अपनी ही दोषपूर्ण नीतियों के जाल में बुरी तरह फंस चुका है पाकिस्तान
राजनीतिक और आर्थिक विफलताओं के कारण देश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और बड़े देशों से कर्ज पर जीने के लिए मजबूर हो गया है। ये अब बार-बार इस्लामाबाद से कर्ज को चुकता करने के लिए कह रहे हैं। इनमें वे देश भी शामिल हैं, जिन्हें पाकिस्तान अपना मित्र कहता है।
अपनी ही दोषपूर्ण नीतियों के जाल में बुरी तरह फंस चुका है पाकिस्तान
अरुण जोशी
दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलों के जानकार पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बेहद नाजुक स्थिति में है। जनता का शासन-व्यवस्था के प्रति विश्वास घट रहा है। अर्थव्यवस्था उस स्थिति में पहुंच गई है जहां रिकवरी मुश्किल ही नहीं, असम्भव लगती है। देश ने दिशा खो दी है। एक समग्र राष्ट्र के लिए दो चीजें अत्यावश्यक होती हैं-सुचारू रूप से चलने वाला आर्थिक तंत्र और राजनीतिक स्थिरता। ये दोनों पहलू एक-दूसरे के पूरक हैं। शासन-प्रशासन राजनीतिक ध्रुवीकरण का शिकार है। गलत प्राथमिकताओं पर एकाग्रता के कारण गवर्नेंस के लिए मूलभूत नीतियों की अवहेलना की प्रवृत्ति ने पाकिस्तान को भयावह संकट के सामने ला खड़ा किया है। राजनीतिक और आर्थिक विफलताओं के कारण देश अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और बड़े देशों से कर्ज पर जीने के लिए मजबूर हो गया है। ये अब बार-बार इस्लामाबाद से कर्ज को चुकता करने के लिए कह रहे हैं। इनमें वे देश भी शामिल हैं, जिन्हें पाकिस्तान अपना मित्र कहता है। संक्षेप में, पाकिस्तानियों के लिए यह जानकारी हासिल करना बड़ी पहेली है कि कोई चीज किस हद तक उनकी अपनी है या सब गिरवी रखी हुई है।
पाकिस्तान कर्ज में डूबा हुआ है। उसकी राहत का उपाय एक ही है, ज्यादा से ज्यादा कर्ज लेना। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से एक अन्य समझौता करने पर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है। आइएमएफ ने दो अरब डॉलर की मंजूरी के लिए कागजात तैयार कर लिए हैं, जिन पर पाकिस्तान को भरे हुए और निर्दिष्ट स्थानों पर दस्तखत करने हैं। आइएमएफ ने कर्ज के लिए कड़ी शर्तें रखी हैं। वह पाकिस्तान को सुस्पष्ट रूप से निर्देशित कर रहा है कि वह कर्ज में मिले एक-एक पैसे को कैसे खर्च करे। पाकिस्तान को अपना बजट आइएमएफ के अनुकूल बनाना होगा। यानी आइएमएफ के निर्देशानुसार करों को बढ़ाना, ईंधन कीमतों में वृद्धि करना और लगभग दैनिक आधार पर अपने फाइनेंस के मॉनिटरिंग की अनुमति देना आदि। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए वित्तीय बंधक बनने के करीब ही है।
अन्य आर्थिक मुद्दे भी हैं, जिन्हें संबोधित करने की जरूरत है। उसने चीन, सऊदी अरब और यूएई से जो भारी मात्रा में कर्ज लिया है, उसे चुकाने का कोई भी खाका तैयार नहीं है। इन देशों और आइएमएफ से लिए कर्ज को चुकाने की क्षमता पाकिस्तान की नहीं है। वह सतत राजनीतिक अस्थिरता और आतंकवाद से बुरी तरह घिरा हुआ है। साथ ही इन समस्याओं से प्रभावशाली तरीके से निपटने में अक्षम है।
पाकिस्तान में जो घटित हो रहा है, उस पर ध्यान दें, तो पता चलेगा कि ऐसा क्यों हो रहा है। डॉन अखबार ने पिछले वर्ष अक्टूबर में अपने संपादकीय में इसे रेखांकित किया था। अखबार ने लिखा था कि जब लोग अपनी आय को देखते हैं और गैस तथा बिजली की कीमतों में और वृद्धि की लगातार खबरें सुनते हैं, तो उनकी चिंता और घबराहट बढ़ जाती है। सरकार को पता ही नहीं है कि धीरे-धीरे बिगड़ते इस हालात का मुकाबला कैसे करना है। इस परिदृश्य को पिछले वर्ष अक्टूबर में चित्रित किया गया था और आज की स्थिति में एक यूएस डॉलर पाकिस्तानी दो सौ रुपए से ज्यादा का है, पेट्रोल प्रति लीटर ढाई सौ रुपए बिक रहा है और महंगाई उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार 21.32 फीसदी हो गई, जो हाल के वर्ष में सबसे ज्यादा है। मुद्रास्फीति इतनी ऊंचाई पर है कि आम पाकिस्तानी दयनीयता और कष्टों के बोझ तले दबा है। परिवहन सेवाओं की दरों में उच्च स्तर पर वृद्धि से इनपुट लागत बढ़ी, मुद्रास्फीति का प्रतिशत अस्वीकार्य रूप से बढ़ गया। पाकिस्तानी मीडिया ने इन सब मुद्दों पर ध्यान खींचा है, पर देश में घोर असहायपन की भावना घर कर गई है। घरेलू स्तर पर, आम लोगों को आर्थिक बदहाली से बाहर निकालने के लिए अमीरों पर सुपर टैक्स लगाने के ऐलान से भी उनकी तकलीफों का अंत होता नजर नहीं आता।
आर्थिक संकट हताशा को जन्म देता है और असहाय लोगों को खतरनाक और आततायी कृत्यों की ओर धकलेती है। वे अपराध करते हैं और अंतत: उनके कदम आतंकवाद की ओर बढ़ जाते हैं। पाकिस्तान की आर्थिक मदद करने वाले देश चाहते हैं कि वह अपने बलबूते पर संसाधनों का निर्माण करे। उन्हें अपने कर्ज के वापसी की चिंता है। उन्होंने पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया है कि वे कोई चैरिटी नहीं चला रहे हैं। उनकी चिन्ताएं भी, इस तथ्य के मद्देनजर कि, पाकिस्तान जिस तरह से खुद को बर्बाद कर रहा है, वाजिब हैं। वह अपने पड़ोसी देशों जैसे भारत, ईरान और अफगानिस्तान के साथ मधुर सम्बंध स्थापित करने में भी कमजोर नजर आता है। उसकी अपनी ही सरजमीं के भीतर आतंकी संगठन पुरजोर ऐसी मांग कर रहे हैं, जो क्रूर और पाशविकता भरी है। पाकिस्तान सरकार जिस तहरीक-ए-तालिबान, पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ शांति के लिए मोल-भाव कर रही है, उसने अपनी मांग से पीछे हटने से इंकार कर दिया है। वह चाहता है कि पूर्व संघ शासित कबीलाई क्षेत्र जिसे फाटा के रूप में जाना जाता है, को मूल भौगोलिक क्षेत्र में वापस लाया जाए। जुलाई 2018 में फाटा को खैबर-पख्तूनख्वा क्षेत्र में शामिल कर लिया गया था। 9/11 के आतंकी हमलों के बाद से यह क्षेत्र आतंकवाद का प्रमुख केंद्र बन गया है। टीटीपी चाहता है कि फाटा की मूल भौगोलिक स्थिति बहाल हो।
पाकिस्तानी मीडिया का बहुत स्पष्टता से कहना है कि देश के वर्तमान हालात बहुत विकट हैं। बदहाल आर्थिक स्थिति न केवल महंगाई बढ़ाएगी, बल्कि विकास दर को भी धीमा कर देगी। आगे चलकर उच्च बेरोजगारी की भी वजह बनेगी। यह भी माना जाता है कि आर्थिक क्षेत्र पर दबाव बनाने से बढ़ती महंगाई को रोकने में अर्थपूर्ण असर नहीं पड़ेगा। पाकिस्तान खुद की दोषपूर्ण प्राथमिकताओं और नीतियों के जाल में ही बुरी तरह से फंस गया लगता है और आर्थिक आपदा का सामना कर रहा है। यह तबाही कम नहीं हो रही है।
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