script‘आसक्ति मुक्त होना ही लीनता’ पर प्रतिक्रियाएं | Reaction On Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand 27 May 2023 | Patrika News
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‘आसक्ति मुक्त होना ही लीनता’ पर प्रतिक्रियाएं

Reaction On Gulab Kothari Article : पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी के विशेष लेख -‘आसक्ति मुक्त होना ही लीनता’ पर प्रतिक्रियाएं-

नई दिल्लीMay 27, 2023 / 06:08 pm

Anand Mani Tripathi

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Reaction On Gulab Kothari Article : अनन्य भक्ति को ही भगवान के तात्विक ज्ञान और दर्शन संभव होने के जरिए के रूप में निरुपित करते पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी की आलेखमाला ‘शरीर ही ब्रह्मांड’ के आलेख ‘आसक्ति मुक्त होना ही लीनता’ को प्रबुद्ध पाठकों ने सराहा है। उन्होंने कहा है कि आलेख आसक्ति मुक्ति के महत्त्व को रेखांकित करता है और बताता है कि माया के परे जाकर ही परमात्मा को समझना संभव है। पाठकों की प्रतिक्रियाएं विस्तार से…


भगवान को अंशी मानकर उनसे प्रेम किया जाए, कृष्ण के अलावा अन्य में ध्यान न लगे, संसार से विरक्त होकर भगवान से मन जोड़ देना आदि अनन्य भक्ति के अर्थ हैं। इन शब्दों के साथ आलेख में भक्ति का सही मार्ग सुझाया गया है।
पंकज तोतला, ट्रस्टी, श्रीवेंकटेश देवस्थानम, इंदौर

भारतीय धर्म ग्रंथों में जितनी विविधता देखने मिलती है, वह दुनिया के किसी ग्रंथ में नहीं मिलती। खासकर श्रीमद् भागवत गीता जो जीवन की हर समस्या का समाधान प्रदान करती है। इसके प्रत्येक अध्याय में मानव, प्रकृति, सृष्टि, कर्म और मुक्ति के विषय पर विस्तार से बताया गया है। बस जरूरत है तो हमें इनका अध्ययन करने की। आलेख में त्याग और ग्रहण की व्याख्या जितनी सुंदर की गई है, वह पठनीय है।
प्रणीता बबेले, जबलपुर

सांसारिक कर्मों में युक्त मनुष्य वैराग्य भाव से सदा तृप्त रहता है। वही ईश्वर को प्राप्त होता है। आलेख में मानव मुक्ति से लेकर परमात्मा की भक्ति और स्वरूप का सही उन्मोदन किया गया है। यह भी सही कहा है कि यदि आप लोक कल्याण के लिए पैदा हुए हों, सांसारिक भी रहें, और वैराग्य भाव भी बना रहे।
नितिन दीक्षित, भिण्ड

ऐसा कोई व्यक्ति नही जिसकी किसी के प्रति आसक्ति न हो। आसक्ति मुक्त होना बहुत मुश्किल है। अगर आसक्ति ईश्वर के प्रति हो तो मनुष्य जीवन सफल है। लेकिन ऐसा हर जीव के लिए संभव नहीं। आलेख में सही लिखा है कि जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके आसक्ति का त्याग करता है, वह जल से कमल पत्र की भांति लिप्त नहीं होता।
नीरज नयन शास्त्री, भगवताचार्य, दतिया

जैसा कि आलेख में बताया गया है शरीर नश्वर है आत्मा शरीर बदलती रहती है। जीवन में बिना त्याग किए कुछ नहीं मिलता और इसी पर पूरा जीवन निर्भर रहता है। मनुष्य के कर्मों पर ही उसके आगामी कार्यों का फल निश्चित होता है। अगर व्यक्ति सही उद्देश्य लेकर ईमानदारी से कार्य करता है तो वह अपने कार्य में सफल होता है।
सत्येंद्र राठौर, शिवपुरी

इंसान में त्याग की भावना जरूरी है। किसी भाव को ग्रहण करना ही त्याग ही है। इंसान को आसक्ति मुक्त जीवन जीना ही उसे स्थूल से बांधे रखता है। व्यक्ति का मन चंचल होता है और वही उसे यहां-वहां भटकाता है। ईश्वर को पाने के लिए उसका आसक्ति मुक्त होना जरूरी हो जाता है।
गौरव उपाध्याय, ज्योतिषाचार्य ग्वालियर

मनुष्य की आसक्तियां ही उसे ईश्वर भक्ति से विमुख रखती हैं। जीवन भर मनुष्य आसक्तियों के जाल में जकड़ा रहता है, इसी कारण ईश्वर से उसकी तल्लीनता नही हो पाती है। समस्त प्रकार की आसक्तियों को त्यागकर ही साधना के स्तर पर मनुष्य ऊपर उठ सकता है। आसक्त प्राणी कभी भी ईश्वर की सन्निकटता नही प्राप्त कर सकता है। माया के परे जाकर ही वह परमात्मा को समझ सकता है। अनासक्त भाव ही ईश्वर की भक्ति है या भक्ति का ईश्वर प्राप्ति का प्रथम सोपान है। समस्त धर्म गन्र्थो में अनासक्त भाव की प्रधानता बताई गई है। अत: आसक्ति मुक्त होना ही ईश्वर में लीन होना है ।
डॉ शोभना तिवारी, निदेशक, डॉ शिवमंगलसिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान, रतलाम

आलेख में गीता के कुछ श्लोकों का विस्तृत वर्णन किया है। सच तो यह है कि आज मोक्ष पाने के लिए कुछ लोग ही कार्य कर रहे हैं। जो मनुष्य से प्रेम नहीं कर सकता, वह भगवान से कैसे प्रेम कर सकता है। प्रभु चरणों में स्थान पाने का सबसे अच्छा मार्ग है कि मनुष्य अपने कत्र्तव्यों को पूरा करने के साथ-साथ कुछ समय समाज की भलाई में भी लगाए, जिससे जहां मानसिक शक्ति प्राप्त होगी वहीं समाज का भी स्वस्थ विकास होगा।
बैशाखू नंदा, मंडला

मानव जीवन दुर्लभ है। ईश्वर ने सृष्टि के एक मात्र प्राणी में कई विशेषताएं दी है। वह अपने श्रेष्ठ कर्म करते हुए जीवन के अंतिम लक्ष्य यानी ईश्वर की प्राप्ति की दिशा में आगे बढ़ सकता है। संसार की वस्तुओं में अलिप्त रह कर्म करते हुए मनुष्य परम् सत्य को प्राप्त कर सकता है। सही अर्थ में यही लीनता है।
पुष्पा विजयवर्गीय, खेड़लीफाटक, कोटा

मैं और मेरा के भावों को जीवन में जगह नहीं दें तो हम लीनता की ओर बढ़ सकते हैं। लेख ”आसक्ति मुक्त होना ही लीनता’ इसी दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रहा है। जीवन की राह में कई चीजें मार्ग से भटका देती है। इनसे बचते हुए मन व मस्तिष्क से प्राप्त निर्देशों में तालमेल बिठाते हुए निष्काम कर्म करें तो जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो सकते हैं।
डॉ.अखिलेश पाण्ड्ये, जिला पशु चिकित्सालय, कोटा

मैं और मेरा से मुक्त होना परम पुरुषार्थ मोक्ष का मार्ग है। संसार में रहते हुए आसक्ति से मुक्त रहना ही वैराग्य है। जैसे कमल का फूल कीचड़ में रहते हुए भी उससे मुक्त रहता है वैसे ही हमें भी संसार में रहते हुए वासना आसक्ति से मुक्त रहना यही ईश्वर के निकट पहुंचाने वाली लीनता है। गीता का मर्म बहुत ही सरल और सुंदर रूप से आलेख में प्रस्तुत किया है।
शास्त्री पंडित गायत्री प्रसाद शर्मा, बीकानेर

आत्मा अजर-अमर है। यह शाश्वत है। शरीर नश्वर है। श्रीमद भगवद गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश देते समय यह संदेश दिया था। गुलाब जी कोठारी का आलेख आसक्ति मुक्त होना ही लीनता इस गूढ़ विषय को सरल शब्दों के माध्यम से समझाने वाला है। यह सही है कि आसक्ति स्थूल से बांधती है। मन चंचल बना रहता है। भीतर जाने के लिए अनासक्त भाव-कर्म,फल,विषय छूट जाना चाहिए।
पंडित विजय कुमार ओझा,बीकानेर

 

 

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