देश के अनेक राज्यों में विधानसभा सीटों के परिसीमन का काम समय-समय पर होता रहता है। पिछले महीने पाकिस्तान में सरकार बदलने के बाद वहां राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। इमरान खान के सत्ता से हटने के बाद प्रधानमंत्री बने शहबाज शरीफ अपनी सत्ता मजबूत करने के लिए भारत विरोधी माहौल बनाने में लगे हैं। असल में पाकिस्तान में यह खेल नया नहीं है। पाकिस्तान में सरकार चाहे किसी भी दल की हो, भारत विरोधी बयान देकर जनता की सहानुभूति बटोरना चाहती है। जम्मू-कश्मीर का राग अलापते पाकिस्तान को सात दशक से ज्यादा का समय हो चुका है। अनेक बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान वास्तविकता को समझ नहीं पा रहा। दुनिया में अलग-थलग पड़ चुके पाकिस्तान का साथ उसके सहयोगी भी छोड़ चुके हैं। आर्थिक रूप से भी पाकिस्तान की हालत खस्ता है। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि नफरत की राजनीति करके उसने आखिर अब तक क्या पाया? आतंकवाद की जिस आग से उसने भारत को जलाना चाहा, वही आग आज उसे जला रही है। राजनीतिक अस्थिरता का आलम यह है कि जहां भारत ने पिछले 25 सालों मेें सिर्फ तीन प्रधानमंत्री देखे, वहीं पाकिस्तान इसी अवधि में नौवां प्रधानमंत्री देख रहा है। आजादी के 75 साल के दौरान भी वहां कोई सरकार पांच साल नहीं चल पाई।
भारत ने अपने आंतरिक मुद्दों पर किसी अन्य देश की दखलअंदाजी पहले भी स्वीकार नहीं की और आगे भी नहीं करेगा। इसलिए बेहतर यही होगा कि पाकिस्तान भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की बजाय अपनी हालत सुधारने पर जोर दे। अगर उसने ऐसा नहीं किया, तो पाकिस्तान गृहयुद्ध की आग में झुलस सकता है। आंतरिक असंतोष की आग में जलकर पाकिस्तान विभाजन की कगार पर पहुंच सकता है। अब फैसला पाकिस्तान को करना है कि उसे विकास की राह पर चलना है या भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके अपने आपको और कमजोर बनाना है।