल्डोजर चलाकर पूरी बस्ती को उजाड़ दिया। सैकड़ों लोग कड़कड़ाती सर्दी में खुले आसमान तले रात बिताने को मजबूर हैं लेकिन परवाह किसे। बहाना है कि ये बस्ती रेलवे की जमीन पर अवैध तरीके से बसाई गई थी।

अतिक्रमण हटाना सरकारों और प्रशासन का काम है लेकिन क्या यह सवाल नहीं उठता कि जब रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हो रहा था, तब प्रशासन कहां सोया था? काम करने का ये कौन-सा तरीका है कि बिना चेतावनी दिए आनन-फानन में पूरी बस्ती ही उजाड़ दी जाए? ताजा घटना भले देश की राजधानी की रही हो लेकिन समूचे देश का हाल इससे कुछ जुदा नजर नहीं आता।

शहर कोई भी हो, उस राज्य में सरकार किसी भी दल की क्यों न हो, सूरते-हाल सब जगह एक-सी नजर आती है। जब अतिक्रमण होता है तो न शासन नजर आता है और न प्रशासन। बस्तियां बस जाती हैं, नल-बिजली के कनेक्शन तक लग जाते हैं लेकिन सब आंख मूंदे सोए रहते हैं। मानो अतिक्रमण की तरफ ना देखने की कसम खा रखी हो। क्या ये अनजाने में हो सकता है? क्या ऐसे अतिक्रमणों के पीछे प्रशासनिक मिलीभगत नजर नहीं आती? अदालत ने फटकार लगाई या विधानसभा में मामला गूंज गया तो सबको दिखने लगता है अतिक्रमण।

रातों-रात बस्तियां उजाड़ दी जाती हैं और शुरू हो उठती है राजनीतिक रस्साकशी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में शायद ही कोई हो जो अतिक्रमण का समर्थन करता नजर आए। हर सरकार और राजनीतिक दल इसका विरोध करता नजर आता है लेकिन हकीकत किसी से छिपी नहीं। दिल्ली की शकूर बस्ती को तहस-नहस करने को अमानवीय कार्रवाई बताते हुए हाईकोर्ट ने पीडि़त लोगों के रहने और खाने का इंतजाम करने को कहा है।

अदालत ने मानवीय पक्ष का हवाला देते हुए साफ किया कि ये लोगों की जान का सवाल है। रेलवे प्रशासन को पता इस बात का लगाना चाहिए कि किन अफसरों के कार्यकाल में रेलवे की जमीन पर कब्जा हुआ था? ऐसे लापरवाह अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए तो रेलवे ही नहीं तमाम दूसरे सरकारी अफसर कर्मचारी अपने कर्तव्यों का अहसास कर पाएंगे। अतिक्रमण कानून-व्यवस्था से जुड़ा मामला है लिहाजा राजनीतिक दलों को भी इस मुद्दे पर राजनीतिक रोटियां सेंकने से बचना चाहिए। अतिक्रमण के लिए कहीं कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

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