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Patrika Opinion: सामूहिक खुशी में बदल सकती है निजी खुशी

न केवल विवाह समारोहों बल्कि जन्म दिन, विवाह वर्षगांठ व दूसरे मांगलिक अवसरों पर दिखावे की बजाय ऐसे संकल्प लिए जाएं तो संतुष्टि का अलग ही भाव महसूस होता है।

Jun 02, 2023 / 10:36 pm

Patrika Desk

Patrika Opinion: सामूहिक खुशी में बदल सकती है निजी खुशी

Patrika Opinion: सामूहिक खुशी में बदल सकती है निजी खुशी

विवाह और अन्य मांगलिक मौकों पर उपहारों का लेन-देन अब होड़ में बदलता जा रहा है। आशीर्वाद समारोह हो या किसी का जन्मोत्सव हमारे समाज में उपहार लेने-देने की परिपाटी को हैसियत से नापा जाने लगा है। लेकिन ऐसे मांगलिक मौकों को जरूरतमंदों की मदद का जरिया बना लिया जाए तो इससे बड़ा पुण्य भला क्या हो सकता है। तमिलनाडु के कोयम्बटूर जिले में एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी बेटी की शादी के मौके पर उपहार में आदिवासी छात्र-छात्राओं के लिए पुस्तकें स्वीकार करके ऐसा ही पुनीत काम किया है। सामाजिक कार्यकर्ता ने पहले ही अपने मित्रों और शुभचिंतकों से आग्रह कर दिया था कि शादी के अवसर पर बेटी को कोई उपहार देना चाहते हैं, तो पुस्तकों से बेहतर और कुछ नहीं होगा।
आज भी देश के कई हिस्सों में समुचित संसाधनों के अभाव के कारण बड़ी आबादी शिक्षा के सामान्य अवसरों से भी वंचित है। जो बच्चे पढ़ रहे हैं, उनकी प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़ी सामग्री और जीवन को बेहतर बनाने वाले साहित्य तक पहुंच भी मुश्किल है। किताबें व्यक्ति का जीवन बदल देती हैं। इस लिहाज से पाठ्यपुस्तकों के अलावा भी पुस्तकें पढऩा जरूरी है। यह अलग बात है कि इंटरनेट के चलते वर्तमान में जिस तरह का माहौल बन गया है, उसमें ऐसे बच्चे ही नहीं बड़े भी पुस्तकों से दूर हो रहे हैं, जिनको पुस्तकें आसानी से उपलब्ध हैं। इस लिहाज से आदिवासी इलाके के बच्चों में किताबों के प्रति रुचि बनाए रखने के लिए उन तक पुस्तकें पहुंचाने के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। पुस्तकें जुटाने के लिए विवाह जैसे अवसर का इस्तेमाल करने से दूसरे लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी। यह इस बात का उदाहरण है कि हम ऐसे व्यक्तिगत खुशी के अवसरों को सामूहिक खुशी के अवसरों में बदल सकते हैं। न केवल विवाह समारोहों बल्कि जन्म दिन, विवाह वर्षगांठ व दूसरे मांगलिक अवसरों पर दिखावे की बजाय ऐसे संकल्प लिए जाएं तो संतुष्टि का अलग ही भाव महसूस होता है। न केवल उपहार स्वीकार करने वालों में बल्कि उपहार देने वालों में भी।
जरूरतमंदों को किस तरह से मदद पहुंचाई जाए, यह सोच समाज के उन वर्गों में जरूर रहनी चाहिए जो सक्षम हैं। कम से कम अपने घर-परिवारों में खुशी के मौकों पर ऐसा काम होना चाहिए, जिससे किसी के चेहरे पर मुस्कान आ सके। यह मदद सिर्फ पुस्तकों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। दवाइयों की कमी का सामना कर रहे मरीजों तक दवाइयां पहुंचाना, निराश्रित गृहों में रहने वालों को राहत देने जैसे अनेक कार्य भी किए जा सकते हैं।

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