scriptजमीनी हकीकत | rajasthan patrika editorial 20 march 2017 | Patrika News
ओपिनियन

जमीनी हकीकत

गोष्ठियों-सेमीनारों में गरीब को सस्ता और त्वरित न्याय दिलाने की वकालत भी खूब होती है। लेकिन बड़ी बात ये कि सिर्फ वकालत से कुछ होने वाला नहीं।

Mar 20, 2017 / 10:22 am

अजब देश है अपना। जितना बड़ा अपराधी उसकी उतनी ही ऊंची पहुंच होती है। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. खेहर की ये पीड़ा राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण की सच्चाई बयां करने के लिए पर्याप्त मानी जानी चाहिए। 
अपराधियों की ऊपरी पहुंच के बारे में भला खेहर से बेहतर और जानता भी कौन होगा? उन्होंने जिंदगी में जो कुछ देखा होगा, वही अनुभव वे देश के साथ साझा कर रहे हैं। जमीनी हकीकत आज यही है। दुष्कर्म या हत्या के आरोपी हों अथवा भ्रष्टाचार और घोटालों के अभियुक्त, अपने बचाव के लिए सबसे ऊंची अदालत तक पहुंच जाते हैं। 
महंगे से महंगे वकीलों के दम पर कई बार बरी भी हो जाते हैं। लेकिन दुष्कर्म पीडि़त अथवा तेजाब फेंकने से झुलसे लोग क्या करें? वे लोग महंगे वकील कैसे करें जिनके घर में कमाने वाला एकमात्र व्यक्ति भी काल का शिकार हो गया हो? देश में इससे पहले भी मुख्य न्यायाधीश अथवा कानून मंत्री इस पर अपनी चिंता जता चुके हैं। 
गोष्ठियों-सेमीनारों में गरीब को सस्ता और त्वरित न्याय दिलाने की वकालत भी खूब होती है। लेकिन बड़ी बात ये कि सिर्फ वकालत से कुछ होने वाला नहीं। अदालतों में होने वाली व्यावहारिक परेशानियों का समाधान निकाले बिना व्यवस्था में सुधार हो ही नहीं सकता। 
दुष्कर्म पीडि़ता और उसके परिजन न्याय की आस में सालों-साल अदालतों के चक्कर लगाते रहें तो इसे क्या माना जाए? चिंता की बात यह है कि तीस साल पहले भी यही होता था और आज भी यही हो रहा है। हम यह भी जानते हैं कि देश में मुकदमों की संख्या जिस गति से बढ़ रही है, उस गति से जजों की संख्या नहीं बढ़ रही। 
पीडि़तों की मदद करने की अपील तो सब करते हैं लेकिन ऐसी स्थिति में मदद हो कैसे? खेहर स्वयं मानते हैं कि देश में अभियुक्तों को तो कानूनी सहायता मिल जाती है लेकिन पीडि़त इससे वंचित रह जाते हैं। 
सबको सुलभ न्याय की अवधारणा के विपरीत इस व्यवस्था को बदलने की जरूरत है। लेकिन इसे बदलेगा कौन? मर्ज दिख तो सबको रहा है लेकिन उसके इलाज के लिए आगे आने को कोई तैयार नजर नहीं आ रहा। 
देश में कानूनी अड़चनों के जंगल को खत्म कर दिया जाए तो अनेक समस्याओं का निदान हो सकता है। देश तो उम्मीद ही कर सकता है कि व्यवस्था बदले। अच्छा हो खेहर ही इस पहल की शुरुआत करें।

Home / Prime / Opinion / जमीनी हकीकत

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो