संस्कृत भाषा मात्र ही नहीं है बल्कि भारत की गौरवमयी संस्कृति है। यह हमारी आत्मा, अस्मिता व भारतीयता के मूल से जुड़ी है। हमारे तमाम प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में ही लिखे गए। इसलिए संस्कृत को देश की प्राणभाषा कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी।
संस्कृत भाषा मात्र ही नहीं है बल्कि भारत की गौरवमयी संस्कृति है। यह हमारी आत्मा, अस्मिता व भारतीयता के मूल से जुड़ी है। हमारे तमाम प्राचीन ग्रंथ संस्कृत में ही लिखे गए। इसलिए संस्कृत को देश की प्राणभाषा कहने में अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमारे यहां व्याकरण को तीसरा वेदांग कहा गया है। वेदमंत्रों को मूल रूप में सुरक्षित रखने और उनके दुरूह ज्ञान को प्रकाशित करने के उद्देश्य से जब पृथक व्याकरण शास्त्र की आवश्यकता हुई तो पुरातन ऋषिवंशों द्वारा वेदों की विभिन्न शाखाओं को लक्ष्य करके व्याकरण ग्रंथ लिखे गए। व्याकरण शास्त्र का चरम विकास पाणिनी की ‘अष्टाध्यायी’ में हुआ। वैदिक और लौकिक संस्कृत साहित्य की भाषाशास्त्रीय एकरूपता के लिए जिन नियमों और उपनियमों को इसमें संकलित किया गया, उसकी तुलना में विश्व की किसी अन्य भाषा का व्याकरण उपलब्ध नहीं। इसी ‘अष्टाध्यायी’ से देश की विभिन्न भाषाओं का विकास भी हुआ। असल में संस्कृत, विश्व की प्राचीनतम लिखित भाषा है।