scriptसृष्टि के गठन और जीवन प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण तत्त्व से परिचय ‘कामना ही जननी’ पर प्रतिक्रियाएं | Reaction On Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand 13 May 2023 | Patrika News
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सृष्टि के गठन और जीवन प्रक्रिया के महत्त्वपूर्ण तत्त्व से परिचय ‘कामना ही जननी’ पर प्रतिक्रियाएं

Reaction On Gulab Kothari Article : पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के विशेष लेख – ‘कामना ही जननी पर प्रतिक्रियाएं

नई दिल्लीMay 13, 2023 / 09:06 pm

Anand Mani Tripathi

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Reaction On Gulab Kothari Article : कामना को मातृभाव और श्रद्धाभाव के रूप में निरुपित करते, इसे क्रिया का आधार और इन सबसे बढक़र जननी बताते पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की आलेखमाला ‘शरीर ही ब्रह्मांड’ के आलेख ‘कामना ही जननी’ को प्रबुद्ध पाठकों ने सराहा है। उन्होंने कहा है कि लेख सृष्टि के गठन और जीवन प्रक्रिया के मध्य के महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य तत्त्व कर्म से परिचय कराने वाला है। इससे कामना जैसा गूढ़ विषय बहुत सरलता से समझ आ जाता है। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से.


कामना ही जननी शीर्षक आलेख में सृष्टि में जीवन के स्तरों को समझाया गया है। वास्तव में जीव की उत्पत्ति कामना से ही होती है। कामना ही मनुष्य से सभी कार्य भी करवाती है। सारी भिन्नता हमारे कर्मों का फल है। हमारा स्वरूप भी देवात्मा का है।
हेमंत व्यास, पाली

कामना ही कर्म और कर्म-फल का आधार है। मंत्रों की व्याख्या के जरिए इस आलेख में बताया गया है कि जीवन के तत्व क्या हैं। साथ ही एकात्मक व युगल सृष्टि के रूप को बताया गया है। सही मायने में सृष्टि में स्वच्छन्द कुछ भी नहीं है।
विशाखा कुमारी, पाली

संपूर्ण ब्रहृमांड का निर्माण सोम से ही संभव है। कामना जननी है, श्रद्धा सोम है। और सृष्टि एक ही है। श्रद्धा और सोम सृष्टि की रचना करते हैं। अग्नि प्रज्वलित करते हैं, अग्नि में आहुति देने का काम सोम से ही संभव है। आलेख की गहराई में जाए तो यह बात निकल कर आती है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण सोम से ही संभव है।
राजेन्द्र जोशी, बीकानेर

कामना ही जननी है आलेख सटीक और वैज्ञानिकता लिए है। आलेख में सोम और अग्नि के माध्यम से एक गूढ़ विषय को बड़ी ही सरलता, सहजता और उदाहरणों के साथ प्रस्तुत किया है।
पंडित विजय कुमार ओझा, बीकानेर

ब्रह्मांड के नियम और उन नियमों के अनुरूप हमारा आचरण, हमारी जीवन प्रक्रिया और हमारे जीवन मूल्य निर्धारित होते हैं। यह बहुत सूक्ष्म विश्लेषण है जिससे यह पता चलता है कि जिस तरह देवता आठ प्रकार के होते हैं, गंधर्व 27 और उसी के अनुरूप हमारे भीतर विभिन्न क्रियाएं भी किसी न किसी के माध्यम से संपन्न होती हैं। सृष्टि के गठन और जीवन प्रक्रिया के मध्य कर्म एक महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य तत्त्व है। कर्म के बगैर फल की आशा और कर्म की उपेक्षा दोनों ही संभव नहीं हैं।
आशीष दशोत्तर, साहित्यकार, रतलाम

इस दुनिया में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो कामना रहित हो। प्रत्येक व्यक्ति की कोई न कोई कामना रहती ही है, किंतु इसे समझ पाना बहुत कठिन है। समस्या यह है कि व्यक्ति कामना को दोषी मानता है, कर्म पर ध्यान नहीं देता है। लेखक ने कामना जैसे गूढ़ विषय को बहुत ही सरल शब्दों में व्यक्त करते हुए उसकी उपस्थिति एवं महत्त्व को सुंदर ढंग से रेखांकित किया है। जैसे-“प्रत्येक प्राणी ब्रह्म है तथा मन में एक कामना लेकर पैदा होता है। यह कामना ही कर्म और कर्म-फल का आधार है।” अत: व्यक्ति को अपनी कामना की नहीं अपितु अपने कर्म की मीमांसा करते रहना चाहिए।
डॉ. शरद सिंह, वरिष्ठ साहित्यकार, सागर

मनुष्य की कामनाएं, श्रद्धा, आदर्श को फलित करने की आध्यात्मिक प्रक्रिया को लेख में बड़े ही भावपूर्ण तरीके से समझाया गया है। लेख ज्ञानवर्धक तथा संग्रहणीय है। देवताओं के आठ प्रकारों का वर्णन उत्तम है। आलेख में सही कहा है कि श्रद्धा तत्त्व के जागृत होने से सर्व कामनाएं फलित होती हैं।
उमा शर्मा, हिन्दू जागरण मंच, सीधी

गुलाब कोठारी के आलेख ‘कामना ही जननी है’ में सृष्टि की रचना पर प्रकाश डाला गया है। लेख में स्पष्ट किया गया है कि सभी जीवों का परमपिता एक ही है। इच्छा, आकांक्षा एवं कामना के चलते ही जीव को विभिन्न रूप मिलते हैं। लेख में भी जीव के कर्म को प्रधान माना गया है। इसमें समाहित संदेश से प्रेरणा लेने की जरूरत है।
मिथिलेश मिश्रा, सदस्य रेडक्रॉस सोसायटी, सिंगरौली

आलेख में कामना के गूढ़ रहस्यों पर विस्तार से बताया गया है। जब भी व्यक्ति किसी वस्तु या पदार्थ की कामना करता है और कामना पूर्ति में बाधा आती है तो व्यक्ति में क्रोध उत्पन्न हो जाता है। यह बात सही है कि संसार का प्रत्येक व्यक्ति कामनाओं की बीमारी या इच्छाओं की बीमारी से ग्रसित है। इस पर हमें विचार करना चाहिए।
विष्णु शुक्ला, सेवानिवृत्त शिक्षक, मुरैना

कामना ही जननी है, यह मानव जीवन का सत्य है। हर व्यक्ति के मन में कोई न कोई कामना जरूर है। कामना ही है जो व्यक्ति को कर्म करने पर मजबूर करती है। आलेख में कामना को माया बताया गया है, यह सत्य है।
शैलेंद्र यादव, मुख्य प्रबंधक गायत्री परिवार, दतिया

जैसा कि आलेख में बताया गया है, व्यक्ति के अंदर कुछ कर पाने की इच्छा ही उस काम को कराने की प्रेरणा देती है। अगर व्यक्ति किसी भी काम को पूरे मन और ईमानदारी से करता है तो वह उस काम में सफल होता है। यह बात भी सही है कि अग्नि में जो सोम मिला होता है, वही चैतन्य है।
वीरेंद्र राठौर, कांट्रेक्टर, शिवपुरी

ब्रह्मांड से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है। सभी प्रकार के जीवों की तरह मनुष्य भी कामनाओं के बंधन में बंधा है। कोई भी व्यक्ति जीवनभर इससे दूर नहीं रह सकता। इसलिए गीता में श्रीकृष्ण ने कहा कि मनुष्य को अपने जीवन में हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए। अच्छे कर्म ही आगे ले जाते हैं, वहीं जो व्यक्ति बुरे काम करता है, उसका अंत भी बुरा होता है।
युगल शर्मा, कारोबारी, खरगोन

जब तक मन में कुछ करने के भाव नहीं जागेंगे, इच्छाशक्ति नहीं जगेगी, तब तक किसी भी कर्म का होना संभव नहीं है। इसलिए सनातन धर्म ने भी विश्व को कर्म प्रधान बताया है। अपने लेख के माध्यम से गुलाब कोठारी ने गूढ़ व्याख्या करते हुए सृष्टि के दो स्तरों को बताया है। उन्होंने एक जनक और युगल जनक को लेकर विस्तार से जानकारी दी है।
प्रो.एचबी पालन, पर्यावरणविद्, जबलपुर

लेख वास्तव में मनुष्य के जीवन को आध्यात्मिक तरीके से परिभाषित करता है। यह शरीर में मौजूद तत्त्व और संपूर्ण ब्रह्मांड का ज्ञान करने वाला है। इसे पढक़र हर व्यक्ति को अपने शरीर के भीतर ब्रह्मांड का समावेश महसूस होगा।
बीके पटेल, सेवानिवृत्त जिला शिक्षा अधिकारी, इटारसी

हमारा शरीर पंच महाभूतों से मिलकर बना है। वहीं इन सभी पांच तत्त्वों का संबंध ग्रहों से होता है। इसलिए सूर्य, चन्द्रमा, शनि इन ग्रहों का प्रभाव हमारे जीवन में प्रभाव डालता है। इन ग्रहों को जानना व अभ्यास शरीर की अनुभूति करना ही है। हमारे शरीर और आत्मा को जानना मतलब ब्रह्मांड की अनुभूति या सैर करना कह सकते हैं।
मानक नागेश्वर, बालाघाट

प्रत्येक जीव के अंदर कामना का भाव छुपा होता है। इसी भाव के चलते वह अच्छा-बुरा कर्म भी किया करता है। कामना ही कर्म और कर्म-फल का आधार है। कामनाओं की लालसा के चलते उसे और अधिक पाने की इच्छा बनी रहती है। यदि जीव इन कामनाओं पर अंकुश पा ले उसे ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति हो जाए।
गौरव उपाध्याय, ज्योतिषाचार्य, ग्वालियर

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