राजसमंद. विकास पर विवाद है। कांग्रेस कहती है कड़ी से कड़ी जुड़ेगी, विकास यात्रा तभी शुरू होगी। वहीं भारतीय जनता पार्टी कहती है कि विकास का प्रवाह तभी जारी रहेगा, जब भाजपा यहां बरकरार रहेगी। दावे-प्रतिदावे कुछ भी हों, पर मार्बल नगरी में गर्मी का महीना कुछ ज्यादा ही तपन दे रहा है। इसकी वजह चुनावी सरगर्मी है। कांग्रेस ने जहां गाजे-बाजे के साथ, वहीं भाजपा ने बिना राजे के अपने प्रत्याशी का नामांकन भरवाया। मगर, उसके बाद भाजपा के बड़े नेताओं का यहां तांता लगा हुआ है। हर रोज कोई न कोई बड़ा नेता आता है, वहीं कांग्रेस में नामांकन के बाद अजय माकन को छोडकऱ कोई बड़ा नेता नहीं आया है। भाजपा की कुंवारिया की सभा में जो कुछ हुआ, उसका अंदाजा शायद ही किसी को रहा होगा। मेवाड़ के फायर ब्रांड नेता गुलाबचंद कटारिया महाराणा प्रताप की दुहाई देते हुए कार्यकर्ताओं को प्रेरित करने का प्रयास कर रहे थे, पर उनकी भाषा अमर्यादित हो गई। इसके बाद भूचाल आ गया। भाजपा डैमेज कंट्रोल कर पाएगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा पर फिलहाल कटारिया दो बार माफी मांग चुके हैं। अब भाजपा प्रत्याशी दीप्ति माहेश्वरी और भाजपा कटारिया से कन्नी काट रहे हैं, मगर जातीय समीकरण के मद्देनजर कटारिया की वहां अहमियत है। कांग्रेस प्रत्याशी तनसुख उसी समुदाय से आते हैं।
इस बार दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरे उतारे हैं। बीजेपी ने किरण माहेश्वरी की छवि और सहानुभूति का फायदा उठाने के लिए सबको दरकिनार कर उनकी बेटी दीप्ति को टिकट थमा दिया, वहीं कांग्रेस ने मार्बल व्यवसायी तनसुख बोहरा के समाजसेवी और स्थानीय की छवि पर दांव खेल दिया। खेल कौन जीतेगा, इसका फैसला तो जनता करेगी पर चुनाव बड़े रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। मुकाबला दिलचस्प है। ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। ध्रुवीकरण का दांव, प्रताप का पासा सभी कुछ तो चल रहा है, मगर ये पब्लिक सब जानती है।चुनावी चकल्लस में सब चलता है।
इस बार बीजेपी-कांग्रेस की रणनीति को सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोद, बीटीपी और राइट टू रिकॉल जैसी पार्टियों के अलावा बीजेपी के बागी पूर्व उपप्रधान सुरेश जोशी भी प्रभावित कर सकते हैं। राजसमन्द सीट पर पहली बार दोनों प्रमुख दलों के अलावा दूसरी पार्टियां भी दमखम झोंकती नजर आ रही है। इनके उम्मीदवार जीतते तो नहीं दिख रहे हैं पर ये गणित बना बिगाड़ जरूर सकते हैंं। इनकी चुनौतियों के साथ ही कोरोना संक्रमण भी एक बहुत बड़ी चुनौती बना हुआ, सभी के लिए।
कोरोना से ही विधायक किरण माहेश्वरी का निधन हुआ था और संक्रमण की दूसरी लहर के बीच हो रहे इस चुनाव में सुरक्षा भी एक अहम पहलू है। जिले में सबसे ज्यादा संक्रमण भी राजसमंद विधानसभा के राजसमंद और रेलमगरा ब्लॉक में फैला हुआ है। राजनीतिक सभाओं, बैठकों में लापरवाही जमकर देखी गई।
इस रण में जहां दीप्ति के पास मां किरण की विरासत है और पार्टी का मजबूत कैडर, वहीं कांग्रेस के पास राजसमन्द नगर परिषद में ऐतिहासिक जीत का जोश है। इस दंगल में रथी का ही नहीं, सारथी का भी इम्तिहान है। सांसद दीया कुमारी दीप्ति की सारथी हैं, उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर है। उन्होंने लगातार जनसंपर्क और सभाएं की थी। पिछले कई दिनों से यहां डेरा डाले हुए हैं। उनके पीछे प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया खड़े हैं। वहीं कांग्रेस में प्रभारी मंत्री उदयलाल आंजना के हाथ कमान जरूर है, कहने को वे ही सारथी हैं लेकिन पर्दे के पीछे डोर मेवाड़ के दिग्गज कांग्रेस नेता सीपी जोशी के हाथ में बताई जा रही है। आंजना सहयोगियों के साथ दम झोंक रहे हैं। देखना यह है कि कौन सफल होगा, कौन राजसमंद का रथी होगा, यह फैसला तो जनता जनार्दन ही करेगी । लोकतंत्र में रथी का फैसला विरथी जनता ही करते हैं। विजय रथ पर सवार हो कर चाहे कोई भी विधानसभा पहुंचे, पर राजसमंद विकास नजर आए विकार नहीं।
इस बार दोनों ही पार्टियों ने नए चेहरे उतारे हैं। बीजेपी ने किरण माहेश्वरी की छवि और सहानुभूति का फायदा उठाने के लिए सबको दरकिनार कर उनकी बेटी दीप्ति को टिकट थमा दिया, वहीं कांग्रेस ने मार्बल व्यवसायी तनसुख बोहरा के समाजसेवी और स्थानीय की छवि पर दांव खेल दिया। खेल कौन जीतेगा, इसका फैसला तो जनता करेगी पर चुनाव बड़े रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। मुकाबला दिलचस्प है। ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। ध्रुवीकरण का दांव, प्रताप का पासा सभी कुछ तो चल रहा है, मगर ये पब्लिक सब जानती है।चुनावी चकल्लस में सब चलता है।
इस बार बीजेपी-कांग्रेस की रणनीति को सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी रालोद, बीटीपी और राइट टू रिकॉल जैसी पार्टियों के अलावा बीजेपी के बागी पूर्व उपप्रधान सुरेश जोशी भी प्रभावित कर सकते हैं। राजसमन्द सीट पर पहली बार दोनों प्रमुख दलों के अलावा दूसरी पार्टियां भी दमखम झोंकती नजर आ रही है। इनके उम्मीदवार जीतते तो नहीं दिख रहे हैं पर ये गणित बना बिगाड़ जरूर सकते हैंं। इनकी चुनौतियों के साथ ही कोरोना संक्रमण भी एक बहुत बड़ी चुनौती बना हुआ, सभी के लिए।
कोरोना से ही विधायक किरण माहेश्वरी का निधन हुआ था और संक्रमण की दूसरी लहर के बीच हो रहे इस चुनाव में सुरक्षा भी एक अहम पहलू है। जिले में सबसे ज्यादा संक्रमण भी राजसमंद विधानसभा के राजसमंद और रेलमगरा ब्लॉक में फैला हुआ है। राजनीतिक सभाओं, बैठकों में लापरवाही जमकर देखी गई।
इस रण में जहां दीप्ति के पास मां किरण की विरासत है और पार्टी का मजबूत कैडर, वहीं कांग्रेस के पास राजसमन्द नगर परिषद में ऐतिहासिक जीत का जोश है। इस दंगल में रथी का ही नहीं, सारथी का भी इम्तिहान है। सांसद दीया कुमारी दीप्ति की सारथी हैं, उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर है। उन्होंने लगातार जनसंपर्क और सभाएं की थी। पिछले कई दिनों से यहां डेरा डाले हुए हैं। उनके पीछे प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया खड़े हैं। वहीं कांग्रेस में प्रभारी मंत्री उदयलाल आंजना के हाथ कमान जरूर है, कहने को वे ही सारथी हैं लेकिन पर्दे के पीछे डोर मेवाड़ के दिग्गज कांग्रेस नेता सीपी जोशी के हाथ में बताई जा रही है। आंजना सहयोगियों के साथ दम झोंक रहे हैं। देखना यह है कि कौन सफल होगा, कौन राजसमंद का रथी होगा, यह फैसला तो जनता जनार्दन ही करेगी । लोकतंत्र में रथी का फैसला विरथी जनता ही करते हैं। विजय रथ पर सवार हो कर चाहे कोई भी विधानसभा पहुंचे, पर राजसमंद विकास नजर आए विकार नहीं।
ये कर चुके हैं छोटी-बड़ी सभाएं
कांग्रेस : अशोक गहलोत, अजय माकन, गोविंद सिंह डोटासरा, सचिन पायलट, प्रताप सिंह खाचरियावास और कई मंत्री-विधायक।
बीजेपी: गजेंद्र सिंह शेखावत, अनुराग ठाकुर, कैलाश चौधरी, सतीश पूनिया, गुलाबचंद कटारिया, दीया कुमारी, मदन दिलावर, वासुदेव देवनानी और कई विधायक।
रालोद: पार्टी सुप्रीमो और सांसद हनुमान बेनीवाल।
बीटीपी: प्रदेशाध्यक्ष डॉ. वीआर घोघरा, कांति भाई रोत, रोशनलाल सोनगरा।
कांग्रेस : अशोक गहलोत, अजय माकन, गोविंद सिंह डोटासरा, सचिन पायलट, प्रताप सिंह खाचरियावास और कई मंत्री-विधायक।
बीजेपी: गजेंद्र सिंह शेखावत, अनुराग ठाकुर, कैलाश चौधरी, सतीश पूनिया, गुलाबचंद कटारिया, दीया कुमारी, मदन दिलावर, वासुदेव देवनानी और कई विधायक।
रालोद: पार्टी सुप्रीमो और सांसद हनुमान बेनीवाल।
बीटीपी: प्रदेशाध्यक्ष डॉ. वीआर घोघरा, कांति भाई रोत, रोशनलाल सोनगरा।
राजसमंद सीट एक नजर में
इस सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था। पहले विधायक कांग्रेस के निरंजननाथ आचार्य बने। अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं। इसमें से 7 बार कांग्रेस के विधायक चुने गए, जबकि 6 बार भारतीय जनता पार्टी और एक बार जनता पार्टी का कब्जा रहा।
इस सीट पर पहला चुनाव 1957 में हुआ था। पहले विधायक कांग्रेस के निरंजननाथ आचार्य बने। अब तक 14 बार चुनाव हुए हैं। इसमें से 7 बार कांग्रेस के विधायक चुने गए, जबकि 6 बार भारतीय जनता पार्टी और एक बार जनता पार्टी का कब्जा रहा।
जाने मुद्दे
कांग्रेस 17 साल में बीजेपी के कार्यकाल में जनता की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाने का आरोप लगाते हुए अब कड़ी से कड़ी जोडऩे की बात कर रही है, वहीं भाजपा किरण माहेश्वरी के कामकाज को बेहतरीन बता उनकी बेटी को जिताने की अपील कर रही है। कांग्रेस हाथोंहाथ राजकीय अस्पतालों में पर्याप्त स्टाफ सुविधाएं बढ़ाने, गांवों में पेयजल समस्या के समाधान, शहर में ऑडिटोरियम, भूमिगत बिजली लाइन, सीवरेज योजना का बाकी काम पूरा करने, डीएमएफटी के पैसों से शहर का विकास, मार्बल मंडी घोषित करने, मेडिकल कॉलेज जैसे वादे भी कर रही है। भाजपा इन वादों को केवल चुनावी धोखा बता रही है।
कांग्रेस 17 साल में बीजेपी के कार्यकाल में जनता की उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाने का आरोप लगाते हुए अब कड़ी से कड़ी जोडऩे की बात कर रही है, वहीं भाजपा किरण माहेश्वरी के कामकाज को बेहतरीन बता उनकी बेटी को जिताने की अपील कर रही है। कांग्रेस हाथोंहाथ राजकीय अस्पतालों में पर्याप्त स्टाफ सुविधाएं बढ़ाने, गांवों में पेयजल समस्या के समाधान, शहर में ऑडिटोरियम, भूमिगत बिजली लाइन, सीवरेज योजना का बाकी काम पूरा करने, डीएमएफटी के पैसों से शहर का विकास, मार्बल मंडी घोषित करने, मेडिकल कॉलेज जैसे वादे भी कर रही है। भाजपा इन वादों को केवल चुनावी धोखा बता रही है।
2018 का विधानसभा चुनावमतदान प्रतिशत
भाजपा को मत. 55.10 प्रतिशत
कांग्रेस को मत. 39.98 प्रतिशत
भाजपा को मत. 55.10 प्रतिशत
कांग्रेस को मत. 39.98 प्रतिशत