बीते 68 साल से अदालतों की चौखट पर लड़े जा रहे अयोध्या विवाद मामले ने देश को बहुत धक्का पहुंचाया है। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में अयोध्या में विवादित ढांचे से ताला हटाने का कोर्ट ने आदेश दिया था।
इसके बाद विश्व हिन्दू परिषद और बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के बीच शुरू हुए विवाद का अंत ढांचे को ढहाए जाने के रूप में सामने आया। इसके बाद भड़के दंगों की याद आज भी रोंगटे खड़े कर देती हैं। घटना को 25 साल हो चुके हैं लेकिन विवाद का हल आज तक नजर नहीं आया।
इस लम्बी अवधि में केंद्र में कांग्रेस, भाजपा और तीसरे मोर्चे की सरकारें राज करके जा चुकी हैं। मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा लेकिन नतीजा आज तक सामने नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने विवाद का अंत बातचीत से सुलझाने का सुझाव दिया है।
साथ ही जरूरत पडऩे पर मध्यस्थता करने की बात भी कही है। देश की सर्वोच्च अदालत की इस भावना का सभी पक्षों को सम्मान करना चाहिए। धर्म और आस्था के विषय मिल-बैठकर सुलझा लिए जाएं तो सामाजिक समरसता बनी रहेगी।
कोर्ट के फैसले से दोनों समुदायों के बीच खाई बढऩे की आशंका हो सकती है। दिल्ली और उत्तर प्रदेश में अब भाजपा की सरकार है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि वह सभी राजनीतिक दलों और मुकदमे से जुड़े पक्षों को एक मंच पर लाने का प्रयास करें।
प्रयास ये भी हों कि अयोध्या में राम मन्दिर बने तो मस्जिद का भी निर्माण हो। ऐसा रास्ता निकले जिससे पुराने जख्म भर जाएं। नफरत की दीवारें ढह जाएं और एकता की नई इबारत लिखी जाए। ऐसा हो सकता है लेकिन इसके लिए दृढ़ इच्छाशक्ति चाहिए।
सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को अपने-पराए के लोभ से ऊपर उठकर ऐसा समाधान खोजना होगा जिससे ये विवाद सदा के लिए समाप्त हो जाए। भविष्य में अयोध्या की जब भी चर्चा हो तो इसे ‘अंत भला तो सब भला’ के रूप में ही याद किया जाए।