scriptकड़वे ग्रास | Politicians and bureacracy in india | Patrika News
ओपिनियन

कड़वे ग्रास

राजनेताओं के हाथों सरकारी कर्मचारियों के प्रताडि़त होने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। विशेष तौर पर विधायकों द्वारा पुलिस अफसरों और कर्मियों को सरेआम अपमानित करने की घटनाएं।

जयपुरJun 03, 2020 / 07:17 am

भुवनेश जैन

gulab kothari, Gulab Kothari Article, gulab kothari articles, hindi articles, Opinion, rajasthan patrika article, rajasthanpatrika articles, religion and spirituality, special article, work and life

gulab kothari, Gulab Kothari Article, gulab kothari articles, hindi articles, Opinion, rajasthan patrika article, rajasthanpatrika articles, religion and spirituality, special article, work and life

– भुवनेश जैन

राजनेताओं के हाथों सरकारी कर्मचारियों के प्रताडि़त होने के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। विशेष तौर पर विधायकों द्वारा पुलिस अफसरों और कर्मियों को सरेआम अपमानित करने की घटनाएं। देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिन ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। लगता है दोनों अपने प्रभुत्व का संघर्ष कर रहे हों। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच नहीं होने से ज्यादातर मामलों में सच्चाई सामने आ ही नहीं पाती। सत्ता बल के कारण ऐसे हित संघर्ष में जीत प्राय: विधायकों की होती है।

राजस्थान में कथित राजनीतिक प्रताडऩा के कारण राजगढ़ के थानाधिकारी विष्णुदत्त विश्नोई का आत्महत्या प्रकरण इन दिनों चर्चा में है। कुछ दिनों पूर्व कोरोना की निषेधाज्ञा के उल्लंघन पर टोके जाने पर सत्ता पक्ष के एक विधायक ने अफसर का तबादला करवा दिया था। यहां तो एक तत्कालीन मंत्री कई साल पहले एक वरिष्ठ आइएएस अफसर को थप्पड़ मारकर इतिहास रच चुके हैं। मध्यप्रदेश के रीवा में पिछले दिनों एक इंजीनियर के खुदकुशी करने का मामला सामने आया था। इस मामले में भाजपा नेताओं पर प्रताडऩा का आरोप लगा था। इंदौर में तो एक नेता पुत्र ने सरेराह अफसर को बल्ले से पीटकर अपने पिता का नाम “रोशन” कर दिया था।

इस तरह की घटनाओं में पीटने और प्रताडि़त करने वाले राजनेताओं पर कभी कार्रवाई नहीं होती। उनके जलवे ऐसे होते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व भी उन्हें छेडऩे का खतरा मोल नहीं लेते। तबादले, निलम्बन या लाइन हाजिरी के रूप में सरकारी कर्मियों को ही सजा मिलती है। उन्हें जीवनभर अपमान का घूंट पीकर सब्र करना पड़ता है। जो सब्र नहीं कर पाते वे कोई दु:खद कदम उठा लेते हैं।

ऐसा नहीं है कि सभी सरकारी अफसर और कर्मचारी दूध के धुले होते हैं। उनमें से बहुत से ऐसे भी होते हैं जिन्हें “मलाई” खाने का चस्का लग जाता है, जिसे हासिल करने के लिए वे राजनेताओं को आका बना लेते हैं। लेकिन कत्र्तव्यनिष्ठ कर्मियों की भी कमी नहीं है। वे गलत काम करने के लिए विधायक और दूसरे नेताओं का दबाव सह नहीं पाते। उनका आत्मसम्मान इसकी इजाजत नहीं देता। इसके बदले उन्हें प्रताडऩा झेलनी पड़ती है। रीवा में दो साल पहले एक प्राइवेट बैंक के मैनेजर ने खुदकुशी कर ली थी। उसने सुसाइड नोट में लिखा था कि कतिपय नेता उस पर बिना गारंटी ऋण बांटने का दबाव बना रहे हैं। इस मामले में भी किसी राजनेता का कुछ नहीं बिगड़ा।

ज्यादातर राजनेता कुर्सी पर आने के बाद अपने-आप को सर्वेसर्वा समझने लगते हैं और अपने इलाके के अफसरों को अपना चाकर। तमाम गलत काम करते हैं, पर टोकाटाकी या हुकुम की नाफरमानी उन्हें पसंद नहीं है। ऐसा करने वाले अफसरों को वे ऐसा सबक सिखाते हैं कि आने वाला कोई अफसर फिर ऐसी “हिमाकत” नहीं कर सके। नेतृत्व या तो मूक-बधिर और नेत्रहीन होने का दिखावा करता है या अपराधी नेता के सिर पर हाथ रख देता है। यही कारण है कि राजनीति में रेत माफिया, शराब माफिया, कब्जा माफिया की भरमार होती जा रही है। दागदार चरित्र वाले नेता टिकट कबाड़ लेते हैं और नासूर बन सिस्टम को खोखला करते रहते हैं।

ऐसे मामलों में सरकारें जांच के नाम पर मामलों को “फाइलों की कब्रगाह” यानी सीआइडी (सीबी) में भेज कर दफना देती हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि सरकारी अफसर हमेशा सही होते हैं। असल में अफसरशाही की इस हालत के लिए वे भी कम जिम्मेदार नहीं है। “मलाईदार” पोस्टिंग के लिए बेईमानों के आगे-पीछे घूमकर और साथियों के साथ अन्याय होने पर मौन साधकर वे भी राजनेताओं की मनमानी को बढ़ावा देते हैं।

ऐसे मामलों में यदि वाकई स्वतंत्र जांच हो और दोषियों को सजा मिलने लगे तो वातावरण बदला जा सकता है। पर सवाल यह है कि क्या कोई जांच एजेंसी निष्पक्ष बची है? सीबीआइ पर थोड़ा भरोसा रहता है पर उसके पक्षपात के भी ढेरों उदाहरण सामने आने लगे हैं। न्यायपालिका जरूर विश्वसनीय है, पर वह कब तक जांच एजेंसी की भूमिका अदा करेगी। विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को मिल बैठकर इसका हल निकालना पड़ेगा। जनता कब तक आंखें बंद कर अव्यवस्था के कड़वे ग्रास निगलती रहेगी?

Home / Prime / Opinion / कड़वे ग्रास

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो