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आधी आबादी: अब न आए अपराध की राह चुनने की नौबत

फूलन एक प्रतीक और भय का वह नाम है, जो कहता है कि स्त्री के पास जब अपनी रक्षा के लिए कोई अंतिम उपाय नहीं बचता और जब वह मरना भी नहीं चाहती, तो वह फूलन देवी बन जाती है।यही दुआ है कि फिर कोई स्त्री उत्पीडि़त न हो, उसे न्याय सही तरीके से मिल जाए।

नई दिल्लीAug 02, 2021 / 12:46 pm

Patrika Desk

फूलन देवी

फूलन देवी

अंकिता जैन

(‘ऐसी वैसी औरत’ कहानी संग्रह की लेखिका, स्त्री मुद्दों पर लेखन)

पिछले दिनों फूलन देवी की पुण्यतिथि थी। कई तरह की चर्चाएं सोशल मीडिया पर हुईं। इंटरव्यू और सोशल मीडिया पर वायरल हो रही सामग्री तक ही फूलन देवी सीमित नहीं थी। मेरी पैदाइश चम्बल की है और ननिहाल बुंदेलखंड। इसलिए मैंने भी कई चर्चाएं सुनीं। शादी के बाद वह कुम्हेड़ी में रहती थी। कुम्हेड़ी मेरी मां की मौसी का ससुराल भी था। किस्से सुनाते वक्त वह बताती थीं कि डाकुओं के गिरोह में शामिल होने से एक दिन पहले उसको उन्होंने कुएं पर पानी भरते हुए देखा था। वह बताती थीं कि वह सामाजिक रूप से प्रताडि़त थी।

आजकल का तो पता नहीं, आज से 25-30 साल पहले जब कोई लड़की या औरत जोर आवाज में बोल देती, या कोई छुट-पुट लड़ाई लड़ लेती, यहां तक कि घर में भी अपने भाई-बहन या दोस्त से लड़ लेती तो उसे ‘तू बड़ी फूलन देवी बन रही है’ कहकर छेड़ा जाता। कोई लड़की किसी लड़के को छेडख़ानी में थप्पड़ भी मार दे, तो उसे लोग मजाक में फूलन ही कहते थे। वह उस दौर में कम से कम उस क्षेत्र की लड़कियों के लिए एक ऐसी नायिका के रूप में देखी जाती थी, जो अपने प्रति अन्याय के लिए कहीं भीख नहीं मांगेगी बल्कि बंदूक उठा लेगी। हालांकि बंदूक छोड़ो, हाथ उठा लेना भी लड़कियों के लिए बड़ी बात थी और आधुनिक समय में भी यही हालत है।

वह जिस दौर में पैदा हुई, उस दौर में भी स्त्रियों के साथ सामूहिक बलात्कार, शारीरिक शोषण, मारपीट आदि घटनाएं बहुत होती थीं, मगर तब इन घटनाओं पर आवाज उठाने वाला कोई सोशल मीडिया, कोई टीआरपी न्यूज चैनल, कोई एनजीओ नहीं था। उसने जो रास्ता चुना वह उस दौर में उसके साथ हुए अन्याय का बदला लेने का अंतिम रास्ता था। एक और अंतिम रास्ता था, जो इस तरह की घटनाओं (जो होती तो बहुतों के साथ थीं, मगर मीडिया के अति जागरूक न होने की वजह से दिखाई नहीं देती थीं) के बाद सामान्यत: महिलाएं अपना लेती थीं, आत्महत्या का। यह प्रचलित था कि औरत की आबरू लुट गई अब उसके पास जीने के लिए बचा ही क्या है? यही सोच थी तब, शायद अब भी काफी हद तक है। मगर अब कानून सख्त है। पीडि़त का साथ देने के लिए सोशल मीडिया, न्यूज चैनल आदि भी हैं।

अपराध के रास्ते पर चलते हुए उसने कई हत्याएं कीं। इन हत्याओं को किसी भी रूप में सही ठहराना जायज नहीं होगा। गुनाह, गुनाह ही होता है, चाहे कारण कुछ भी हो। फिर भी फूलन एक प्रतीक और भय का वह नाम है, जो कहता है कि स्त्री के पास जब अपनी रक्षा के लिए कोई अंतिम उपाय नहीं बचता और जब वह मरना भी नहीं चाहती, तो वह फूलन देवी बन जाती है। फूलन ने बदला लेने के लिए अपराध की राह चुनी। बाद में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरकार तथा प्रतिद्वंद्वी गिरोहों ने उसको पकडऩे की बहुत कोशिश की। वह जानती थी कि उत्तर प्रदेश में सरेंडर करते ही उसे मार दिया जाएगा। अपने लिए एमपी सुरक्षित मानते हुए उसने वहीं सरेंडर किया और अपनी शर्तों में एक यह भी रखी कि उसे कभी यूपी पुलिस को नहीं सौंपा जाएगा। यह अलग बात है कि बाद में मुलायम सिंह ने उसे समाजवादी पार्टी में ले लिया। डकैत से नेता बनी फूलन देवी की 25 जुलाई 2001 को हत्या कर दी गई।

वर्तमान हालत में यही दुआ है कि फिर कोई स्त्री उत्पीडि़त न हो, उसे न्याय सही तरीके से मिल जाए। यह हमारी भी उतनी ही जिम्मेदारी है कि हम पीडि़त के साथ खड़े होंं।

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