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अवसर मिले तब ही साबित होगी मेरिट

आरक्षण के पक्षधर कहते हैं कि एक बार प्रवेश द्वार में घुसने की इजाजत तो दो, वो भी साबित करेंगे कि वे किसी से कम नहीं।

Nov 17, 2017 / 12:50 pm

सुनील शर्मा

Reservation

reservation in india

– उदित राज

जो मेरिट की बातें करते हैं वे यह बताएं कि हमने पिछले सालों में कौन सी खोज, आविष्कार या तकनीक विकसित की है। जो निजी क्षेत्र उत्पादन और गुणवत्ता के ऊपर सवाल उठा रहा है, तो वह यह भी बताए कि कौन से बड़े व्यापारी ने इस देश में खोज और आविष्कार किया है।
निजी क्षेत्र में आरक्षण की बातें राजनीतिक मंचों पर कई वर्षों से बार-बार उठती रहीं हैं। हाल ही यह विषय चर्चा में फिर से आया जब पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सरकार द्वारा निजी कंपनियों को काम (आउटसोर्सिंग) में दलित और पिछड़ों को आरक्षण दिया। उसके बाद इस मामले पर पक्ष और विपक्ष खड़ा हो गया। विरोध करने वाले सोचते हैं कि इससे मेरिट पर असर पड़ेगा। दलित और पिछड़े अनारक्षित वर्ग के बच्चों का हक मारेंगे। इसमें यह भी भ्रान्ति है कि इससे उत्पादन पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
दूसरी ओर, आरक्षण के पक्षधर कहते हैं कि एक बार प्रवेश द्वार में घुसने की इजाजत तो दो, वो भी साबित करेंगे कि वे किसी से कम नहीं। मेरिट एक बकवास है, जिसे अवसर ही न मिले वह अपनी मेरिट कैसे सिद्ध कर सकता है? जहां तक उत्पादन की बात है, वह बढ़ेगा ही क्योंकि ये लोग मेहनती होने के साथ-साथ कार्य में आनाकानी नहीं करते। सबसे पहले आरक्षण विरोधियों के तर्क पर चर्चा करते हैं। नेपोलियन ने कहा था कि बिना अवसर के योग्यता की क्षमता का आंकलन करना संभव नहीं है। अंगे्रजों ने जब इंडियन सिविल सर्विसेज की शुरुआत की थी तो भारतीय प्रतियोगिता में सफल नहीं हो पा रहे थे। तब दादा भाई नौरोजी ने आन्दोलन किया था कि यहां के लोगों को भी अवसर दिया जाना चाहिए।
जन्म से कोई मेरिट लेकर नहीं पैदा होता, जो मेरिट की बातें करते हैं वे यह बताएं कि हमने पिछले सालों में कौन सी खोज, आविष्कार या तकनीक विकसित की है। करीब 95 प्रतिशत ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीक हम आयात करते हैं। जो निजी क्षेत्र उत्पादन और गुणवत्ता के ऊपर सवाल उठा रहा है, तो वह यह भी बताए कि कौन से बड़े व्यापारी ने इस देश में खोज और आविष्कार किया है। मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक का आविष्कार किया तो बिल गेट्स ने कंप्यूटर विंडो का। स्टीव जॉब ने एप्पल की तकनीक खोज कर उद्योग को बढ़ावा दिया। विज्ञान, अभियांत्रिकी, जीव विज्ञान , भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र चिकित्सा के विषयों को भारत में शिक्षा पद्धति के रूप में कौन लाया? विषय एवं ज्ञान को किसने दिया? यह कहा जाता रहा है कि प्राचीन भारत में यह सब कुछ था और वेद पुराण इसको प्रमाणित करते हैं।
हजारों वर्ष पहले क्या हुआ उसको नकारना या स्वीकार करने के पचड़े में न पड़ते हुए मेरिटधारियों से पूछा जाए कि अब कौन रोक रहा इन्हें आविष्कार करने से। आजादी के इतने सालों बाद भी भारत खुद जहाज नहीं बनाता। युद्ध के ज्यादातर हथियार विदेशों से ही खरीदे जाते हैं। इन मेरिटधारियों की सोच सही होती तो ज्ञान और तकनीक में हम कब के विकसित हो गए होते। यूरोप में जिन्होंने लोहे और औजार के क्षेत्र में कार्य किए उनके हाथों को सम्मान दिया गया और इससे प्रोत्साहित होकर उन्होंने धातु विज्ञान विषय विकसित कर दिया और हमारे यहां तो लोहार, लोहार ही रह गया। वहां जिन्होंने मकान बनाया उनको सम्मान मिला और धीरे-धीरे वो इंजीनियर हुए और हमारे यहां तो मिस्त्री और मजदूर ही बने रहे।
अगर हमने भी चमड़ा निकालना, पकाना और उसके बाद नाना प्रकार के उपयोग की वस्तुएं बनाने वाले को नीच व अछूत न कहा होता तो वह भी विषय को विकसित करते और वे भी आज तकनीक विशेषज्ञ होते। हमें बाहर से ज्ञान को आयातित न करना पड़ता। अभी भी हम नहीं चेत पाए हैं और इसीलिए हमारा आयात बहुत ज्यादा है और निर्यात कम। उत्तर कोरिया और चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्था 30- 40 साल पहले लगभग हमारे बराबर थी पर आज वो कहां खड़े हैं, हम सभी जानते हैं। दलित-पिछड़े अगर निजी क्षेत्र में काम करते हैं तो मुफ्त में तो वेतन नहीं ले जायेंगे बल्कि उत्पादन ही बढ़ेगा। रेलवे बहुत बड़ा विभाग है।
दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एवं मिशिगन विश्वविद्यालय ने अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को आरक्षण देने के असर पर रेलवे में वर्ष 1980 एवं वर्ष 2002 की अवधि का अध्ययन किया। यह रिपोर्ट वल्र्ड डेवलपमेंट जर्नल में भी छपी। इस रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे में आरक्षण से प्रतिकूल असर नहीं पड़ा बल्कि जहां पर दलित -आदिवासी कर्मचारी अधिक थे, वहां उत्पादन बढ़ा ही। जिस आबादी को बिहार सरकार ने आरक्षण दिया वह लगभग 80 प्रतिशत है। इनकी आय बढ़ेगी तो फायदा किसका होगा? उद्योग-धंधे ज्यादातर सवर्णों के हाथों में ही हैं तो सामान उनका ही बिकेगा। इनकी क्रय शक्ति बढऩे से मांग बढ़ेगी तो उत्पादन ज्यादा करना पड़ेगा।
इससे निवेश भी बढ़ेगा और गुणवत्ता, जात-पांत का भेदभाव भी इससे कम होगा। इस अवसर से लोग शिक्षित तो होंगे ही, इससे कानून व्यवस्था में सुधार होगा और जन प्रतिनिधियों का चुनाव भी बेहतर हो सकेगा। गरीबी एक अभिशाप है और उसके रहते स्वस्थ्य एवं खुशहाल वातावरण का होना मुश्किल है। ऐतिहासिक तथ्य भी यही कहते हैं कि जहां आरक्षण पहले लागू हुआ वहां विकास ज्यादा हुआ है। उत्तर भारत में आरक्षण आजाद भारत के बाद ही लागू हुआ जबकि मद्रास में वर्ष 1921 में, त्रावणकोर और मैसूर में वर्ष 1935 में और महाराष्ट्र में वर्ष 1902 में लागू हुआ। यह चार राज्य कितने विकसित हैं यह हम सब जानते हैं। आरक्षण विरोधी देश हित में अपने विचार बदलें और विरोध छोड़े।

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