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शिकंजा विषझाड़ का

राजस्थान के कोटा जिले में एक चिंगारी फूटी है। ‘राजस्थान पत्रिका’ के समाचार अभियान के बाद जिले में विषझाड़ विलायती बबूल के खिलाफ वातावरण बनने लगा है। विलायती बबूल, जिसे वानस्पतिक भाषा में प्रोसोपिस अकेसिया जूलीफ्लोरा कहा जाता है, न सिर्फ लाखों हेक्टेयर जमीन लील चुका है बल्कि वनस्पति और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियों को नष्ट कर चुका है।

जयपुरDec 26, 2019 / 01:39 pm

भुवनेश जैन

Juliflora

Juliflora

भुवनेश जैन

राजस्थान के कोटा जिले में एक चिंगारी फूटी है। ‘राजस्थान पत्रिका’ के समाचार अभियान के बाद जिले में विषझाड़ विलायती बबूल के खिलाफ वातावरण बनने लगा है। विलायती बबूल, जिसे वानस्पतिक भाषा में प्रोसोपिस अकेसिया जूलीफ्लोरा (Juliflora) कहा जाता है, न सिर्फ लाखों हेक्टेयर जमीन लील चुका है बल्कि वनस्पति और जन्तुओं की सैकड़ों प्रजातियों को नष्ट कर चुका है।

विलायती बबूल पूरी तरह एक निकम्मा पौधा है। राजस्थान में कई जगह तो इसे ‘बावलिया’ भी बोला जाता है। न इसके पत्ते काम के हैं, न फूल। न छाया मिलती है, न लकड़ी। पर्यावरण को तहस-नहस करने में सबसे आगे। जरा सी नमी मिल जाए तो चट्टानों पर भी पनप जाता है और फिर धीरे-धीरे जंगल, खेत, तालाब सबको खा जाता है। हाड़ौती के 45 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जमीन पर इसने अतिक्रमण कर लिया है। सिरोही जिले के 40 हजार हेक्टेयर में यह छा चुका है। दिल्ली के रिज इलाके और एनसीआर के अनेक क्षेत्र इसके मायावी शिकंजे में आ चुके हैं। राजस्थान के अलावा हरियाणा, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु तक इसके प्रकोप से जूझ रहे हैं। जहां यह पनपता है, जलस्तर नीचे चला जाता है। यह अपने नीचे घास तक नहीं पनपने देता। इसकी कंटीली झाडिय़ां सैकड़ों पक्षी प्रजातियों को नष्ट कर चुकी। देशी बबूल, धोकड़ा और थोर जैसे वृक्षों को यह अपने घरों से बेघर कर चुका। ऑक्सीजन छोडऩा तो दूर, यह वातावरण में कार्बनडाई ऑक्साइड जैसी विषैली गैस की मात्रा बढ़ा देता है। अकेले इसी के कारण भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (Keoladeo National Park) में अनेक अजगरों की जीवन-ज्योति बुझ गई।

इतने सारे अवगुण होने के बावजूद वन विभाग विलायती बबूल का मोह छोड़ नहीं पा रहा। इसी के बूते तो वह वन विस्तार के झूठे तथ्य इकट्ठा कर पाता है। इतने नुकसान के बावजूद इस विषझाड़ के सफाये का कोई बड़ा अभियान आज तक नहीं चलाया गया।

कोटा से एक चिंगारी उठी है। कुछ संस्थाएं विलायती बबूल को उखाड़ फेंकने के अभियान में आगे आई हैं। यह चिंगारी आग में बदलनी चाहिए। हमें संकल्प करना चाहिए, अपने राज्य और देश को इन कांटों से मुक्त कराने का। इससे हम बहुत सी जमीन को बर्बाद होने से बचा सकेंगे। जलस्तर भी ऊंचा उठ सकेगा। ग्राम पंचायतों को युद्धस्तर पर इस काम को हाथ में लेना चाहिए। अच्छा हो वन विभाग खुद बीड़ा उठाए। हालांकि उससे उम्मीद कम ही है। आए दिन शहरों में जंगली जानवरों का घुस आना, वन क्षेत्र से अवैध खनन धड़ल्ले से होना, शिकार की बढ़ती घटनाएं बताती हैं कि वन विभाग कितना संवदेनशील है। वन विभाग ने ही वाह-वाही लूटने के लिए इस नुकसानदायक पौधे के बीजों का छिड़काव करवाया। उसी के दिए घाव आज नासूर बन गए हैं। कोटा ने घाव भरने की शुरुआत की है, आओ हम सब इस पावन यज्ञ में अपनी-अपनी आहुति डालें।

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