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प्रवाह : बाहुबलियों से मुक्ति की ओर

आजादी के 75 साल बाद अब पहली बार उत्तरप्रदेश में हालात बदले हुए नजर आ रहे हैं। क्यों थी यह दशा और इस राज्य को कैसे मिली दिशा, यह जानने के लिए पढ़ें ‘पत्रिका’ समूह के डिप्टी एडिटर भुवनेश जैन का विशेष कॉलम – प्रवाह : बाहुबलियों से मुक्ति की ओर…

जयपुरDec 25, 2021 / 10:29 am

भुवनेश जैन

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आम धारणा है कि राजनेताओं और अपराधियों का सम्बन्ध चोली-दामन का होता है। उत्तर प्रदेश इस मामले में कुछ ज्यादा ही कुख्यात रहा है। वहां अपराधी जेलों में बन्द रह कर भी चुनाव जीतते रहे हैं। बीसियों ऐसे बाहुबली हैं, जिनका सिक्का आस-पास के कई विधानसभा क्षेत्रों में ठसक के साथ चलता रहा है। वे स्वयं भी चुनाव जीतते रहे हैं और अपने समर्थकों को जितवाते भी रहे हैं। सरकारों में अपराधियों का बोलबाला रहता आया है। उनकी दबंगई के कारण आम जनता अत्याचार सहती रही है। लेकिन आजादी के 75 साल बाद अब पहली बार हालात बदले हुए नजर आ रहे हैं।
हाल ही ‘पत्रिका’ समूह के प्रधान सम्पादक गुलाब कोठारी के साथ उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्व हिस्से के कई जनपदों (जिलों) की यात्रा करने का मौका मिला। योगी आदित्यनाथ सरकार की अन्य उपलब्धियों पर राजनीतिक जुड़ाव या विरोध के अनुसार अलग-अलग मत सुनने को मिले-पर एक आवाज समान रूप से सभी स्थानों पर सुनाई दी कि अपराधी या तो जेलों में पहुंच गए या बिलों में छुप गए। जनता काफी राहत महसूस कर रही है।
बाहुबलियों के खिलाफ एक शब्द जुबान पर लाने से पहले सौ बार सोचने वाले आम लोग अब खुलकर उनके खिलाफ बोलने लगे हैं। उनका दावा है कि उत्तर प्रदेश में सही मायनों में लोकतंत्र महसूस होने लगा है। उनको यह भी विश्वास है कि रही-सही कसर आने वाले विधानसभा चुनावों में पूरी हो जाएगी क्योंकि बाहुबलियों को इस बार न तो टिकट मिलेंगे और न ही चुनाव के समय उनकी मनमानी चल पाएगी।
प्रदेश के पूर्वांचल को तो बाहुबलियों का गढ़ माना जाता रहा है। प्रतापगढ़ क्षेत्र की पूर्व रियासत भदरी के रघुराज प्रतापसिंह उर्फ राजा भैया, गोरखपुर के बाहुबली हरिशंकर तिवारी और रायबरेली के अखिलेश सिंह तो जेल में रह कर भी चुनाव जीत चुके हैं। न सिर्फ जीत चुके बल्कि आस-पास की दर्जनों सीटों से भी वो ही उम्मीदवार जीता, जिसे इन्होंने पसन्द किया। प्रदेश में करीब डेढ़ दर्जन ऐसे बाहुबली हैं, जो विधानसभा की एक चौथाई सीटों को प्रभावित करने की क्षमता रखते थे। एक दर्जन सीटों पर असर रखने वाले मुख्तार अंसारी अब सलाखों के पीछे हैं। कुछ बाहुबली निर्दलीय लड़ते रहे हैं और फिर पार्टियों से जुड़ जाते हैं।
पिछले चुनावों में भाजपा, सपा और बसपा ने कई बाहुबलियों को टिकट दिए थे। इनमें से कइयों पर कड़ी कार्रवाई हुई। जेलों में डाले गए, सम्पत्ति कुर्क की गई। नतीजा यह हुआ कि लोगों के मन से इनका भय समाप्त होने लगा है। उम्मीद की जा रही है कि इस बार मतदाता अपेक्षाकृत निर्भय होकर वोट डालेंगे। यूपी में बाहुबलियों पर अंकुश लगाकर सरकार ने अन्य राज्यों को भी एक अच्छी राह दिखाई है। यूपी की तर्ज पर ही अब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित उन सभी राज्यों को भी बाहुबलियों पर नकेल कसनी चाहिए, जहां निकट भविष्य में चुनाव हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक पक्ष पूर्व रियासतों के दबदबे का भी है। इनसे आने वाले लोग भी चुनाव लगातार जीतते रहे हैं। इनमें से भी कुछ लोगों ने बाहुबलियों वाली राह पकड़ी। अपने और आसपास के विधानसभा क्षेत्रों में ऐसा दबदबा बना लिया कि उन्हें चुनौती देने की कोई हिम्मत ही नहीं करता। इस बार राजनीतिक दलों का उनके प्रति भी मोहभंग हो रहा है। हालात बता रहे हैं कि उन्हें टिकट हासिल करना भी मुश्किल हो जाएगा।
अपराधियों पर कार्रवाई होने से महिलाएं भी सुखी हैं। हालांकि कुछ लोग बाहुबलियों और अपराधियों पर कार्रवाई करने में राजनीतिक भेदभाव का आरोप लगाते हैं, पर प्रदेश में बाहुबलियों और मनमानी करने वाले प्रभावशाली लोगों के शिकंजे से लोकतंत्र के मुक्त होने की राह प्रशस्त हो चली है- यह बहुत बड़ी बात है।
bhuwan.jain@epatrika.com

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